स्वार्थ शब्द का अर्थ क्या है? क्या हम स्वार्थी है?

क्या हम स्वार्थी है?

स्वार्थ का अर्थ

'स्व' का अर्थ है अपना। इस प्रकार स्वार्थ का अर्थ है, जिस में मेरा हित छिपा हो। 'अपना' का अर्थ क्या है? अपना का अर्थ होता है - मैं का। अब 'मैं का' अर्थ क्या है? ज्ञान की दृष्टि से ‘मैं’ का दो अर्थ होता है -

१. ज्ञानी लोग ‘मैं’ को आत्मा कहते हैं।
२. अज्ञानी लोग ‘मैं’ शरीर को कहते हैं।

कौन स्वार्थी है?

संसार में स्वाभाविक यह देखा गया है कि जब भी लोग कास्ट में होते है अथवा जब उनको धोखा मिलता है। तब उनके मुख से जो वाक्य निकलता है कि सब स्वार्थी है। यह वाक्य सत्य है। यानी संसार में सभी लोग स्वार्थी है। तुलसीदास लिकते है, श्रीरामचरितमानस किष्किंधाकाण्ड, शिव जी पार्वती जी से कह रहे है कि-

सुर नर मुनि सब कै यह रीती।
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति॥
- श्रीरामचरितमानस किष्किंधाकाण्ड

भावार्थ :- देवता, मनुष्य और मुनि सबकी यह रीति (आचरण) है कि स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति (प्रेम) करते है।

अर्थात् हर व्यक्ति अपने स्वार्थ (सुख/आनंद) के लिए किसी से प्रेम करते है। वो प्रेम चाहे जड़ (नशीले पदार्थ, मोबाइल, खाना) से हो या चेतन (माता-पिता, पति-पत्नी) से हो।

'अर्थ' शब्द का अर्थ

‘अर्थ’ का अर्थ है - अभिप्राय, मतलब, प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य।

ज्ञानी और अज्ञानी दोनों स्वार्थी है।

यह बात तो सत्य ही है कि संसार में प्रतेक व्यक्ति आनंद चाहता है। तो अज्ञानी का भी अर्थ है आनंद की प्राप्ति और ज्ञानी का भी अर्थ आनंद की प्राप्ति। अतएव जो अज्ञानी शरीर को ‘मैं’ मानता है वो भी आनंद के लिए ही प्रयत्न कर रहा है और जो आत्मा को ‘मैं’ मान रहा वो भी आनंद के लिए ही प्रयत्न कर रहा है। इसलिए दोनों लोग स्वार्थी है।

दूसरे शब्दों में, ‘स्वार्थ’ का अर्थ है “मैं का (अपना) मतलब”। जो ज्ञानी है वो ‘मैं’ (आत्मा) के मतलब की बात सोचते है, चाहते है। वे आत्मा के आनंद की प्राप्ति चाहते है। और जो अज्ञानी है वो ‘मैं’ (शरीर) के मतलब की बात सोचते है, चाहते है। वे शरीर के आनंद की प्राप्ति चाहते है। अतएव अगर कोई संत, भक्त आपको मिले तो वो भी स्वार्थी है, क्योंकि वो भगवान सम्बन्धी आनंद चाहते है। और जो अज्ञानी लोग है, जो अपने आप को शरीर मानते है, वो संसार (माया) सम्बन्धी आनंद (माँ-पिता, पति-पत्नी का प्यार, मान-सम्मान, धन) चाहते है। अवश्य पढ़े सभी लोग स्वार्थी है, क्यों और कैसे?

अतएव स्वार्थी सब है। जो यह कहता है कि तुम स्वार्थी हो। तो वो स्वयं यह नहीं समझता है कि वो स्वयं भी स्वार्थी है। तब ही तो! जब उसने अपना स्वार्थ दूसरे से पूरा करना चाहता था और जब पूरा नहीं हुआ तब क्रोध में बोल पड़ा कि तुम स्वार्थी हो, पूरा विश्व स्वार्थी है, इत्यादि। किन्तु, वह यह नहीं सोचता कि वह स्वयं भी तो दूसरे से अपना स्वार्थ सिध्य करना चाहता था, अपना काम उससे निकलवाना चाहता था? अतएव हम सब स्वार्थी है।

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