आत्मा का आकार क्या है, शरीराकार या अणु या सर्वव्यापक?
आत्मा का आकार क्या है?- इस विषय के बारे में जानना आवश्यक है। क्योंकि कुछ लोग आत्मा को सर्वव्यापक (सब जगह रहने वाला) मानते हैं, वही कुछ लोग आत्मा को शरीर के आकार का मानते हैं और अधिकांश लोग आत्मा को सूक्ष्म (परमाणुओं से भी बहुत छोटा) मानते हैं। वैसे, आत्मा के आकार के विषय में यही तीन बातें हो सकती है - सर्वव्यापक या शरीराकार या सूक्ष्म। अब इन पर एक-एक करके वेद (उपनिषद्), वेदान्त और गीता द्वारा विचार करते है।
क्या आत्मा सर्वव्यापी है?
आत्मा सर्वव्यापी यानी वह हर जगह समाया हुआ है - यह कहने का आशय है कि आत्मा का अस्तित्व इस शरीर के साथ-साथ समस्त संसार में भी है। अर्थात्, आत्मा का आकार सबसे बड़ा (ब्रह्मांड जितना बड़ा) है, तभी यह समस्त संसार में व्याप्त होगा और सर्वव्यापी कहलाएगा। आत्मा का सर्वव्यापक होना यह भी दर्शाता है कि केवल एक आत्मा है। अगर आत्मा को दो या दो से अधिक मानेंगे, तब दूसरे स्थान पर दूसरे आत्मा को और तीसरे स्थान पर तीसरे को व्याप्त होना होगा। इस तरह अनेकों आत्माओं को अनेकों जगहों पर व्याप्त होना होगा, इस कारण से कुछ जगहों पर कोई-न-कोई आत्मा व्याप्त नहीं होगी और यह ‘सर्वव्यापक’ सिद्धांत का उललंघन है। अतएव एक ही आत्मा सर्वव्यापक है और जब एक ही आत्मा सर्वव्यापक है, तो उसको हर जगह का अनुभव होगा, इस शरीर के साथ-साथ, शरीर के बहार जो कुछ है उसका भी। लेकिन, क्या ऐसा है?
पहली बात, हम अपने शरीर को महसूस करते हैं, दूसरों के शरीर को नहीं। कोई व्यक्ति अपने आपको शरीर के बाहर नहीं महसूस करता। हमारी पीड़ा को हम महसूस करते हैं, दूसरे केवल अनुमान लगा सकते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारा अस्तित्व शरीर तक है, इसके बाहर नहीं। दूसरी बात, हम दूसरों को अपने से अलग मानते है, जिससे यह सिद्ध होता है कि सब लोग अलग है, अतः अनेकों आत्माएं होंगी - वेद (उपनिषद्), गीता और पुराण आदि भी यही कहते है। जैसे गीता १०.३९ 'सर्वभूतानां’ अर्थात् “समस्त भूत (आत्मा)” और गीता ९.६ ‘सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।’ अर्थात् “सम्पूर्ण भूत (आत्मा) मुझमें ही स्थित रहते हैं।” अतः उपर्युक्त तर्क तथा गीता के प्रमाण यह सिद्ध होता है कि आत्मा सर्वव्यापी नहीं है।
इसके उपरांत भी, अगर आत्मा को सर्वव्यापक मानें, तो देहांत के बाद, आत्मा को कहीं जाने की आवश्कता नहीं होगी, उसे यहीं मिल जाना चाहिए - जैसे घडा (मटकी) फूटने पर, घडा का आकाश (घडा का खली जगह) बाहर के आकाश में मिल जाता है। किन्तु, क्या आत्मा के विषय में ऐसा होता है? नहीं! आत्मा देहांत के बाद जाता है, वेदान्त २.३.१९ ने कहा ‘उत्क्रान्तिगत्यागतीनाम्’ अर्थात् “शरीर से उत्क्रमण (यानी ऊपर जाना) करने, परलोक में जाने और पुनः लौटकर आने का श्रुति (वेद) में वर्णन है।” जैसे बृहदारण्यकोपनिषद् ४.४.६, प्रश्नोपनिषद् ५.४ और कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद् ३.४ ‘स यदाऽस्माच्छरीरादुत्क्रामति” अर्थात् “वह आत्मा शरीर से उत्क्रमण करता है।” अतः उपर्युक्त वेद और गीता के प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि आत्मा सर्वव्यापी नहीं है।
क्या आत्मा शरीराकार है?
