आदि शंकराचार्य - संन्यास, जन्म, हिन्दू धर्म की पुनः स्थापना

आदि शंकराचार्य संन्यास

आदि शंकराचार्य अद्वैत (दो नहीं) वेदांत के प्रणेता प्रसिद्ध शैव आचार्य थे। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने अपनी टीकाएँ लिखने का उदेस्य अद्वैत (दो नहीं) वेदांत का प्रचार करना था। परन्तु जगह जगह पर देव्त (दो) की बातें भी लिखी है। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद् और जिनके प्रबंधक तथा गद्दी के अधिकारी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं- (१) बदरिकाश्रम, (२) करवीर पीठ, (३) द्वारिका पीठ और (४) शारदा पीठ। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। ये शंकर जी के अवतार हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विस्तार से व्याख्या की है। आदि शंकराचार्य लगभग पूरे भारत की यात्रा की और इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता।

आदि शंकराचार्य - जन्म

आदि शंकराचार्य का जन्म सन् 788 ई. में केरल में कालपी अथवा 'काषल' नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम सुभद्रा था। बहुत दिन तक सपत्नीक शिव को आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्ररत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा।

आदि शंकराचार्य - संन्यास

जब शंकराचार्य तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। शंकराचार्य बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इनके संन्यास ग्रहण करने के समय की कथा बड़ी विचित्र है। अवश्य पढ़े कैसे आदि शंकराचार्य ने संन्यास ग्रहण किया। माता ने इन्हें संन्यासी होने की आज्ञा प्रदान की और इन्होंने गोविन्द स्वामी से संन्यास ग्रहण किया। पहले ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया। इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया तथा वैदिक धर्म को पुनरुज्जीवित किया।

हिन्दू धर्म की पुनः(फिर से) स्थापना

आदि शंकराचार्य को हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म को बनाया नहीं है। आज से लगभग २००० साल पहले हिन्दू धर्म में जो वेदों के विद्वान पंडित थे उन्होंने वेद मन्त्र का गलत अर्थ लगाकर कहा की वेदों में मांस और बलि की प्रथा लिखी है। तो तब के लोग जानवरों की बलि देने लगे और मांस खाने लगे। इसलिए फिर भगवान गौतम बुद्ध आये, ये गौतम बुद्ध विष्णु जी के अवतार थे। लेकिन चुकी उस वक्त लोग बलि देने लगे और मांस खाने लगे इसलिए भगवान गौतम बुद्ध जी ने अपने कल्पना के अनुसार बौध धर्म बनाया। तो फिर जब भगवान गौतम बुद्ध जी चले गये, तब आदि शंकराचार्य आये और उन्होंने बौध धर्म को गलत सिद्ध किया और फिर से हिन्दू धर्म का ज्ञान सबको प्रदान किया। एक तरफ़ उन्होंने अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ़ उन्होंने जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा को सिद्ध करने का भी प्रयास किया। सनातन हिन्दू धर्म को दृढ़ आधार प्रदान करने के लिये उन्होंने विरोधी पन्थ के मत को भी अपूर्ण तौर पर स्वीकार किया। शंकर के मायावाद पर महायान बौद्ध चिन्तन का प्रभाव माना जाता है।

अवश्य पढ़े आत्मा और भगवान में भेद है या अभेद है या दोनों है? और मनुष्य का क्या कर्तव्य है, क्या करें और क्या नहीं करें है?

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