गुरु मंत्र अथवा दीक्षा क्या होती है?

महापुरुष को ही गुरु कहते है। गुरु के बारे में जानने के लिए पढ़े ❛गुरु कौन है, अथवा गुरु क्या है?❜
ये जो गुरु लोग कान में मंत्र देते है या गुरु मंत्र देते है या कहों दीक्षा देते है, ये क्या है? यह भगवान का नाम है। जैसे 'रां रामाय नमः", 'क्लीं कृष्णाय नमः', 'नमो भगवते वासुदेवाय नमः', 'श्री कृष्ण शरणम ममः' आदि। यह सब गुरुओं के मंत्र है। इन सबका एक ही मतलब, 'हे भगवान आपको नमस्कार है।" अथवा 'हे भगवान मैं आपकी शरण में हूँ।' यही मंत्र का जाप शिष्य करता है।

अतएव प्रश्न यह उठता है कि, 'अगर हम हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली आदि भाषाओं में कहेंगे तो क्या भगवान नहीं सुने गए। भगवान भी भाषा वादी है क्या, संस्कृत में बोलेंगे तब मैं (भगवान) सुनुगा?' नहीं! वो तो "भावग्राही जनार्दन" है। भगवान भावना (प्रेम) देखते है। इसलिए यह जो गुरु मंत्र अथवा दीक्षा है, यह केवल संस्कृत में बोलना या लेने वाली बात गलत है। आपलोग अपने गुरु से पूछे ये क्या दे रहे है, गुरु मंत्र अथवा दीक्षा?
गुरु: मंत्र
आप: कैसा मंत्र।
गुरु: भगवान का नाम।
आप: भगवान का नाम तो भारत के सब लोग जानते है। यहाँ पर तो मरने के बाद नारा लगता है, 'राम नाम सत्य है।' यह सबको पता है, फिर आप मेरे कान में क्या दे रहे है।
गुरु: देखों इस मंत्र में अलौकिक शक्ति है। यह हमरे गुरु जी के गुरु जी के गुरु जी का है।
आप: तो वो जो अलौकिक शक्ति आपके बातये नाम में है। क्या वो अलौकिक शक्ति राम श्याम में नहीं है? अगर आपके द्वारा दियेगये कान के मंत्र को न जपते हुए, हम 'हरे राम हरे राम' जपे 'गोविन्द जय जय गोपाल जय जय' बोले तो क्या उसमें वो अलौकिक शक्ति नहीं है।

अब गुरु जी को चुप रहना पड़ेगा। क्योंकि शास्त्र वेद कहते है कि, "नाम्नामकारि बहुधा निज सर्वशक्तिसुतखार्पिला नियमित: स्मरणे न काल:" अर्थात प्रत्येक भगवन नाम में भगवान स्वयं बैठे है और उनकी प्रत्येक (सभी) शक्तियाँ निहित (बैठी) है। अस्तु, अगर गुरु जी फिर भी कहे: और सभी भगवन नाम में शक्तियां नहीं होती जो गुरु के दिए हुए नाम में होती है।
आप: ठीक है, गुरु जी आप दीजिये हमारे कान में मंत्र। और अगर हमारे कान में दिए हुए मंत्र का प्रभाव तुरंत नहीं हुआ। तो फिर १० चप्पल लगाएंगे आप पर। आपको यह बात सिद्ध करना पड़ेगा कि, 'आपके गुरु के गुरु के गुरु द्वारा दिए गए भगवन नाम अलौकिक शक्ति है, जैसे ही तुम्हारे कान में पड़ेगा वैसे ही उस अलौकिक शक्तियों का अनुभव होगा।'

अब गुरू जी या तो भाग जाएंगे या तो आपसे क्षमा मगे गए। अतएव ये लोग गुरु नहीं है, ये पाखंडी है।
अब समझिये यह गुरु मंत्र अथवा दीक्षा क्या है। यह दीक्षा को कोई अलौकिक शक्ति कहता है, तो कोई दिव्य आनंद और कोई दिव्य प्रेम आनंद कहता है। यदपि यह सब एक ही है। दीक्षा देना का मतलब अलौकिक शक्ति देना भी है, दिव्य प्रेम देना भी है और दिव्य आनंद देना भी है।

तो अब प्रश्न है कि, 'दीक्षा कब मिलती है?' इस प्रश्न के उत्तर के लिए पढ़े ❛गुरु मंत्र अथवा दीक्षा कब मिलती है?❜ अवश्य पढ़े ❛क्या करे अगर हमारा गुरु वास्तविक गुरु नहीं है।❜

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