आत्मा का क्या स्वभाव है?

आत्मा का स्वभाव

आत्मा का क्या स्वभाव है? यह जानने से पहले यह जान लीजिये कि स्वभाव (नेचर) और आदत (हैबिट) में क्या अंतर। कुछ लोग आदत (हैबिट) और स्वभाव (नेचर) को एक ही समझते हैं।

स्वभाव मतलब:- प्राकृतिक। जैसे आग का जलाना, कुत्ते का भौंकना। आग का स्वभाव है जलना, आग में किसी दिन जलाने का स्वभाव नहीं आया। कुत्ते का भौंकना यह उसका स्वभाव है। और आदत (हैबिट) का मतलब:- “किसी कार्य को बार-बार करते रहने से उस कार्य को फिर करना, बिना उस कार्य को सोचे।” जैसे मोबाइल चलाने की आदत। एक व्यक्ति पैदा होते ही मोबाइल नहीं चलाने लगता है। मोबाइल को धीरे-धीरे चलाते-चलाते, उस कार्य को करते-करते, एक समय ऐसा आता है की ना चाहते हुये भी वो मोबाइल को छोड़ नहीं सकता। उस व्यक्ति का हाथ बार-बार मोबाइल के तरफ चला जाता है। तो इसे ही आदत कहते है।

आत्मा का क्या स्वभाव है?

आत्मा का प्रमुख रूप से ३ स्वभाव हैं। १. ज्ञान की प्राप्ति / जिज्ञासा। २. बड़ा बनना। ३. आनंद प्राप्ति।

१. ज्ञान की प्राप्ति / जिज्ञासा:- हम लोग बचपन में जब छोटे थे, तब कुछ नहीं जानते थे। तो बचपन में हम लोग किसी को देखते थे तो सोचते थे, ये क्या कर रहा है, ये क्या बोल रहा है, जानने की चेष्टा करु, क्या जानने की चेष्टा करु कुछ समझ में नहीं आ रहा। हम लोग इस तरह से बचपन में सोचते थे, तब जाकर हम बोलना सीखे है, कुछ काम करना सीखे है। तो ये आत्मा का स्वभाव है जानना। और एक बात पर ध्यान दीजिये; जो जानने की अथवा ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा, हमारी जो पहले(बचपन में) थी; वही आज भी है। आप लोग कहेगे, “नहीं एक व्यक्ति को देखा है मैंने, वो दिन भर शराब पीता रहता है, एक व्यक्ति को पढ़ाई में मन नहीं लगता वो गाना-गाना चाहता है।” परंतु ऐसा नहीं है, ज्ञान प्राप्ति का मतलब केवल विज्ञान और अध्यात्म के विषय में नहीं हैं। ज्ञान की प्राप्ति किसी भी विषय में हो सकती हैं। एक चोर चोरी कैसे करे, इस बारे में जानना चाहता है। शराबी कोभी ज्ञान चहिये; कोन सी शराब पिये, कितना पानी मिलाये, कितना बर्फ डाले और अनेक बाते जानने की प्रयास करता है। वैसे ही अगर कोई गाना-गाना चाहता है, तो वह ये ज्ञान प्राप्त करना चाहता है की, कैसे गाये, क्या सुर-ताल होते है। कुछ लोग देखते है की, ये व्यक्ति कैसे कपड़े पहनता है, कैसे रहता कई, क्या करता हैं। किसी को संसार और ब्रह्मांड को जानने की जिज्ञासा होती हैं। तो ज्ञान पाने की जिज्ञासा जो हमारी बचपन में थी, जिस सिमा में थी, वही जिज्ञासा उसी सिमा में आज भी है। तो हम ज्ञान की प्राप्ति क्यों करना चाहते है? इसलिए क्योंकि हम सर्वज्ञ बनना चाहते है।

२. बड़ा बनना:- बड़ा बनने का मतलब, जो हमारी अभी स्थिति है, उससे ऊपर उठना। ये आत्मा का स्वभाव है आपने आप को बड़ा करना। बड़ा करना का मतलब आकर से सम्बंधित नहीं है। बड़ा करना मतलब आपने आपको श्रेष्ठ बनाना। आज कल हर लोग लोकप्रिय बनना चाहते है प्रसिद्धि चाहते है, मान-सम्मान चाहते हैं। आप ये सब? क्यों चाहते हैं, हम इसलिए चाहते हैं की लोग हमे जाने। क्यों जाने? इसलिए क्योंकि हम सबसे बड़ा बनना चाहते है। तो हमारी आत्मा का ये स्वभाव है बड़ा बनने का।

३. आनंद प्राप्ति:- ऊपर बतायी गयी सभी चीज़े हम इसलिए चाहते हैं, क्योंकि हमें आनंद चहिये। ज्ञान क्यों चहिये? आनंद के लिए। सर्वज्ञ, प्रसिद्धि, मान-सम्मान क्यों चहिये? आनंद के लिए। अर्थात् जो भी हम कर्म करते है वो आनंद पाने के लिए ही करते है। यहाँ तक की दो विरोधी बातो में भी आनंद चाहते हैं। हँसते है! आनंद के लिए; रोते है! आनंद के लिए। आप कहेंगे, “नहीं हम रोते आनंद के लिए नहीं हैं” नहीं! आप रोते है आनंद के लिए। क्योंकि हम रो कर आपना दुःख निकलते हैं, ताकि सुख मिले, हम ये दुःख नहीं चाहते। हम आनंद क्यों चाहते है। आत्मा के और स्वभाव के बारे में जानने के लिए इस पृष्ठ पर जाये। आत्मा का प्रमुख स्वभाव, अपने स्वभाव से वह क्या चाहती हैं?

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