वामन अवतार
वामन अवतार धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पाँचवें अवतार हैं तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे, जो भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अवतरित हुए। यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए - अलबत्ता बौने ब्राह्मण के रूप में। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।
माता पिता
वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वह आदित्यों में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह इन्द्र के छोटे भाई थे। कश्यप तथा अदिति का तीसरा अवतार वासुदेव और देवकी का था।
कथा
कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुर राजा बली ने हड़प लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताक़त के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था। वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
राजा बलि से भिक्षा माँगते वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन (विष्णु) ने बाली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ। विस्तार से पढ़ें वामन अवतार की कथा।