क्या करे अगर हमारा गुरु वास्तविक गुरु नहीं है?

गुरु कैसे बदले

❛गुरु मंत्र अथवा दीक्षा क्या होती है?❜ इस लेख में हमने आपको दीक्षा के बारे में बतया। अतएव आपने से कई लोग होंगे जिन्होने दीक्षा अथवा गुरु मत्र ले लिया होगा। तो अब एक प्रश्न उठता है कि, 'क्या करे अगर हमारा गुरु सही नहीं है?' क्योंकि हम लोग यह सुनते है की जीवन में केवल एक बार ही गुरु बना सकते है। और ये भी सुना है की गुरु बदला नहीं जासकता।

❛गुरु कौन है, अथवा गुरु क्या है?❜ इस लेख में हमने बतया की वास्तविक गुरु मतलब भगवत प्राप्त संत या श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु, यह दो गुण होते है गुरु में। श्रोत्रिय मतलब शास्त्रों वेदों पुराणों का ज्ञाता और ब्रह्मनिष्ठ मतलब भगवत प्राप्त (भगवान का दर्शन, प्रेम, भगवान की सारी शक्तियाँ, भगवान के पास जो कुछ है उसकी प्राप्ति) गुरु को हो। तो गुरु को शास्त्रों वेदों पुराणों का ज्ञान होता है और वो भगवान का दर्शन भी किये रहता है। तो चुकी वह गुरु ब्रह्मनिष्ठ होता है, इसलिए उसके पास सारी भगवान की शक्तियां होती है, इसी कारण से गुरु वही अलौकिक शक्ति शिष्य को दीक्षा के रूप में दे देता है।

अतएव, किसी को यह पता चल जाये की मेरा गुरु सही नहीं है, इसको भगवत प्राप्ति नहीं हुई है, यह बात हमने समझ लिया। हम भोले भाले थे, हमारे पिता भी गए गुरु मंत्र लेने, हमारे पति देव गए गुरु मंत्र लेने इत्यादि बहुत कारण हो सकते है। जैसे जबरदस्ती से, वे लोग कहते है, 'चलो मंत्र ले लो, जो मंत्र नहीं लेता उसके घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए।' ये सब बातें वही पाखण्डी गुरु लोग करते है, और दिमाग में भर देते है। हमलोग (जिव) तो अल्पयज्ञ (अज्ञानी) तो है ही, हमें शास्त्रों वेदों का ज्ञान नहीं पता है, तो किसी के झांसे में आसानी से आ सकते है। तो ऐसे किसी कारण से अगर किसी ने गुरु बना लिया है तो लड़ाई झाड़ा मत करो उससे। चुचाप अलग हो जाओ।उदासीन हो जाओ उस पाखण्डी गुरु के प्रति। उदासीन मतलब न उससे न प्रेम और न द्वेष (दुर्भावना)। ये बात ध्यान रखना संसार में कभी किसी के प्रति द्वेष (दुर्भावना) नहीं होने पाए।



अगर हम यह भी सोचे की उस (पाखण्डी गुरु या किसी अमुक व्यक्ति) ने धोका दिया है। तो हमें यह भी समझना चाहिए की 'हम भी तो धोखे में आये है।' अगर धोखा देने वाला अपराधी है तो धोखा खाने वाला भी तो अपराधी हुआ। अगर हमें किसी ने धोखा दिया तो हम क्यों बिना समझे बिना जाने चलेगये। अतएव कही झगड़ा-फसाद बवाल और दुर्भावना न करते हुए चुचाप अलग हो जाये उस गुरु से। और फिर ढूढो दूसरा कोई वास्तविक महापुरुष या गुरु को। और ढूढ़ने से अच्छा यह है कि, 'भगवान से रो कर पुकारों तो वह कृपा करके किसी वास्तविक गुरु से मिला देंगे। क्योंकि ढूढ़ने से वास्तविक गुरु अथवा महापुरुष नहीं मिलेंगे। क्योंकि जो वास्तविक महापुरुष (गुरु) है, वो बड़े विचित्र होते है। गौरांग महाप्रभु कहते है "तार वाक्य क्रिया मुद्रा विज्ञे न बुझये" अर्थात गुरु के वाक्य, उनका क्रिया, उनका रहने का तरीका, जानने की कोशिश करने पर भी नहीं जान सकते।

अगर हम लोग इस अहंकार से जाये की 'जरा देखें ये वास्तविक गुरु (महापुरुष) है की नहीं?' तो वो ऐसा व्यवहार करदेगे की फिर आप उनके पास जाना पसंद नहीं करेंगे। चुकी वो हमपुरुष है तो वो आपके ह्रदय की बात जानते है और फिर वो ऐसी अभिनय (एक्टिंग) करना जानते है कि जिस चीज से आपको नफरत है वही वो करेंगे। अतएव अहंकार से महापुरष (गुरु) के पास मत जाइये। श्रद्धा युक्त, जिज्ञाशु भाव से भगवान को रो कर पुकारिये। तो जब भगवान के द्वारा कोई महापुरुष मिलाया जायेगा तो फिर आपका काम बन जायेगा।

अब रही बात गुरु बदलने की। तो चैतन्य महाप्रभु के दो गुरु थे, ईश्वर पूरी और केशव भारती।  अतएव शास्त्रों में ऐसा सिद्धांत है ५०, १००, १००० गुरु बदल सकते है। और वो भी वास्तविक वास्तविक महापुरुष (गुरु), अगर आपको वास्तविक वास्तविक महापुरुष (गुरु) १० मिलजाए, तो आप एक महापुरुष (गुरु) को छोड़ा दूसरे महापुरुष (गुरु) को पकड़ा, फिर दूसरे महापुरुष (गुरु) छोड़ा और तीसरा महापुरुष (गुरु) को पकड़ा ऐसे करते करते आप १० क्या १००० वास्तविक वास्तविक गुरु बदल सकते है। लेकिन बस एक बात का ध्यान रहे, 'किसी भी वास्तविक महापुरुष (गुरु) के प्रति दुर्भावना नहीं होने पाये, यही शर्त है।' लेकिन अगर एक भी वास्तविक गुरु के प्रति अपराध हो गया तो, ❛नामापराध❜हो गया, तो हमारी सारी की गयी भक्ति पर पानी फिर जाता है। भगवान को इसी बात से चीड़ है, भगवान कहते है की तुम मेरी भक्ति करते हो, और मेरे संतो के प्रति दुर्भावना करते है।

तो अगर किसी महापुरुष के प्रति हम दुर्भावना अथवा ❛नामापराध❜ नहीं करे तो कितने भी गुरु हम बदल सकते है। अगर वह गुरु वास्तविक हुआ और हमने बदला तो भी कोई विवाद का विषय नहीं है। और अगर वह वास्तविक गुरु नहीं है और हमने गुरु बदला तो भी कोई मसला। ये ढोंगी गुरु, गुरु बदलने पर शिष्यों को डराते है, 'हम तुमको श्राप दे देंगे।' परन्तु वास्तविक गुरु प्रसन्न होता है, वास्तविक गुरु (महापुरुष) तो केवल इतना चाहता है कि, 'ये जीव किसी भी तरह मेरे श्याम सुन्दर, राम आदि किसी से प्रेम करे।'

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