क्या राधा कृष्ण एक ही हैं? कौन उपास्य और उपासक है?

क्या राधा कृष्ण एक ही हैं?

❛राधा-कृष्ण में किसका स्थान ऊँचा है, राधा शब्द का अर्थ?❜ इस लेख में आपको राधा शब्द के दो अर्थ बताये और यह बताया की राधा आराध्य (उपास्य-जिसकी आराधना की जाए) है और राधा आराधिका (उपासक- जो आराधना करें) है और अंत में यह बताया कि राधा राधा कृष्ण दोनों का स्थान बराबर है। अब यह प्रश्न है कि कैसे दोनों का स्थान बराबर है? अर्थात् कैसे राधा कृष्ण एक ही हैं। तो इस प्रश्न का उतर भी राधोपनिषद में है।

राधोपनिषद में कहा "एक व्यक्तित्व दो बन गयी।" अर्थात् जो सर्वोच्च भगवान है, जिसे भगवान कहते है, ब्रह्म कहते है, राम कहते है, कृष्ण कहते है, राधा कहते है अनेक नाम है, वो ही दो बन गया। वेद कहता है ब्रह्मोपनिषत् १.४.३ "स एकाकी न रमते। स द्वितीयमैच्छत्।" अर्थात् भगवान अकेले थे, अकेले मन नहीं लगा तो दो बन गए। राधोपनिषद में कहा "राधाकृष्णयोरेकमासनम् । एका बुद्धि:। एकं मनः । एकं ज्ञानम्। एक आत्मा। एकं पदम् । एका आकृति:। एकं ब्रह्म।" अर्ताथ राधा-कृष्ण के एक ही मन है, एक ही बुद्धि है, एक ही ज्ञान है, एक ही आत्मा है, एक ही आकृति है (हम माया धिन मनुष्य को राधा कृष्ण के दो शरीर दिखाई पड़ते है, परतु वातविक सिद्ध महापुरुष या संत या गुरु या भक्त को दोनों एक ही दिखई पड़ते है), एक ही ब्रह्म है (कृष्ण-राधा एक ब्रह्म है) अस्तु, एक ही दो बन गया है तो अंतर क्या होगा। महारास में तो अनंत रूप धारण किया था श्री कृष्ण ने। यहाँ तो दो (राधा-कृष्ण) बन गए है। फिर राधोपनिषद आगे कहती है "अत एव द्बयोर्न भेद:। कालमायागुणातीतात्वात्।" अर्थात् राधा-कृष्ण दो है, ये मत सोचना। राधा कृष्ण एक है।

आश्चर्य तो इस बात का होता है कि दोनों एक होते हुए भी, पृथक-पृथक (अलग-अलग) बुद्धि और पृथक-पृथक शरीर के साथ पृथक-पृथक कार्य किया। जैसे राधा रानी रूठ गयी और श्री कृष्ण मना रहे है। अब सोचिए! एक ही है तो कैसे रूठ गया और किससे रूठ गया और क्यों रूठ गया? भला कोई अपने आप से रूठा है, लड़ाई होती है या कोई लीला होती है आपस में। ये तो दो व्यक्तित्व होती है जब, तब प्यार हो, ख़ार हो, लड़ाई हो, बातचीत हो, कुछ दो बातें हो। ये भगवान की ऐसी शक्ति (योग माया शक्ति) है कि असंभव लगने वाली चीज भी संभव हो जाती है। राधा-कृष्ण के एक बुद्धि, एक मन, एक व्यक्तित्व, एक शरीर हैं। तो जब दोने एक है तो फिर ये प्रश्न ही गलत कि कौन उपासक (आराधिका) है और कौन उपास्य (आराध्य) है। या तो ये कह दो कि कोई उपासक (आराधिका) नहीं हैं और कोई उपास्य (आराध्य) नहीं हैं। या कह दो दोनों उपासक है और दोनों उपास्य हैं।

श्री कृष्ण ने एक बार कहा था "देहस्यतेहम त्वमपिमासीतीता वत प्रवाद: प्राणस्यतेहम त्वमपि त्वम में तेस्या महमपि" अर्थात् तुम मेरी देह हो ये भी ठीक नहीं, तुम मेरी प्राण हो राधा रानी! मैं तुम्हारा देह हूँ ये भी ठीक नहीं। "त्वम मे" तुम हमारी हो, ये भी ठीक नहीं। "तेस्या महमपि" मैं तुम्हारा हूँ, क्या हूँ ये मत पूछो, बस मैं तुम्हारा हूँ, ये भी ठीक नहीं। तो फिर राधा जी ने कहा क्या बोलोगे आप, फिर कृष्ण ने कहा कि ये मैं और तू शब्द हम दोनों में लागु नहीं हो सकता। क्योंक मैं ही तुम बना हूँ और तुम ही मैं बना हूँ। इसलिए ऐसा कोई शब्द का प्रयोग हमें लिए हो जिसमे 'मै'और 'तुम' ये दो की भावना न हो। ब्रह्मा वैवर्त पुराण "ममेव पुरुषमरुपम गोपिकाजनमोहनम" राधा जी कहती है कि "मैं ही श्री कृष्ण बन जाता हूँ।"

सुबालोपनिषत् २.१ "आत्मानं द्विधाकरोदर्धेन स्त्री अर्धेन पुरुषो" भगवान को आधा कर दो एक स्त्री और एक पुरुष। पद्म पुराण में कहा कि राधा के अंश के अंश है दुर्गा, कमला, ब्राह्मणी आदि। और राधा रानी के चरण से करोणों विष्णु पैदा होते हैं। इसका अर्थ ये मत लगाना की ये राधा विष्णु शंकर अलग-अलग है। ये सब लोग एक ही है, अंतर केवल प्रेम (भक्ति) लीला का है। भगवान कुछ कम और कुछ अधिक शक्तियां प्रकट करते है अपने अलग-अलग स्वरूप में। इसलिए सिध्यांत रूप से सब एक है। अतएव प्रेम (भक्ति) में, भगवान के अवतारों में राधा सर्वश्रेष्ठ हैं तो मर्यादा में राम सर्वश्रेष्ठ हैं।

अगर आप अभी भी शंका है तो हमने विस्तार पूर्वक कुछ लेखो में लिखा है। आप उन्हें अवश्य पढ़े।
१. ❛क्या हिन्दू एक भगवान में मानते है, ब्रह्म परमात्मा और भगवान कौन है❜
२. ❛क्या राम और कृष्ण एक ही हैं?❜
३. ❛भगवान के सभी अवतार एक ही है, कैसे?❜

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