आत्मा का प्रमुख स्वभाव, अपने स्वभाव से वह क्या चाहती हैं?
परन्तु! आत्मा का एक प्रमुख स्वभाव है, वो है नित्यता। नित्यता मतलब सदा रहने वाला, अर्थात अमर। गीता २. २० और कठोपनिषद् १.२.१८ कहते है "आत्मा नित्य है।" अर्थात आत्मा अमर है।
तो आत्मा का एक स्वभाव नित्य रहना है। प्रायः आपने, कई ऐसे वृद्ध(बूढ़े) लोगो को देखा होगा जो मरना नहीं चाहते। जो ९० वर्ष के हो गये है, अस्पताल में भर्ती है, अगर कोई उनको मारने का प्रयास करे तो वो विरोध करते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आत्मा सदा रहती है यह आत्मा का स्वभाव है। हम लोग अपने आपको शरीर मानते हैं, परन्तु जो आत्मा का स्वभाव है वह शरीर मानने वाले पर हावी रहता है। इसलिए न तो मरना चाहते है, न तो अज्ञानी(अल्पज्ञ) बनना चाहते है और न दुःख चाहते है। आपने आप से पूछिए क्या आप मरना चाहते है। इस विश्व में कोई नहीं मरना चाहता। आप कहेंगे नहीं जी, बहुत फौजी हैं, जो जान हथेली पर लेकर युद्ध करते हैं। वो तो मरने से नहीं डरते। हाँ! आप सही है, फौजी कभी मरने से नहीं डरते, लेकिन वो मरना भी नहीं चाहते। मरने से नहीं डरना अलग बात और नहीं मरने की इच्छा ये अलग बात है।
लेकिन आपने कैंसर पीड़ितों को देखा होगा, वो लोग कहते हैं हमे मरना हैं। हा ! ये कैसे हो गया! आत्मा के स्वभाव के विपरीत काम। आत्मा के स्वभाव के विरुद्ध जो भी होता है, वह आनंद प्राप्ति के लिए ही होता है। आत्मा ज्ञान क्यों चाहती है? आनंद के लिए। आत्माबड़ा(श्रेष्ठ) क्यों बनना चाहती है? आनंद के लिए। आत्मा नित्य क्यों रहना चाहती हैं? आनंद के लिए। तो आत्मा का जो भी स्वभाव है, वह आनंद के लिए ही हैं। अगर, किसी व्यक्ति को ये बोध हो जाये, की आनंद अब नहीं मिलसकता तभी वो अपने आपको मरना चाहता है। क्योंकि उस स्वभाव का क्या काम, जो उसे आनंद न दे सके। जैसे कैंसर पीड़ित व्यक्ति अपने आप को मरना चाहता है, वो अपने को खत्म इसलिए करना चाहता है, क्योंकि वह बहुत दुःख भोग रहा है, अब उसे यकीन हो गया है, की ये दुःख नहीं समाप्त होगा और अगर दुःख समाप्त नहीं होगा तो आनंद कहाँ से मिलेगा। इसलिए वह व्यक्ति मरना चाहता हैं। इसी प्रकार, जो लोग आत्महत्या करते हैं, वे भी यह सोच-सोच से निच्य कर लेते है की अब मुझे ख़ुशी नहीं मिलसकती इसलिए मरना ही बेहतर है। अस्तु, आत्मा का जो स्वभाव है, वह केवल आनंद प्राप्ति के लिए है।
हमने आपको यह आत्मा के कुछ प्रमुख स्वभाव बताये है। वैसे तो आत्मा के कुछ और स्वभाव है, लेकिन वह प्रारब्ध के कारण मनुष्य में बहुत काम प्रकट होते है। जैसे दया का स्वभाव। दया सभी व्यक्ति को आती हैं। लेकिन, कुछ लोगों का खराब प्रारब्ध के कारण वह लोग(डाकू, चोर आदि) दया दूसरों पर नहीं करते। परन्तु वह लोग भी कभी कभी अपने हितैषी, परिवार आदि पर दया कर ही देते हैं।