मैं कौन हूँ? क्या ‘मैं’ आत्मा, मन-बुद्धि या शरीर हूँ?

क्या ‘मैं’ आत्मा हूँ या शरीर हूँ?

व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी यह सोचता है कि मैं कौन हूँ, क्या मैं शरीर हूँ, क्या मैं मन हूँ, क्या मैं आत्मा हूँ, क्या आत्मा होती है? इस तरह के प्रश्न कभी-कभी व्यक्ति को परेशान करते है। इसलिए ‘मैं कौन हूँ?’ इस प्रश्न का समाधान हम तर्क से द्वारा करेंगे।

मैं कौन हूँ? - ‘तर्क’ द्वारा

हम लोग आमतौर से कुछ वाक्यों का प्रयोग करते। जैसे, “मैंने देखा, मैंने सुना, मैंने सुंघा, मैंने रास लिया, मैंने स्पृश्य किया, मैंने सोचा, मैंने जाना, मेरा घर, मेरा शरीर, मेरा मन इत्यादि”। अब इन पर विचार करें कि मेरा शरीर है तो मैं शरीर नहीं हूँ, मेरा मन है तो मैं मन नहीं हूँ। सरल शब्दों में, अगर आप हिंदी वाकरण पढ़ें हो तो, मैं और मेरा दोनों का अर्थ अलग-अलग है। ‘मैं’ यानी ‘स्वयं’ और ‘मेरा’ यानी ‘मैं का’ (स्वयं का, तुम्हारा)। अतएव मेरा मन या मैं मन? - इन दोनों में से सही वाक्य कौन सा है। अगर ‘मेरा मन है,’ तो तुम मन नहीं हो। अगर मेरी आँख है, तो तुम आँख नहीं हो। अगर मेरा शरीर है, तो तुम शरीर नहीं हो। और सरल शब्दों में ‘मेरा १० लाख रूपया’ सही वाक्य है, या ‘मैं १० लाख रूपया’ सही वाक्य है। ‘मेरा मोबाइल’ सही वाक्य है, या ‘मैं मोबाइल’ सही वाक्य है। इस तरह मेरा मन, मेरा हाथ, मेरा दिल, मेरा घर - जहाँ-जहाँ मेरा है वह तो मैं का है, मेरा घर यानी मैं का घर। अतः स्वाभाविक हमने ‘मैं’ और ‘मेरा’ में अंतर किया है। इसलिए शरीर मन, बुद्धि, घर यह सब ‘मैं’ नहीं है, यह सब ‘मेरा’ है यानी ‘मैं’ का है। अतः मेरा मैं नहीं हो सकता। तो मैं कौन हूँ?

यह ‘मैं’ और ‘मेरा’ दुनिया की सभी भाषाओं में है। जैसे, अग्रेजी में ‘My mind’ or ‘I mind', ‘My eye’ or ‘I eye', ‘My hand’ or ‘I hand', ‘My home’ or ‘I home'. मेरा आशय यह है, कि 'मैं मन' सही वाक्य नहीं है 'मेरा मन' यह सही वाक्य है। ‘मैं हाथ' सही वाक्य नहीं है, 'मेरे हाथ' यह सही वाक्य है। संसार के सभी भाषा में ‘मैं (I)’ और ‘मेरा (My)’ जैसे शब्द हैं। किसी व्याकरण (grammar) के विद्वान से पूछियेगा, तो वे कहेंगे, मैं (I) अलग है मेरा (My) से। जैसे ‘मेरा माकन’ यह वाक्य यह दर्शाता है, कि मैं का माकन है। मैं का अर्थ है "जो मेरा नहीं हो।” अथवा "मेरे से प्रथक (अलग) कोई वस्तु हो” वो मैं है। तो अगर हम व्याकरण से ‘मैं’ को समझे तो बस इतना समझ सकते हैं कि 'मेरा’ ‘मैं’ नहीं हो सकता।' जैसे ‘मेरा नाम’ यह ‘मैं’ का नाम है। प्रश्न तो यह हैं यह ‘मैं’ कौन हैं?

