प्रमाण क्या है और कितने प्रकार के होते हैं?

प्रमाण कितने प्रकार के होते हैं?

भारतीय दर्शन में प्रमाण उसे कहते हैं जो सत्य ज्ञान करने में सहायता करे। अर्थात् वह बात जिससे किसी दूसरी बात का यथार्थ (सच्चाई) का ज्ञान हो। 'प्रमाण' न्याय का मुख्य विषय है। जिसके द्वारा यथार्थ (सच्चाई) का ज्ञान हो उसे प्रमाण कहते हैं। प्रमाण चार प्रकार के होते हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्दप्रमाण।

प्रत्यक्ष

गौतम ने न्यायसूत्र में कहा है कि इंद्रियों के साथ संबंध होने से किसी वस्तु का जो ज्ञान होता है, वह प्रत्यक्ष है। अर्थात इंद्रिय के द्वारा किसी पदार्थ का जो ज्ञान होता है, वही प्रत्यक्ष है। यह प्रमाण सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि यह प्रत्यक्ष (हमारे सामने) है। जैसे, हमें सामने आगे आग जलती हुई दिखाई दे अथवा हम उसके गर्मी का अनुभव करें तो यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि 'आग जल रही है'। इस उद्धरण में पदार्थ (आग) और इंद्रिय (आँख और त्वचा) का प्रत्यक्ष संबंध हुआ इसलिए हमें प्रत्यक्ष ज्ञान हुआ।

यह प्रत्यक्ष ज्ञान ६ प्रकार का होता है -

१. चाक्षुष प्रत्यक्ष:- जो किसी पदार्थ के सामने आने पर होता है। जैसे, यह आग है।
२. श्रावण प्रत्यक्ष, जैसे, आँखें बंद रहने पर भी घंटे का शब्द सुनाई पड़ने पर यह ज्ञान होता है कि घंटा बजा।
३. स्पर्श प्रत्यक्ष:- जैसे ठंडा पानी को हाथ में लेने से ज्ञान होता है कि वह बहुत ठंढी है।
४. रसायन प्रत्यक्ष:- जैसे, फल खाने पर जान पड़ता है कि वह मीठा है अथवा खट्टा है।
५. घ्राणज प्रत्यक्ष:- जैसे, फूल सूँघने पर पता लगता है कि वह सुगंधित है।
६. मानस प्रत्यक्ष:- जैसे, सुख, दुःख, दया आदि का अनुभव।



अनुमान प्रमाण

प्रत्यक्ष द्वारा जिस वस्तु के अस्तित्व का ज्ञान नहीं हो रहा हैं, उसका ज्ञान किसी ऐसी वस्तु के प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर, जो उस अप्रत्यक्ष वस्तु के अस्तित्व का संकेत इस ज्ञान पर पहुँचने की प्रक्रिया का नाम अनुमान है। अनुमान प्रमाण में पाँच खंड हैं जो 'अवयव' कहलाते हैं। प्रतिरा, हेतु, उदाहरण, उपनय (जो वाक्य बतलाए हुए चिह्न या लिंग का होना प्रकट करे) और निगमन। इस को उदाहरण से समाजिये, यहाँ पर आग है (प्रतिज्ञा)। क्योकि यहाँ धूआँ है (हेतु)। जहाँ जहाँ धूआँ रहता है वहाँ वहाँ आग रहती है, 'जैसे रसोई घर में' (उदारहण)। यहाँ पर धूआँ है (उपनय)। इसीलिये यहाँ पर आग है (निगमन)। साधारणतः इन पाँच अवयवों से युक्त वाक्य को न्याय कहते हैं। अतएव इन पाँच अवयवों से युक्त प्रमाण को अनुमान प्रमाण कहते हैं।

उपमान प्रमाण

किसी जानी हुई वस्तु के समरूपता से न जानी हुई वस्तु का ज्ञान जिस प्रमाण से होता है वही उपमान है। सरल शब्दों में कहें तो, किसी अज्ञात वस्तु को किसी ज्ञात वस्तु की समानता के आधार पर किसी नाम से जानना उपमान कहलाता है। जैसे किसी को मालूम है कि नीलगाय, गाय जैसी होती है; किसी के मुँह से यह सुनकर जब हम जंगल में नीलगाय देखते हैं तब चट हमें ज्ञान हो जाता है कि 'यह नीलगाय है'। इससे प्रतीत हुआ कि किसी वस्तु का उसके नाम के साथ संबंध ही उपमिति ज्ञान का विषय है। उपमान को कई नए दार्शनिकों ने इस प्रकार अनुमान कै अंतर्गत किया है। अर्थात उपमान प्रमाण, अनुमान प्रमाण के अंतर्गत है।

शब्द प्रमाण

शब्दप्रमाण वो प्रमाण होता है, जिसके शब्द पर कोंई संदेह (शक) न हो। शब्दप्रमाण को विस्तार में जानने के लिए पढ़े ❛शब्द प्रमाण क्या है और उसके प्रकार?❜

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