वेद कहता है - कर्म धर्म का पालन करना बेकार है।

कर्म धर्म का पालन बेकार है।

वेद में जो विधि बताई गयी है। जो कर्म बताये गए हैं, ब्राह्मण को, क्षत्रिय को, वैश्य को और शूद्र को। और जो आश्रम है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ये वर्णाश्रम धर्म धर्म है। उसका ठीक ठीक विधिवत अगर कोई पालन करे तो वो धर्मात्मा, धर्मी कर्मी कहलायेंगे।

कर्म धर्म का पालन करना बेकार है।

क्यों? इसलिए क्योंकि कर्म-धर्म का पालन करने से स्वर्ग मिलता है। भागवत ९.५.२५ कहती है कि "नर्क है स्वर्ग, स्वर्ग और नर्क में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक सा है। केवल देखने का अंतर है।" गीता ९.२१ कहती है कि "स्वर्ग में एक व्यक्ति तभी तक रहता है जबतक उसके पुण्य कर्म-धर्म ख़त्म नहीं हो जाते। पुण्य कर्म-धर्म ख़त्म होते ही कुत्ते बिल्ली आदि के शरीर में डाल दिए जाते है।" और सबसे बड़ी बात यह है कि स्वर्ग में सुख नहीं है, वहाँ भी माया का अधिपत्य (कब्ज़ा) है जैसे हमारे मृत्युलोक पर है। अधिक जानने के लिए पढ़े देवी-देवता और भगवान में क्या अंतर है? भागवत ६.३.२५ कहती है कि "जो वेद में कर्म-धर्म की मीठी मीठी बातें लिखी है कि इनका पालन करो तो स्वर्ग मिलेगा इनके चक्कर में मत आओ।"

धर्म-कर्म करने से क्या होता है?

धर्म-कर्म सही-सही करने से पाप नष्ट होता है। भागवत ६.२.१७ कहती है कि "जितने भी यज्ञ कर्म है उनसे पाप नष्ट होता है। लेकिन हृदय (मन) सुद्ध नहीं होता।" इसलिए फिर पापा व्यक्ति करेगा। जैसे हाई कोट ने अपराधी को ५ साल की सजा सुनादी। ५ साल बाद बहार निकला फिर चोरी-डकैती किया। एक ने गो हत्या किया उसका कर्म-धर्म का पालन करने से पाप नष्ट हो गया। लेकिन वो व्यक्ति की गो हत्या करने की आदत नहीं गयी। वो फिर कर सकता है। फिर झूठ बोलेगा।

तो अगर कोई कर्म धर्म जान भी ले (वेद में ८०,००० कर्म-धर्म पालन करने के मन्त्र है।) सतयुग में बड़े बड़े बुद्धिमान होते थे ऋषि-मुनि वो विधिवत यज्ञ कर्म-धर्म का पालन करते थे। तो उसका फल क्या है? ये विचार करना है। इसके लिए पढ़े कर्म-धर्म का पालन करने का फल क्या है?

कर्म धर्म बेकार है इसके उदाहरण

राजा नृग को कर्म-धर्म का फलस्वरूप गिरगिट बनना पड़ा। और राजा निमि - श्राप से सम्बंधित एक कथा।

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