अगर आपने मैट्रिक्स (The Matrix) मूवी देखा है। तो आप ऐसा सोच सकते है कि यह विश्व भ्रम है, हमारा शरीर वास्तविक नहीं है, यह सब-कुछ जो हम देख रहे है वो सब सत्य नहीं है। इस तरह आप सभी पर प्रश्न उठा सकते है। किन्तु, आप अपने विचार पर प्रश्न नहीं उठा सकते। कहने का तातपर्य यह है कि आपका विचार, वह सत्य है, इसलिए ‘मैं’ विचार हूँ। किन्तु, ‘मैं विचार हूँ’ या यह मेरा विचार है? - दोनों में कौन सही है? उत्तर - यह मेरा विचार है। अतएव ‘मैं’ विचार नहीं हो सकता। एक और तर्क से समझा जा सकता है कि कभी-कभी जब आप गहरी नींद में होते है, तब आप स्वप्न भी नहीं देखते, उस वक्त आप कुछ नहीं सोचते, कुछ नहीं विचार करते। तो अगर ‘मैं’ विचार होता तो गहरी नींद में ‘मैं’ को मर जाना चाहिए। किन्तु, हम गहरी नींद से उठते है। अतः ‘मैं’ विचार हूँ, यह बात भी सत्य नहीं है। तो फिर ‘मैं’ कौन हूँ?

हम जब सो जाते है। तो सपने में यही सब कुछ देखते सुनते सुंघते रास लेते स्पर्श करते सोचते जानते हैं जैसे हम जाग्रत अवस्था में करते हैं। तो यह सब सोते वक्त कौन कर रहा हैं? उत्तर है ‘मन’। जब हम गहरी नींद में सो जाते हैं! तो मन भी कुछ नहीं करता। गहरी नींद (सुषुप्ति अवस्था) वो अवस्था है, जब हम लोग सपना भी नहीं देखते हैं। इस गहरी नींद में हमारा मन कुछ नहीं करता। किन्तु, उस गहरी नींद में भी हम रहते हैं। हम मर नहीं जाते गहरी नींद में! मन का काम बस बंद हो जाता हैं। तो फिर ‘मैं’ मन भी नहीं।

अतएव, तर्क से, ‘मैं’ को जानने की कोशिश की, लेकिन ‘मैं’ तर्क से नहीं जाना जा सका। इसलिए "मैं कौन हूँ” विषय पर तर्क यही कहता है कि ‘मैं’ कोई तो है, परन्तु कौन है यह हम नहीं जानते। क्यों? इसलिए क्योंकि शरीर के आगे हमें ज्ञान नहीं हैं, क्योंकि हम अपने आप को शरीर मानते है। और शरीर में भी हम और निचे चले जाते है, हम भारतीय हैं, हम पंजाबी, गुजराती, मद्रासी हैं, हम ब्राह्मण, छत्रिय हैं, हम स्त्री-पुरुष हैं। इतना निचे गिरे जा रहे हैं। अतएव गंभीर विचार करना है कि ‘मैं कौन हूँ?'

तो अब तक के तर्कों से यह सिद्ध हुआ कि ‘मैं’ विचार, मन, शरीर, और इन्द्रिय नहीं है। मैं कुछ और है। अगर प्रतक्ष्य तर्क की बात करे। तो आमतौर से, किसी व्यक्ति के निधन होने पर लगभग सभी देशों के, धर्मों के लोग यही कहते है कि वह व्यक्ति आज सुबह 6 बजे संसार से चला गया, हम लोग उसके शव (Dead body) यात्रा में जा रहे हैं। अतः वो शव हैं” तो वो कौन हैं, जो चला गया सुबह 6 बजे? इतने सालो तक लोग उसके शरीर को ही "वह” कहते थे।’ इसका यही अर्थ है कि हमें यह ज्ञात है, वह शरीर है और शरीर में कुछ था जो चला गया, जिसके कारण अब हम यह कह रहे है "आज वो सुबह 6 बजे संसार से चला गया”।

कौन चला गया शरीर छोड़ने पर? आप कहेंगे ‘मैं (आत्मा)’। संसार में लोग कहते हैं कि, "मरने के बाद शरीर से केवल मैं (आत्मा) जाती हैं।” यह बात लोग गलत बोलते हैं। मरने के बाद केवल आत्मा नहीं जाती उसके साथ भी कुछ जाता हैं। शरीर से क्या जाता हैं मरने के बाद? यह जानने के लिए पढ़े आत्मा क्या है? क्या केवल आत्मा शरीर से जाती है? उसके साथ कौन जाता हैं?

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