प्रस्थानत्रयी क्या है? ग्रंथों के नाम

प्रस्थानत्रयी क्या है?

प्रस्थानत्रयी क्या है, इसका अर्थ तथा कौन से ग्रंथ प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत है और क्यों? इस लेख में, हम प्रस्थानत्रयी से सम्बंधित इन प्रश्नों पर विस्तार से जानेंगे। प्रस्थानत्रयी सनातन धर्म का वह भाग है जो किसी सिद्धांत को सिद्ध करता है। यदि किसी सिद्धांत को प्रस्थानत्रयी द्वारा सिद्ध नहीं किया जाता है, तो वह सिद्धांत मान्य नहीं है। इसीलिए प्रस्थानत्रयी द्वारा, शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य आदि बड़े-बड़े गुरुओं ने अपने मत को सिद्ध किया।

प्रस्थानत्रयी क्या है?

'प्रस्थानत्रयी’ शब्द ‘प्रस्थान’ + ‘त्रयी’ से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है “तीन प्रस्थान”। ‘त्रयी’ अर्थात् तीन और ‘प्रस्थान’ अर्थात् जाना। सनातन धर्म में यह मत है कि यदि किसी को कोई सिद्धांत को सिद्ध करना हो, तो उन्हें तीन प्रस्थान से जाना होगा। वह तीन प्रस्थान है - १. श्रुति प्रस्थान २. स्मृति प्रस्थान और ३. न्याय प्रस्थान। इसलिए यदि किसी को कोई सिद्धांत को सिद्ध करना हो तो उन्हें इन तीन प्रस्थान से जाना होगा अर्थात् उन्हें इन तीन प्रस्थान से जाते हुए, इनके प्रमाणों से सिद्धांत को सिद्ध करना होगा।

ध्यान दे, कुछ लोग प्रस्थानत्रयी में ‘त्रयी’ का अभिप्राय तो समझते हैं, क्योंकि इसमें तीन ग्रंथ हैं, इसलिए त्रयी कहा जाता है। किन्तु, वे प्रस्थानत्रयी में ‘प्रस्थान’ का अभिप्राय नहीं समझ पाते हैं। प्रस्थान करना यानी जाना, इसका अभिप्राय है कि इन तीन ग्रंथों में जाते हुए, इनके प्रमाण से सिद्धांत को प्रमाणित करना। दूसरे शब्दों में, जैसे अंग्रेजी में कहा जाता है “Go through the books.” यानी इन पुस्तकों से जाओ। वैसे ही प्रस्थानत्रयी में ‘प्रस्थान’ अर्थात् तीन ग्रंथों से जाओ।

प्रस्थानत्रयी के तीन प्रस्थान और तीन ग्रंथ

प्रस्थानत्रयी में तीन प्रस्थान है- १. श्रुति प्रस्थान २. स्मृति प्रस्थान और ३. न्याय प्रस्थान। हर प्रस्थान का एक ग्रंथ है। श्रुति प्रस्थान में उपनिषद् है, स्मृति प्रस्थान में श्रीमद्भागवत गीता और न्याय प्रस्थान में ब्रह्मसूत्र (वेदान्त) है।

उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान इसलिए कहते है क्योंकि उपनिषद् वेद का अंश है और वेद को श्रुति कहा जाता है, इसलिए उपनिषदों को श्रुति कहा जाता है। पहले वेद लिपिबद्ध नहीं थे। भगवान से मनुष्यों तक वेद सुनते हुए (गुरु-शिष्य परम्परा अनुसार) आये। इसलिए वेद को श्रुति कहते है। ‘श्रुति’ अर्थात् ‘सुना हुआ'। विस्तार से पढ़े - वेद का ज्ञान मनुष्यों तक कैसे आया? अब यह प्रश्न भी हो सकता है कि उपनिषदों के बजाय वेदों को श्रुति प्रस्थान में रखा जाना चाहिए क्योंकि वेद श्रुति है? इसका उत्तर यह है कि वेदों में बहुत से मंत्र हैं, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण उपनिषदों में है, यह उपनिषद् वेद का अंश और सार है, ये ज्ञान और उपासना प्रधान है। इसीलिए श्रुति प्रस्थान में उपनिषदो को रखा गया हैं।

प्रस्थानत्रयी में न्याय प्रस्थान ब्रह्मसूत्र (वेदान्त) है। प्रमाणों के आधार पर किसी निर्णय पर पहुँचना न्याय कहलाता है। न्याय प्रस्थान में ब्रह्मसूत्र (वेदान्त) इसलिए है क्योंकि इसके रचिता स्वयं वेदव्यास (बादरायण) जी है जिन्होंने वेदों को लिपिबद्ध किया और ब्रह्मसूत्र लिखा जिसमें उन्होंने तर्क और प्रमाण द्वारा उपनिषदों के सिद्धांत को सिद्ध किया। न्याय प्रस्थान की आवश्यकता प्रस्थानत्रयी में इसलिए है क्योंकि बिना तर्क और प्रमाण के किसी भी सिद्धांत को सही नहीं माना जा सकता। ‘तर्क और प्रमाण’ सिद्धांत को पूर्ण रूप से न्याय देते है।

प्रस्थानत्रयी में सनातन धर्म के विशेष ग्रंथ है। इसलिए भारतवर्ष में जब कोई गुरू अथवा आचार्य अपने मत का प्रतिपादन एवं उसकी प्रतिष्ठा करना चाहते थे, तो उसके लिये सर्वप्रथम उन्हें इन तीनों पर भाष्य लिखना पड़ता था। निम्बार्काचार्य, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य आदि गुरुओं ने ऐसा कर के ही अपने मत का प्रतिपादन किया।

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