धनतेरस क्यों मनाया जाता है?

धनत्रयोदशी

धनतेरस सनातन धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। लेकिन, क्यों धनतेरस मनाया जाता है? यह बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है। प्रायः लोग इस दिन धन बढ़ाने के लिए कई उपाय करते हैं, इस लेख में हम वो उपाय भी बतायेंगे। धनतेरस के दिन अधिकांश लोग सोना-चाँदी के आभूषण अथवा बर्तन क्रय करते (खरीदते) है। लेकिन क्यों? क्या कारण है? विस्तार से इस लेख में जानेंगे।

धनतेरस त्यौहार मनाने का कारण?

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन समुद्र मंथन के समय हाथों में अमृत कलश लिए भगवान विष्णु ही धन्वन्तरि रूप में प्रकट हुए। इस विषय में भागवत पुराण में कहा गया-

अमृतापूर्णकलसं बिभ्रद्वलयभूषितः।
वै भगवतः साक्षाद्विष्णोरंशांशसम्भवः॥३५॥
धन्वन्तरिरिति ख्यात आयुर्वेददृगिज्यभाक्।
- भागवत पुराण ८.८.३५ -३६

अर्थात् :- उनके हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश था। वे साक्षात विष्णु भगवान के अंशांश अवतार थे। वे ही आयुर्वेद के प्रवर्तक (जनक) और यज्ञ भोक्ता धन्वन्तरि नाम से सुप्रसिद्ध हुए।

श्रीकृष्ण उवाच -
नारायणांशो भगवान्स्वयं धन्वन्तरिर्महान्।
पुरा समुद्रमथने समुत्तस्थौ महोदधेः॥१॥
- ब्रह्मवैवर्तपुराण खण्डः ४ (श्रीकृष्णजन्मखण्ड) अध्याय ५१

अर्थात् :- श्री कृष्ण ने कहा - भगवान धन्वन्तरि स्वयं महान पुरुष है और साक्षात नारायण के अंश स्वरूप है। पूर्वकाल में जब समुद्र का मन्थन हो रहा था, उस समय महासागर से उनका प्रादुर्भाव हुआ।

अतएव भगवान विष्णु के धन्वन्तरि रूप में प्रकट होने पर यह धनतेरस का पावन दिवस मनाया जाता है। भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के जनक और वैद्य के रूप में जाने जाते हैं। यहाँ पर एक बात ध्यान रहे, आयुर्वेद के जनक का मतलब यह नहीं की धन्वन्तरि जी ने आयुर्वेद के नियमों को बनाया, ऐसा नहीं है। भगवान धन्वन्तरि जी ने आयुर्वेद को प्रकट किया। जैसे अनेक संतो के मत तथा वेद-पुराण के प्रमाणों द्वारा हम वेदों शास्त्रों के सिद्धांत को आपके समक्ष रखते हैं (प्रकट करते हैं)। हम उन वेदों के सिद्धांत को बनाते नहीं हैं। वैसे ही भगवान धन्वन्तरि जी ने आयुर्वेद को प्रकट किया। यह आयुर्वेद वेद का ही अंश (भाग) है। अर्थात् आयुर्वेद उपवेद हैं। वेद के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़े वेद

चूँकि, भगवान धन्वंतरि जी आयुर्वेद के जनक कहे जाते है और धनतेरस उनके प्रकट होने का दिवस है। इसलिए भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस (National Ayurveda Day) के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

धनतेरस से जुड़ी प्रथाएं

धन्वन्तरि जी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। वे कलश लेकर प्रकट हुए थे अतः इस अवसर पर लोगों बर्तन क्रय (खरीदा) करते हैं। परन्तु यह प्रथा हमें नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस प्रथा का कोई मतलब नहीं है। भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए इसलिए हम भी बर्तन लेकर प्रकट हो - ये बात उचित नहीं है। वैसे वर्तमान में लोग इस आशय से बर्तन नहीं क्रय करते है। वे धन वृद्धि के लिए क्रय करते है। इसके आलावा सोना-चाँदी के आभूषण अथवा बर्तन क्रय करते है जिससे धन वृद्धि हो। किन्तु, यह सब करना सही नहीं है।

वास्तव में यह दिवस धन्वन्तरि जी तथा आयुर्वेद के लिए है। आयुर्वेद में धन शब्द का अभिप्राय है स्वास्थ्य से। लेकिन जिन लोगों को आयुर्वेद के विषय में ज्ञात नहीं है, वो धन को मुद्रा समझते है इसलिए वे अज्ञानता वश अर्थ का अनर्थ कर रहे है। जहाँ स्वास्थ्य धन की वृद्धि करनी चाहिए, वहां लोग आर्थिक धन की वृद्धि के उपाय में लगे है। आयुर्वेद अनुसार सोना-चाँदी के बर्तन में खाने से स्वास्थ्य धन की वृद्धि होती है। लेकिन लोगों ने आर्थिक धन की वृद्धि होती है ऐसा मान लिया है और सोना-चाँदी के आभूषण तथा बर्तन क्रय करने लगे।

धनतेरस मनाने का उद्देश्य

धनतेरस मनाने का उद्देश्य - आयुर्वेद के सिद्धांत को समझना और स्वस्थ रहना हैं। स्वस्थ शरीर से लक्ष्य प्राप्ति में आसानी होती है। अगर आप धनवान, बुद्धिमान, ज्ञानवान होना चाहते है तो शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। अन्यथा अगर शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा, तो कहीं यहाँ दर्द तो कहीं वहाँ दर्द रहेगा। उससे ध्यान भटकता है। अतः आयुर्वेद में सबसे बड़ा धन स्वस्थ को कहा गया है।

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