भगवान के माता-पिता कौन हैं? - वेद, गीता, भागवत के अनुसार

भगवान के माता-पिता कौन हैं?

हम सभी के माता-पिता होते हैं। प्रत्येक मनुष्य के कोई न कोई माता-पिता तो होते हैं। तो फिर भगवान के माता-पिता भी होंगे? ऐसे विचित्र प्रश्न वेदों को न जानने वाले व्यक्ति के मन में आते है। आध्यात्मिक लोग जिन्होंने वेद शास्त्र ढंग से नहीं पड़ा वो इसका उत्तर विचित्र ही देते है।

वे भोले लोग कहते है कि देखों शास्त्रों में भगवान से बड़ा भक्त (गुरु, संत) को कहा गया है। जैसे कबीर जी ने कहा 'बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।' अर्थात् भगवान ने गुरु को नमन करने को कहा।' भगवान ने कहा भागवत ९.४.६३ 'अहं भक्तपराधीनो' अर्थात् मैं मेरे भक्त के आधीन हूँ।

लेकिन, उपर्युक्त प्रमाणों से ये भोले लोग नहीं सिद्ध कर पते कि भगवान के पिता संत अथवा गुरु है। हाँ! उपर्युक्त दिए प्रमाण से यह जरूर सिद्ध होता है कि जब भक्त भगवत प्राप्ति कर लेता है तो वो भगवान को अत्यंत प्रिय हो जाता है। इसलिए वे कहते है कि मैं मेरे भक्त के आधीन हूँ।

भगवान के माता-पिता कौन हैं?

भगवान श्रीकृष्ण कहते है गीता १५.७ 'ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः' अर्थात् आत्मा मेरा ही सनातन अंश है। यहाँ पर ध्यान दीजिये भगवान का सनातन अंश जीव है। इसका मतलब जीव और भगवान यह दोनों सनातन है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। या दूसरे शब्दों में कहे जो हमेसा से था, है और रहेगा।

भागवत १.५.४ 'जिज्ञासितमधीतं च ब्रह्म यत्तत्सनातनम्' अर्थात् नारद जी वेदव्यास से कहते है की आपने सनातन ब्रह्म (भगवान ) तत्व को भी आपने खूब विचारा हैं और जान लिया है। श्री कृष्ण कहते है उद्धव से भागवत ११.२९.२५ 'सनातनं ब्रह्मगुह्यं परं ब्रह्माधिगच्छति' अर्थात् वो वेद के भी परम् रहस्य सनातन परब्रह्म को प्राप्त कर लेगा। श्री कृष्ण ने कहा गीता ४.३१ 'यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्।' हे कुरुवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं।

उपर्युक्त प्रमाणों से ये सिद्ध होता है कि भगवान सनातन है, वो किसी दिन पैदा नहीं हुए। भगवान हमेसा से थे, है और रहेंगे। अब समझये उनके सिवा और कौन है?

एतज्ज्ञेयं नित्यमेवात्मसंस्थं नातः परं वेदितव्यं हि किञ्चित् ।
भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्ममेतत्॥
- श्वेताश्वतर उपनिषद् १.१२

अर्थात् तीन नित्य (सनातन) तत्व है। जीव, माया और भगवान ।

सर्वाजीवे सर्वसंस्थे बृहन्ते अस्मिन्हंसो भ्राम्यते ब्रह्मचक्रे।
पृथगात्मानं प्रेरितारं च मत्वा जुष्टस्ततस्तेनामृतत्वमेति॥
- श्वेताश्वतर उपनिषद् १.६

अर्थात् जीव, माया से पृथक एक भगवान है।

श्वेताश्वतर उपनिषद् १.१० 'क्षरं प्रधानममृताक्षरं हरः क्षरात्मानावीशते देव एकः' अर्थात् क्षर (माया), अक्षर (जीव) दोनों पर शासन करने वाला भगवान है। अतएव माया और जीव का भगवान अध्यक्ष है।

अस्तु, तो कुल तीन तत्व सनातन है, भगवान के सिवा दो तत्व है माया व जीव, और भगवान इन दोनों पर शासन करता है। इसका अर्थ हुआ की भगवान का कोई पिता-माता है ही नहीं। क्योंकि भगवान के आलावा जो तत्व है उनका स्वामी भगवान है। लेकिन भगवान की कोई इशिता नहीं है, उनका कोई शासक नहीं, उनका कोई स्वामी नहीं, भगवान स्वतंत्र है। अतएव जब भगवान स्वतंत्र है, उनसे ऊपर कोई नहीं है। इसलिए भगवान का कोई पिता-माता भी नहीं है।

लेकिन भगवान दयालु, कृपालु, अकारण करुणा इत्यादि गुणों से युक्त है। इसलिए उन्होंने जीवों को स्वतंत्रता दे दिया है कि वो भगवान को माता, पिता भ्राता, सभी सम्बन्ध बना सकते है। जैसे, गीता ९.१८ 'गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।' अर्थात् भगवान हमारे सबकुछ है। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव...त्वमेव सर्वम् मम देव देव॥' अर्थात् भगवान से हमारे सब कुछ सम्बन्ध है। इसलिए तो अकारण करुण भवगान के पिता दशरथ, वासुदेव, नन्द बाबा और माता देवकी, यशोदा, कौशल्या आदि हैं।

दरअसल भक्तों के लिए भगवान सबकुछ करने को तैयार हो जाते है, वो अपने वेद के कानून की भी परवाह नहीं करते। इसीलिए भगवान के माता-पिता पुराणों में दशरथ, वासुदेव, नन्द बाबा, देवकी, यशोदा, कौशल्या आदि हैं। इसी प्रकार विष्णु ब्रह्मा के पिता है, ब्रह्मा शिव के पिता है, लेकिन यह लीला में है। वास्तव में विष्णु, ब्रह्मा और शिव एक ही है और भगवान है। सनातन धर्म में एक भगवान ही है। अधिक जानने के लिए पढ़ें सबसे बड़े भगवान कौन है, राम कृष्ण शंकर या विष्णु? और भगवान के सभी अवतार एक ही है, कैसे?

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