राजा नृग को कर्म-धर्म का फलस्वरूप गिरगिट बनना पड़ा।

राजा नृग को फलस्वरूप गिरगिट बनना पड़ा।

राजा नृग प्राचीन काल के एक प्रतिष्ठा प्राप्त राजा थे, जो इक्ष्वाकु के पुत्र थे। राजा नृग अपनी दान के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। राजा नृग १००० गाये रोज दान करते थे। एक दिन एक गाय, जिस ब्राह्मण को दान किया था उससे भाग करके फिर आगयी राजा के गौशाला में। अब जिसके यहाँ लाखों गाये है तो नौकर चाकर भी कितना पहचानेगा बिचारा। दूसरे दिन दूसरा ब्राह्मण आया उसको वही गाय देदी, क्योंकि राजा और नौकर-चाकर को पता नहीं था। अब वो जो पहला ब्राह्मण था जिसको दान किया था, वो अपनी गाय ढूढ़ता-ढूढ़ता उस ब्राह्मण के पास पहुंचा जिसको राजा ने दूसरे दिन दान दिया था। उनसे कहा "ये हमारी गाय है तुम चुरा कर लाये हो।" दूसरे ने कहा "क्या कह रहे हो, ये राजा ने दान किया है।" अब दोनों लड़ पड़े कि हमको दिया, हमको दिया है।

दोनों ब्राह्मण गए राजा नृग के पास। राजा नृग समझ गए कि भूल से पहले दान की हुई गाय को फिर से दूसरे ब्राह्मण को दान दे दिया है। तो फिर राजा नृग ने क्षमा मांगा ब्राह्मण से "आप १०,००० गाये ले लीजिये इसके बदले में" लेकिन दोनों ब्राह्मण ने तय कर लिया कि ये मेरी नाक का सवाल है, मैं यह गाय नहीं दुगा भले ही कितनी ही गाये मुझे इसके बदले में दीजिये। ये मेरे प्रतिष्ठा का प्रश्न है।

लेकिन राजा को फैसला करना पड़ा कि पहले ब्राह्मण को दे दीजिये गाय। तभी दूसरे ब्राह्मण ने श्राप दे दिया तो राजा नृग को गिरगिट होकर एक सहस्र वर्ष तक कुएँ में रहना पड़ा। इतने बड़े ज्ञानी धर्म-कर्म का पालन करने वाले राजा नृग को गिरगिट बनना पड़ा क्योंकि कर्म-धर्म का सही-सही पालन नहीं किया था। ये धर्म-कर्म का फल है, अनजाने में गलती भी हो जाये कर्म-धर्म में तो दण्ड मिलता है।

जब ब्राह्मण ने श्राप दिया तभी यमराज के दूत आये और नृग को यमपुरी ले गये। वहाँ यमराज ने राजा नृग से पूछा कि "तुम पहले अपने पाप का फल भोगना चाहते हो या पुण्य का? तुम्हारे दान और धर्म के फलस्वरूप तुम्हें ऐसा तेजस्वी लोक (स्वर्ग) प्राप्त होने वाला है।" तब नृग ने यमराज से कहा कि "पहले मैं अपने पाप का फल भोगना चाहता हूँ।" और उसी क्षण यमराज ने कहा- "तुम गिर जाओ।" रमराज के ऐसा कहते ही नृग वहाँ से गिरा और गिरते ही समय नृग ने देखा कि मैं गिरगिट हो गया हूँ। राजा नृग का उद्धार कैसे हुआ?

इसलिए वेद भागवत कहते है कि कर्म धर्म का पालन बहुत कठिन है और इसका फल स्वर्ग है जो कुछ दिन को मिलता है। उसके बाद वापस नर्क या पृथ्वी पर पशु-पक्षी बनाकर भेज दिए जाते है। इसलिए इनका पालन करना बेकार है।

अवश्य पढ़े वेद कहता है - कर्म धर्म का पालन करना बेकार है। और वेद, भागवत - धर्म अधर्म क्या है?

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