आत्मा शरीराकार है अर्थात् शरीर के आकार का है - कहने का आशय है कि आत्मा का आकार शरीर जितना है, न तो कम और न ही इससे अधिक। अगर आत्मा को शरीर के आकार का मानें, तब शरीर के परिवर्तन का आशय होगा कि आत्मा में परिवर्तन। माँ के पेट से लेकर बाल्य, युवा और वृद्धा अवस्था तक शरीर के आकार में परिवर्तन होता है। फिर किस अवस्था के शरीर को आत्मा का आकार (माप) माना जाये। फिर, कभी-कभी शरीर के कुछ अंगों को काटना पड़ता है और दूसरों के शरीर के अंगों को प्रत्यारोपित करना पड़ता है। इसलिए, अगर आत्मा शरीराकार है, तो आत्मा में परिवर्तन, जोड़ना और काटना संभव है - यह स्वीकार करना होगा। किन्तु, क्या ऐसा है?
गीता २.२३ ने कहा ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।’ अर्थात् “इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है।” अतः गीता से यह सिद्ध होता है कि आत्मा शरीर के आकार का नहीं है। इसके उपरांत भी, अगर आत्मा को शरीराकार मानें, तो वेदान्त का मत दूसरा ही है। वेदव्यास जी ने कहा वेदान्त २.२.३४ ‘एवं चात्माकार्त्स्न्यम्॥’ अर्थात् “आत्मा को अपूर्ण एकदेशीय यानी शरीर के बराबर मापवाला मानना भी युक्तिसंगत नहीं हैं।” युक्तिसंगत क्यों नहीं है? इसे हमने आपको पहले ही बता दिया था कि अवस्था अनुसार आत्मा का आकार अलग-अलग मानना होगा, फिर किस अवस्था के आकार को वास्तविक आकार मानें और फिर गीता, वेद विरुद्ध बात हैं। इस प्रकार विचार करने पर आत्मा को शरीर के बराबर मानने की बात भी सर्वथा दोषपूर्ण हैं।
आगे फिर वेदव्यास जी ने कहा वेदान्त २.२.३५ ‘न च पर्यायादप्यविरोधः विकारादिभ्यः॥’ अर्थात् “इसके सिवा आत्मा को घटने-बढ़ने वाला मान लेने से भी विरोध का निवारण नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसा मानने पर आत्मा में विकार आदि दोष प्राप्त होंगे।” यानी यदि यह मान भी ले कि शरीर के अवस्था अनुसार आत्मा के आकार में परिवर्तन होता है। तब भी आत्मा में अवयवयुक्त, अनित्य आदि दोष होंगे। जो पदार्थ घटता-बढ़ता है, वह अवयवयुक्त होता है तथा घटने-बढ़ने वाला पदार्थ नित्य नहीं होता। तो यह सब दोष (विकार) हो जायेंगे। वहीं वेद तो आत्मा को निर्विकार (विकारों यानी दोषों से रहित) कहता है। अतः उपर्युक्त वेद, वेदान्त और गीता के प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि आत्मा का माप या आकार शरीर शरीराकार नहीं है।
क्या आत्मा अणु (सूक्ष्म) आकार का है?
अब आत्मा न तो सर्वव्यापी है और न ही शरीर के आकार का ही है, इसलिए अंततः यह अणु ही होगा। क्योंकि वह अणु होने के कारण, हाथी, मनुष्य, चींटी और सूक्ष्म आदि जीवों के शरीर को भी धारण कर सकता है। वेदान्त २.३.२२ ने कहा ‘ स्वशब्दोन्मानाभ्यां च’ अर्थात् “श्रुति (वेद) में अणु वाचक शब्द है, उससे और अनुमान वाचक दूसरे शब्दों से भी (आत्मा अणु सिद्ध होता है।)” जैसे मुण्डकोपनिषद् ३.१.९ ‘एषोऽणुरात्मा चेतसा वेदितव्यो’ अर्थात् “यह अणु परिमाण वाला आत्मा चित्य (मन से) जानने के योग्य है।"
अतएव, उपर्युक्त वेद (उपनिषद्), वेदान्त और गीता द्वारा सिद्ध होता है कि आत्मा का आकार अणु अर्थात् सूक्ष्म (अत्यंत छोटा जो नेत्रों से भी न दिखें उतना छोटा) है। लेकिन, यह अणु अर्थात् सूक्ष्म (अत्यंत छोटा जो नेत्रों से भी न दिखें उतना छोटा) का भी तो कुछ लंबाई-चौड़ाई होगी, वह कितनी है? यह जानने के लिए पढ़ें आत्मा का आकार कितना है? - वेद अनुसार