क्या राम और कृष्ण एक ही हैं?

श्री राम और श्री कृष्ण

भगवान के अवतारों में भेद-भाव करना नामापराध हैं। यह नामापराध सबसे बड़ा अपराध होता है। भगवान के अवतारों में भेद-भाव करना भी नामापराध के अंतर्गत आता हैं। इसलिए भगवान के किसी भी अवतारों में भेद बुद्धि नहीं लगानी चाहिए और विशेष रूप से राम-कृष्ण अवतार में। क्योंकि अन्य जितने भी अवतार है, उनमें ऐसा कहा जा सकता है कि देखने की दृष्टि से शरीर का अंतर हैं, जैसे नरसिंह अवतार, वराह अवतार, मत्स्य अवतार आदि। परन्तु राम कृष्ण में तो वो भी अंतर नहीं हैं, वही रंग, वही पीताम्बर। इसलिए अंतर मानना गलत है। अतएव रामायण आदि के प्रमाणों द्वारा यह समझे कि श्री राम कृष्ण एक ही है।

तो सर्वप्रथम श्री राम की कथा भगवान शंकर जी द्वारा माता पार्वती जी ने सुनाया था। भगवान शंकर जी के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से विख्यात है। अतएव सर्वप्रथम अध्यात्म रामायण के प्रमाणों से यह जाने की श्री राम और कृष्ण एक ही है।

श्री राम और श्री कृष्ण एक है - अध्यात्म रामायण

को वा ज्ञातुं त्वामतिमानं गतमानं
मायासक्तो माधव शक्तो मुनिमान्यम्।
वृन्दारण्ये वन्दितवृन्दारकवृन्दं
वन्दे रामं भवमुखवन्द्यं सुखकन्दम्॥१६॥
- अध्यात्म रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १३

अर्थात् :- (ब्रह्मा जी कहते है-) हे लक्ष्मीपते! आप प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से परे है और सर्वथा निर्मान (जिसका परिमाण या मान न हो) है। ऐसा कौन माया से आसक्त प्राणी है जो आपको जानने में समर्थ हो सकता है? आप महर्षियों के माननीय हैं और कृष्ण अवतार के समय वृन्दावन में अखिल देवसमूह की वन्दना करते हुए भी रामस्वरूप में शिव आदि देवताओं के स्वयं वन्दनीय हैं, मैं ऐसे आप आनन्दघन भगवान राम को प्रमाण करता हूँ।

ध्यान दे - सनातन धर्म लीनियर टाइम (linear time) में नहीं मानता बल्कि सर्कुलर टाइम (circular time) में मानता है। अर्थात् यह चार युग और यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड बार-बार इनका अंत होता है और फिर पुनः प्रारम्भ होता है। और इसमें हर त्रेता और द्वापर में राम एवं कृष्ण अवतार लेते है। इसी कारण ब्रह्मा जी को श्री कृष्ण के अवतार के बारे में मालूम है।

नानाशास्त्रैर्वेदकदम्बैः प्रतिपाद्यं
नित्यानन्दं निर्विषयज्ञानमनादिम्।
मत्सेवार्थं मानुषभावं प्रतिपन्नं
वन्दे रामं मरकतवर्णं मथुरेशम्॥१७॥
- अध्यात्म रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १३

अर्थात् :- (ब्रह्मा जी कहते है) जो नाना शास्त्र एवं वेदसमूह से प्रतिपादित नित्य आनंदस्वरूप निर्विकल्प ज्ञानस्वरूप और अनादि हैं, तथा जिन्होंने मेरा कार्य करने के लिये मनुष्य रूप धारण किया है, उन मरकतमणि के समान नीलवर्ण मथुरानाथ (श्रीकृष्ण) भगवान राम को प्रणाम करता हूँ।

श्री राम और श्री कृष्ण एक है - वाल्मीकि रामायण

शार्ङ्गधन्वा हृषीकेशः पुरुषः पुरुषोत्तमः।
अजितः शंख-घृग् विष्णुः कृष्णश्चैव बृहद्वलः॥
- श्री वाल्मीकि रामायण ६.११७.१५

अर्थात् :- (ब्रह्मा जी कहते है श्री राम से) आप ही शार्ङ्गधन्वा, हृषीकेश, अन्तर्यामी पुरुष और पुरुषोत्तम हैं। आप अजित (जिसे कोई जीत न सका) हो। आप नन्दक नामक खड्ग (तलवार) धारण करने वाले विष्णु एवं महाबली कृष्ण हैं।

