मन और शरीर पर खाना खाने का क्या प्रभाव पड़ता है? - वेदों के अनुसार

भोजन का प्रभाव मन और शरीर पर - वेदों के अनुसार

जो हम खाना खाते है, उसका प्रभाव हमारे मन और शरीर पर पड़ता है। चुकी मन पर प्रभाव पड़ता है इसलिए हमारे स्वभाव पर भी पड़ता है। छान्दोग्योपनिषत् ने विस्तारपूर्वक कहा

अन्नमशितं त्रेधा विधीयते तस्य यः स्थविष्ठो
धातुस्तत्पुरीषं भवति यो मध्यमस्तन्माꣳसं
योऽणिष्ठस्तन्मनः॥
- छान्दोग्योपनिषत् ६.५.१

भावार्थ :- खाया हुआ अन्न तीन भागों में विभक्त हो जाता है। उसका जो अत्यंत स्थूल भाग होता है वह मल बन जाता है, जो मध्य भाग है वह रस बन जाता है, जो सूक्ष्म भाग है वह मन बन जाता है।

अन्नमय हि सौम्ममन:।
- छान्दोग्योपनिषत् ६.५.४

भावार्थ :- मन अन्नमय (अन्न से बना) है।

अर्थात् जो भोजन आप खाएंगे उसका प्रभाव मन पर पड़ेगा। इसलिए अन्न की शुद्धता से मन की शुद्धता होती है।

आहार का उद्देश्य मन को, स्वादेन्द्रिय को तृप्त करना नहीं है, वरन् उसका जीवन की गतिविधियों से गहरा सम्बन्ध है। जिस व्यक्ति का जैसा भोजन होगा उसका आचरण भी तदनुकूल होगा। आहार शुद्धि की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुये छान्दोग्योपनिषत् में लिखा है -

आहार सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा
स्मृतिः स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्ष:
- छान्दोग्योपनिषद्‌ ७.२६.२

भावार्थ :- जब भोजन शुद्ध होता है, तो मन शुद्ध हो जाता है। जब मन शुद्ध होता है तो मन निर्मल और निश्चयी बनता है। पवित्र और निश्चय मन के द्वारा मनुष्य मोक्ष प्राप्त करते हैं।

शुद्ध दिमाग वाले लोग शुद्ध भोजन पसंद करते हैं।

अस्तु, यह वेदों का मत है मनुष्य के आहार पर। लेकिन वेद ने सभी को छूट दी है कि जो वो चाहें वो कर सकता है। अतएव आप को शुद्ध शाकाहारी (सात्विक) आहार लेना है या शाकाहारी (राजसी) आहार लेना है या मांसाहारी व वाशी शाकाहारी (तामसी) आहार लेना है यह आप पर निर्भर करता है।

सात्विक, राजसी तथा तामसी आहार के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़े शाकाहार या मांसाहार? वेद और गीता में भोजन के बारे में क्या कहा?

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