भगवान की परिभाषा क्या है, भगवान किसे कहते है?

भगवान किसे कहते है?

भगवान यह गलत लिखावट है। भगवान् यह सही लिखावट है। लेकिन क्योंकि लोग भगवान शब्द गूगल पर सर्च करते है इसलिए हम भगवान शब्द का प्रयोग करेंगे।

भगवान किसे कहते है?

भगवान् शब्द बनता हैं, भग + वान्। इसमें "भग" धातु है। भग धातु का ६ अर्थ है:- १. पूर्ण ज्ञान, २. पूर्ण बल, ३. पूर्ण धन, ४. पूर्ण यश, ५ . पूर्ण सौंदर्य और ६. पूर्ण त्याग। विष्णुपुराण ६.५.७४ में भी यही बात कहा कि "सम्पूर्ण ऐश्वर्य को भगवान कहते हैं।" इस प्रकार भगवान शब्द से यह तात्पर्य हुआ कि जो छह गुणों से उक्त हो उसे भगवान कहते है, दुसरे शब्दों में कहें तो ये छहों गुण जिसमे नित्य (सदा) रहते हो उन्हें भगवान कहते हैं।

लेकिन यह मत सोचिए कि भगवान में केवल ६ गुण होते है। छान्दोग्योपनिषद् ८.७.१ 'एष आत्मापहतपाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोको विजिघत्सोऽपिपासः सत्यकामः सत्यसङ्कल्पो' यह भगवान के आठ गुण है। भगवान के अनंत गुण होते है। ये गुण तो प्रमुख है इसलिए ये ६ या ८ गुण अंकित है। लेकिन वास्तविकता क्या है भागवत ११.४.२ "जो भगवान के, श्रीकृष्ण के गुणों की संख्या करे, वो बाल बुद्धि वाला है, वो बच्चा है, जो कहता है, इतने (१०-२०) गुण हैं।" क्यों उस व्यक्ति की बुद्धि एक बच्चे की बुद्धि के सामान है। इसलिए क्योंकि भागवत १.१८.१४ ‘नान्तं गुणानामगुणस्य जग्मुः।’ अनंत गुण हैं, अनंत नाम हैं। अतएव जिसके गुण अनंत है, उसको कोई गिन नहीं सकता और अगर कोई गिने तो कितना गिनेगा? जितनी उसकी बुद्धि होगी। भागवत १०.१४.७ ‘गुणात्मनस्तेऽपि गुणान् विमातुं हितावतीर्णस्य क ईशिरेऽस्य।’ अर्थात कोई व्यक्ति पृथ्वी के एक-एक कणो को भले ही गिन लेने में समर्थ हो जाये। परन्तु भगवान के गुणों को कोई भी नहीं गिन सकता।

भागवत १.१८.१४ ‘नान्तं गुणानामगुणस्य जग्मुः।’ अनंत गुण हैं, अनंत नाम हैं। तो अनंत नाम में से 'क ख आदि' भी भगवान के नाम है। वेद कहता है छान्दोग्योपनिषद् ४.१०.५ 'कं ब्रह्म खं ब्रह्म।' अर्थात ये क, ख, भगवान के नाम है। ‘अकारो वासुदेवः’ सब शब्द भगवान के नाम हैं।

महत्पूर्ण ज्ञान।

जो हम आपको वेदो शास्त्रों के द्वारा परिभाषा बताने जा रहे है आप उन्हें रट (याद) कर लीजिएगा। क्योंकि जब आप वेद शास्त्र पढ़ेंगे तो कहीं भक्त या गुरु (महात्मा संत रसिक अनेक नाम है) को बड़ा कहा है तो कहीं भगवान को बड़ा कहा है, ऐसी बातें सामने आएगी। तो आप भ्रम में पड़ जायेंगे कि क्या सही है। यद्यपि सभी बातें सही है यह Vedic Aim का दवा है। तो जो हम आपको भगवान की परिभाषा बताने जा रहे है वो भक्त या गुरु (महापुरुष) पर लागु नहीं होती। बाकि सभी परिभाषा भक्त या गुरु (महापुरुष) पर लागु हो जाती है। जैसे छान्दोग्योपनिषद् ८.७.१ में आठ गुण भगवान के बताये गए है, तो यह गुण भगवत प्राप्ति के बाद भगवान भक्त या गुरु (महात्मा संत रसिक) को दे देते है। तो वः भक्त या गुरु (महात्मा संत रसिक) भगवान के सामान हो जाता है। परन्तु वेदांत ४.४.१७ में कहा कि "संसार का कार्य भगवान नहीं देते।" अर्थात भक्त अथवा गुरु को भगवान संसार बनाने का कार्य, जीवों के अनंत जन्मो के कर्मो का हिसाब किताब रखने का कार्य भगवान किसी को नहीं देते। तो इस संसार के कार्य के अलावा जो भी शक्तियाँ बुद्धि आदि है वो सब दे देते है।

भगवान की परिभाषा क्या है?

तैत्तिरीयोपनिषद ३.१ "जिससे संसार उत्पन्न हो, जिससे संसार का पालन हो, जिसमे संसार का लय हो, उसका नाम है भगवान।" वेदांत १.१.२ ने भी यही कहा "जिस भगवान से संसार प्रकट हो, पालन हो, प्रलय हो वो भगवान है।" और भागवत १.१.१ में तो पहले श्लोक में कहा "जिससे संसार उत्पन्न हो, जिससे संसार का पालन हो, जिसमे संसार का लय हो, उसका नाम है भगवान श्री कृष्ण।" तो भगवान सभी शक्तियों से उक्त होते है। अर्थात भगवान में सभी शक्ति प्रकट होती है। भगवान के अनंत नाम है। अनंत रूप है। अनंत लीला और पर्रिकर भी होता है। जैसे रामायण महाभारत यह लीला, और गोलोक, मथुरा पर्रिकर।
अवश्य पढ़े ❛क्या हिन्दू एक भगवान में मानते है, ब्रह्म परमात्मा और भगवान कौन है?❜ और ❛भगवान के सभी अवतार एक ही है, कैसे?❜

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