प्रभवश्चाप्यश्च त्वमुपेन्द्रो मधुसूदनः॥
- श्री वाल्मीकि रामायण ६.११७.१६

अर्थात् :- (ब्रह्मा जी कहते है श्री राम से) आप ही जगत की उत्पत्ति और प्रलय के कारण हैं एवं आप ही मधुसूदन हैं।

सीता लक्ष्मीर्भवान् विष्णुर्देवः कृष्णः प्रजापतिः॥
- वाल्मीकि रामायण ६.११७.२७

अर्थात् :- (ब्रह्मा जी कहते है श्री राम से) हे प्रभु, सीता साक्षात लक्ष्मी हैं एवं आप विष्णु हैं। आप ही कृष्ण हैं एवं आप ही आदि प्रजापति हैं।

ध्यान दीजिये - ये ज्ञानी ब्रह्मा जी के वाक्य है। जब उनकी दृष्टि से राम कृष्ण एक है तो फिर हम अलप बुद्धि वाले ये कहे की अंतर है ये हास्यास्पद बात है।

‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयं’ है राम नहीं?

एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्।
इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे॥
- भागवत पुराण १.३.२८

अर्थात् :- ये सब अवतार तो भगवान के अंशावतार अथवा कलावतार हैं, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान अवतारी ही हैं। जब लोग दैत्यों के अत्याचारों से व्याकुल हो उठते हैं तब युग-युग में अनेक रूप धारण करके भगवान उनकी रक्षा करते हैं।

अर्थात् भागवत पुराण १.३.२८ में यह कहा जा रहा है कि भगवान के जितने भी अवतार होते है वो अंशावतार होते है परन्तु श्री कृष्ण अंशावतार नहीं है अपितु स्वयं भगवान है जो युग-युग में अनेक रूप धारण करके भगवान रक्षा करते हैं। तो इससे यही सिद्ध होता है कि जब रक्षा की बात होती है तो स्वयं भगवान अवतरित होते है। तो दैत्यों से रक्षा तो श्री राम ने भी की है एवं श्री कृष्ण ने भी की है। इस सिद्धांत से तो श्री राम भी स्वयं भगवान हुए।

लेकिन फिर भी अगर कुछ लोग कहे कि ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयं’ अर्थात् श्री कृष्ण स्वयं भगवान है परन्तु राम स्वयं भगवान नहीं है। तो ऐसे तर्क करने वालों को निम्नलिखित प्रमाणों पर ध्यान देना चाहिए।

ऋतधामा वसुः पूर्वं वसूनां च प्रजापतिः।
त्रयाणामपि लोकानामादिकर्ता स्वयंप्रभुः
- वाल्मीकि रामायण ६.११७.७

अर्थात् :- पूर्वकाल में वसुओं के प्रजापति जो ऋतधामा नाम के वसु थे, वे आप ही हैं। आप तीनों लोके के आदिकर्ता स्वयं प्रभु हैं।

सहस्रश्रृगो वेदात्मा शतशीषीं महर्षभः।
त्वं त्रयाणां हि लोकानामादिकर्ता स्वयंप्रभुः
- वाल्मीकि रामायण ६.११७.१८

अर्थात् :- (ब्रह्मा जी कहते है श्री राम से -) आप ही सहस्त्रों शाखारूप सींग तथा वेद एवं शतशीर्ष महान् धर्म हैं। आप तीनों लोकों के आदि कर्ता स्वयं प्रभु हैं।

अवतारस्तु बहवः कला अंशविभूतयः।
रामोधनुर्धरः साक्षात् सर्वेशो भगवान् स्वयम्
(शिव संहिता)

अर्थात् :- विभिन्न अवतार भगवान के अंश, कला एवं विभूति हैं, जबकि धनुष धारी श्री राम साक्षात सर्वेश हैं, स्वंय भगवान हैं।

पूर्णोपूर्णावतारश्च श्यामोरामोरघूत्तमः।
अंशानृसिंहकृष्णाद्याः राघवोभगवान्स्वयम्
(ब्रह्म संहिता, याज्ञवल्क्य संहिता)

अर्थात् :- श्याम वर्णी श्री राम, जो कि रघुश्रेष्ठ हैं, पूर्णावतार एवं पूर्ण भगवान हैं। उनके अंश से नरसिंह,कृष्ण आदि प्रकट होते हैं जबकि राघव स्वयं भगवान हैं।

स्वयं भगवान कृष्ण सारस्वत कल्प में होते है। इसलिए अंतर है?

