क्यों वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवत पुराण लिखा? भागवत पुराण लिखने की कथा।

भागवत पुराण लिखने की कथा

वेदव्यास जी ने समस्त पुराण, वेदांत और वेदों को विभाजन करने के बाद श्रीमद्भागवतपुराण लिखा। सबसे पहले वेदव्यास जी ने १ लाख श्लोक का महाभारत फिर ७०० श्लोक की गीता लिखा फिर ५५५ सूत्रों का ब्रह्मसूत्र लिखा फिर १७ पुराण लिखा। फिर भी परेशान थे, अशांत थे।

वेदान्तवेदसुस्नाते गीताया अपि कर्तरि।
परितापवति व्यासे मुह्यत्यज्ञानसागरे॥
- भागवत माहात्म्य २.७२

भावार्थ :- पूर्व काल में जिस समय वेद वेदान्त के पारगामी और गीता की भी रचना करने वाले भगवान् व्यासदेव खिन्न होकर अज्ञानसमुद्रमें गोते खा रहे थे।

अर्थात् व्यास जी यह तमाम ग्रंथ लिख कर के भी परेशान है, सोच रहे है कि क्या बात है? इतना सब कुछ रचना करने के बाद भी मैं परेशान क्यों हूँ? लगभग चार लाख श्लोक मैंने लिखे। ऐसा लगता है कि -

प्रियाः परमहंसानां त एव ह्यच्युतप्रियाः।
तस्यैवं खिलमात्मानं मन्यमानस्य खिद्यतः॥
- भागवत १.४.३१

भावार्थ :- अवश्य ही अब तक मैंने भगवान् को प्राप्त कराने वाले धर्मों (लीलाओं) का प्रायः निरूपण नहीं किया है। वे ही धर्म (लीला) परमहंसों को प्रिय हैं और वे ही भगवान् को भी प्रिय हैं (हो-न-हो मेरी अपूर्णता का यही कारण है)

अर्थात् वेदव्यास जी सोचने लगे कि मैं भगवान (श्रीकृष्ण) की लीलाओं का विस्तार से निरूपण नहीं लिखा। अन्य जितने भी ग्रंथ लिखे उनमें कर्म-धर्म का बहुत निरूपण किया और महाभारत में थोड़ी सी भगवान (श्रीकृष्ण) की लीला लिखी है। इतने में नारद जीआ गये। नारद जी ने कहा 'क्या बात है व्यास जी, आप बड़े परेशान दिखाई पड़ रहे है।' व्यासजी ने कहा 'हाँ! प्रभो मैं परेशान है।' तब नारदजी ने कहा भागवत १.५.८ 'भवतानुदितप्रायं यशो भगवतोऽमलम्' भावार्थ :- 'व्यासजी! आपने भगवान् के निर्मल यशका, गुणका, लीलाका गान प्रायः नहीं किया।' फिर नारद जी कहते है कि आप एक ग्रंथ लिखिए जिसमें केवल भगवान की लीला हो। परन्तु लिखने से पहले भगवान की भक्ति भी कीजियेगा।

भक्तियोगेन मनसि सम्यक्प्रणिहितेऽमले।
अपश्यत्पुरुषं पूर्णं मायां च तदपाश्रयम्॥
- भागवत १.७.०४

भावार्थ :- उन्होंने (व्यास जी ने) भक्तियोग के द्वारा अपने मन को पूर्णतः एकाग्र और निर्मल करके आदिपुरुष परमात्मा और उनके आश्रयसे रहने वाली माया को देखा।

इसके बाद व्यास जी ने भागवत पुराण लिखा। ध्यान दीजिये! श्रीमद्भागवतपुराणम् माहात्म्य २.७२ में कहा है कि ये वेदव्यास भगवान् है। वेदव्यास को भगवान का ज्ञान अवतार कहा गया है और भगवान कभी अशांत या परेशान नहीं होते। अतएव वेदव्यास लीला कर रहे है कि वो परेशान है। भगवान हमारे आदर्श के लिए सब कुछ करते है। इसलिए आप यह मत सोचिये कि व्यास जी वाकई में परेशान है।

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