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भगवान वसुदेवजी के मन में आकर उनके मन से देवकीजी के मन में आ गए। वे प्राकृत जीवों की भांति गर्भस्थ नहीं हुए। यद्यपि देवकीजी को लीला से गर्भस्थिति सी प्रतीत हुई। एक दिन देवताओं ने कंस के कारागार में आकर स्तुति की जो ‘गर्भस्तुति’ के नाम से विख्यात है।
ब्रह्मा भवश्च तत्रैत्य मुनिभिर्नारदादिभिः।
देवैः सानुचरैः साकं गीर्भिर्वृषणमैडयन्…
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प्रस्थानत्रयी क्या है? ग्रंथों के नाम
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