एक और तर्क दिया जाता है प्रमाण द्वारा कि श्री कृष्णावतार अनेक कल्पों में होता है, परंतु स्वयं भगवान का पूर्णाविर्भाव सारस्वत कल्प में ही होता है। इस परिपूर्णाविर्भाव में समस्त अंश कलाओं का भी समावेश रहता है। इस सारस्वत कल्प में स्वयं भगवान ही अपने सम्पूर्ण अंश-कला-वैभवों के साथ पूर्ण रूप से प्रकट हुए हैं।

तो इस तर्क से यह निष्कर्ष निकलता है कि समस्त अंश-कला-वैभवों का भी समावेश करके जब भगवान प्रकट होते है उन्हें स्वयं भगवान कहते है। तो इसमें अंतर मानने की क्या बात है? वो भगवान है, जब चाहे वो कम अंश-कला-वैभवों का समावेश करके प्रकट हो या अधिक करके प्रकट हो। ये उनकी इच्छा है। जिस प्रकार गुरु अलप बुद्धि और बुद्धिमान शिष्य के साथ अपने ज्ञान और शब्द को उसके अनुसार कहता है। अर्थात् वो गुरु तो परिपूर्ण है लेकिन जब जहा जैसी आवश्यकता हुई उस अनुसार अपने ज्ञान को प्रकट करता है। उसी प्रकार भगवान कभी समस्त अंश-कला-वैभवों तो कभी कम अंश-कला-वैभवों अनुसार प्रकट होते है।

श्री राम और श्री कृष्ण नाम महिमा में अंतर हैं?

इस प्रश्न पर पर हमने एक लेख में विस्तार से पहले ही बता चुके है कि चाहे राम नाम लो या कृष्ण नाम सब का फल एक ही है। श्री राम के नाम का अर्थ वही है जो श्री कृष्ण नाम का अर्थ है और यह बात स्वयं श्री राधा ने कही है। विस्तार से पढ़े - राम नाम और कृष्ण नाम महिमा में अंतर है?

श्री कृष्ण १६ तथा श्री राम १२ कलाओं के अवतार हैं। इसलिए अंतर है?

अगर कलाओं की बात करे कि श्री कृष्ण तो १६ कलाओं के अवतार है, श्री राम १२ कलाओं के अवतार है। तो भी कोई अंतर वाली बात नहीं है। क्योंकि वही भगवान है जब चाहे वो १२ कला को प्रकट करे और जब चाहे वो १६ कला को प्रकट करे। क्योंकि जिस प्रकार एक पिता के दो पुत्र है ५ साल और १२ साल का। पिता श्री दोनों बच्चों को पढ़ाते है जब छोटे को पढ़ाते है तो उसकी बुद्धि के अनुसार अपने ज्ञान को प्रकट करते है और जब बड़े बच्चे को पढ़ाते है तो उसकी बुद्धि के अनुसार अधिक ज्ञान को प्रकट करते है। इसी प्रकार हमें भगवान के इन कलाओं के प्राकट्य को देखना चाहिये।

हनुमान जी के लिए वही श्री कृष्ण राम है, जाम्बवन्त जी के लिए भी वही श्री कृष्ण राम है, ब्रह्मा जी के लिए वही श्री कृष्ण राम है, भगवान शंकर जी के लिए भी वही श्री कृष्ण राम है। अर्थात् इतनी बड़े-बड़े ज्ञानी जान जब भेद नहीं करते तो फिर हम अल्पज्ञ मायाधीन जीव कृष्ण राम में भेद करे, तर्क करे ये तो हास्यास्पद बात है और सबसे बड़ी बात नामापराध है। अतएव प्रमाण से सिद्धांत से भी राम कृष्ण एक ही है उनमें कोई अंतर नहीं है। आपको राम लीला, राम भक्ति पसंद है तो श्री राम की उपासना करे और अगर श्री कृष्ण की पसंद है तो उनकी करे। या दोनों स्वरूप पसंद है तो दोनों की करे। क्योंकि सिद्धांत तो यही कहता है एक ही भगवान है।

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