मुख्य उपनिषदों के नाम - वेद अनुसार

मुख्य उपनिषदों के नाम

उपनिषद् शब्द का साधारण अर्थ है - ‘समीप उपवेशन’ या 'समीप बैठना। चार वेद में भी एक वेद के चार भाग किये गए है उन्हें मन्त्र संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् कहते है। वेद के अनुसार (मुक्तिकोपनिषद) में १०८ उपनिषदों का वर्णन मिलता है। आजकल २२० उपनिषद् प्राप्त है। मुक्तिकोपनिषद १.४४ "सब उपनिषदों का सार १०८ उपनिषद् प्रमुख है।" इन उपनिषद् को प्रमाण माना जाता है। इन १०८ उपनिषदों में भी कुछ महापुरुषों ने केवल ९ उपनिषदों को प्रमुख माना है। वे इस प्रकार है -

  • १. ईशावास्योपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
  • २. केनोपनिषद् - साम वेद
  • ३. कठोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
  • ४. प्रश्नोपनिषद् - अथर्व वेद
  • ५. मुण्डकोपनिषद् - अथर्व वेद
  • ६. माण्डूक्योपनिषद् - अथर्व वेद
  • ७. ऐतरेयोपनिषद् - ऋग् वेद
  • ८. तैत्तरीयोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
  • ९. श्वेताश्वतरोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद

कुछ महापुरुषों के अनुसार १० प्रमुख उपनिषद् है। वे कहते है कि उपर्युक्त ९ उपनिषदों में से श्वेताश्वतरोपनिषद् को हम मुख्य उपनिषद् नहीं मानते क्योंकि आदि शंकराचार्य ने श्वेताश्वतरोपनिषद् पर भाष्य नहीं लिखा है। आदि शंकराचार्य ने जिन १० उपनिषदों पर भाष्य लिखा है तथा वे १० उपनिषद् मुक्तिकोपनिषद में भी क्रमानुसार कहा गया। इसलिए हम उन्हीं १० उपनिषद् को प्रमुख उपनिषद् मानते है। वे १० उपनिषदों के नाम इस प्रकार है -

ईशकेनकठप्रश्नमुण्डमाण्डूक्यतित्तिरिः।
ऐतरेयं च छान्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा॥३०॥
- मुक्तिकोपनिषद १.३०

संछिप्त भावार्थः - र्इश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, तथा बृहदारण्यक उपनिषद् है।

यह ध्यान रहे कि सारे (१०८ और अन्य) उपनिषदों के प्रणाम को सभी संत मानते है। मुख्य उपनिषद् इसलिए कहे गए है क्योंकि इनमें सभी उपनिषदों का सार है। अतएव मुख्य उपनिषद् ११ माने जाते हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं -

  • १. ईशावास्योपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
  • २. केनोपनिषद् - साम वेद
  • ३. कठोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
  • ४. प्रश्नोपनिषद् - अथर्व वेद
  • ५. मुण्डकोपनिषद् - अथर्व वेद
  • ६. माण्डूक्योपनिषद् - अथर्व वेद
  • ७. ऐतरेयोपनिषद् - ऋग् वेद
  • ८. तैत्तरीयोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
  • ९. श्वेताश्वतरोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद
  • १०. बृहदारण्यकोपनिषद् - शुक्ल यजुर्वेद
  • ११. छान्दोग्योपनिषद् - साम वेद

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