यज्ञ करने की विधि में ६ शर्तें।

धर्म / यज्ञ में छह शर्ते है।

वेदों में यज्ञ को प्रमुख धर्म बताया है। एक धर्मी को यज्ञ करना होता है। तो यज्ञ में छह शर्ते है। इन छह नियम को कोई पालन ठीक ठीक करें तो उसे यश, मान-सम्मान, कीर्ति धन की प्राप्ति होगी और मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा।

धर्म / यज्ञ में छह शर्ते है।

यज्ञ में छह नियम हैं।

  1. किस जगह यज्ञ हो। हर जगह यज्ञ नहीं हो सकता।
  2. किस समय यज्ञ हो। हर समय यज्ञ नहीं हो सकता। आज भद्रा है, आज का नक्षत्र गड़बड़ है। ये सब विचार कर के यज्ञ का सही समय का निर्णय होता है।
  3. कर्ता। मतलब जो यज्ञ करने वाला है उसको यह विश्वास पक्का हो कि हम जो आहुति डालेंगे तो इंद्र आएगा उस आहुति को लेने। हमारे भारत में एक को भी विश्वास नहीं है। पंडित जी ने कहा स्वाहा: बस। पंडित जी को विश्वास ही नहीं है।
  4. द्रब्य। द्रब्य (बर्तन, सामान आदि) भी सही-सही होना चाहिए। जिस द्रव्य (बर्तन) से यज्ञ होता है वो सही कमाई का हो। काले धंधे की कमाई का द्रव्य (बर्तन) नहीं होना चाहिए। जो वेद में वर्णाश्रम धर्म है उसके अनुसार पैसा कमा कर यज्ञ हो सकता है। जैसे ब्राह्मण भीख मांगकर पैसा जुटा सकता है। तो भीख में जो पैसे मिले उससे बर्तन लेकर यज्ञ हो।
  5. विधि। विधि भी सही हो। जो यज्ञ की विधि हो वो भी एकदम सही-सही हो।
  6. मंत्र। मंत्र भी सही हो। वेद मंत्र में स्वर होता है। उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वर है। अगर एक वेद मंत्र के एक शब्द के एक अक्षर में स्वर गलत हो गया बोलने में। तो यजमान का नाश हो जायेगा। जो यज्ञ करा रहे थे उसका उल्टा हो जायेगा। लाभ की जगह हानि हो जाएगी।

अतएव या तो आप यज्ञ करे तो एक एक विधि सही सही करे। नहीं तो, नहीं करे तो अच्छा है क्योंकि उस यज्ञ का परिणम भोगना पड़ेगा, अगर एक भी यज्ञ की विधि में गलत हुई तो गलत फल मिलेगा। तो परिणाम उल्टा भोगना पड़ेगा। इतिहास में अनेक उदाहरण है।

अवश्य पढ़े राजा निमि - श्राप से सम्बंधित एक कथा। और राजा नृग को कर्म-धर्म का फलस्वरूप गिरगिट बनना पड़ा।

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