लीला क्या है? लीला का मतलब? भगवान की लीला की वास्तविकता।
लीला का मतलब क्या होता है? लीला है क्या? यह प्रश्न हमारे मन में होता है कि यह लीलाओं में जो होता है यह क्या सत्य है या असत्य है। क्योंकि लीला में असंभव भी संभव होने लग जाता है। जैसे वेद कहता है कि भगवान का कोई पिता नहीं है। लेकिन फिर भी श्री कृष्ण के पिता वासुदेव हैं, राम के पिता हैं दशरथ।
तो लीला का मतलब क्या है?
लीला का मतलब होता है क्रीड़ा, नाटक। क्यों? इसलिए क्योंकि लीला में जो कुछ भी होता है वह वास्तविकता नहीं है। वह एक दिन हुआ है यह बात सत्य है, लेकिन वह वास्तविकता नहीं है।
जिस प्रकार एक फ़िल्म जब बनती है तो वह एक लेखक के मन की कल्पना होती है। और उस कल्पना को किसी दिन अभिनेता व अभिनेत्री ने क्रियात्मक रूप से प्रकट कर दिया है। बस कुछ ऐसा ही समझिए भगवान की लीलाओं के बारे में, यह भगवान स्वयं लीला रचते हैं और उस लीला में अपने भक्तों को ले जाते हैं।
जैसे माँ यशोदा, देवकी, पिता वसुदेस इत्यादि। यह भक्त है जिनको भगवान अपने लीला में शामिल करते है। भगवान लीला के माध्यम से हमारे लिए जो माया के आधीन है, उनके लिए अपनी प्रिय लीलाएं और उन लीलाओं में जो ज्ञान है वह छोड़ कर चले जाते हैं।
जैसे, राम दंडकारण्य में सीता को खोज रहे है। तो जैसा की हम जानते है की राम तो भगवान है वो तो अंतर्यामी है। तो उनको तो पता होना चाहिए की सीता कहा है? तो यह लीला हो रही है, भगवान को सब कुछ मालूम है लेकिन वो जान बुझ कर सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करते है।
कोई भी लीला देखते या पढ़ते समय दो बातों का ध्यान रखना चाहिए।
१. जब भक्त और भगवान दोनों साथ हो तो जो कुछ होता है, वह वास्तविकता (सचमुच) वैसा हो रहा है, वहाँ पर भगवान नाटक नहीं करते। भक्ति के भाव के अनुसार भगवान व्यवहार करने लगते है। जैसे जब सबरी के जूठे बेर बार-बार प्रशंसा करके राम खा रहे है। तो यह भगवान का भक्त के प्रति भाव बनावटी नहीं है। भगवान को प्रेम से दिया वह सबरी के जूठे बेर वाकई पसंद आ रहे है। तो भक्त और भगवान के बिच जो कुछ होता है, वो वास्तविकता है। श्री कृष्ण को जब यशोदा डंडा लेकर मरने जा रहे है तो श्री कृष्ण वाकई माँ के डंडे से डर रहे है, वो नाटक नहीं कर रहे है।
२. लीला में बुद्धि नहीं लगनी चाहिए। क्यों? इसलिए क्योंकि अगर आप बुद्धि लगयेगे तो आप लीला का आनंद नहीं ले पाएंगे। हमारे ऋषि मुनियों ने कहा है की लीला (कथा) में बुद्धि लगाने पर आप को हर जगह शंका ही शंका होगा। और वेद शास्त्र कहते है कि शंका होने से भक्त का पतन होता है।
इसलिए क्योंकि लीला में जो कुछ हो रहा है वो भगवान द्वारा रचित है, और लीला में जो भगवान करते है, वो सब उनके वास्तविक स्वभाव से विपरीत होता है। जैसे श्री कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी है, लेकिन उनकी १६ हजार १०८ रानी थी और हर एक रानी के १० बच्चे भी थे। ये सब कुछ है परन्तु श्री कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी है। ये कैसे हो सकता है, यह हमारे मन में शंका होने लग जाती है। यधपि इस शंका का समाधान भी हमने अपने लेख में बताया है किगोपियों को शंका - कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी कैसे?
हमारा मन माया का बना है और भगवान की लीला दिव्य है इसलिए भगवान की सभी लीला में जो कुछ भी घटित होता है उसके बार में हम पूरी तरह से तबतक नहीं समझ पाएंगे जबतक हम माया से मुक्त नहीं हो जाते। अतएव माया से मुक्त होने से पहले हम अपने मन को भगवान में लगये। जिसके परिणाम स्वरूप मन का लगाव भगवान में जल्दी हो।