रक्षाबंधन

रक्षाबंधन मनाने का उद्देश्य क्या है?

रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं, भगवान् को भी बाँधी जाती है।

नेपाल के पहाड़ी इलाकों में ब्राह्मण एवं क्षेत्रीय समुदाय में रक्षा बन्धन गुरू और भागिनेय के हाथ से बाँधा जाता है। लेकिन दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह बहन से राखी बँधवाते हैं।

अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है) -

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।२०।
- भविष्यपुराण पर्व ४ (उत्तरपर्व) अध्याय १३७

भावार्थ - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ?

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है ऐसा कहा जाता है।

स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है - दानवेन्द्र राजा बलि ने जब १०० यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान् विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान् वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान् ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान् विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान् को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान् के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान् बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।

राखी या रक्षाबंधन का त्योहार मनाने का उद्देश्य क्या है?

रक्षाबंधन का त्योहार इसलिए मनाते है कि हमारी कोई रक्षा करे। रक्षाबंधन का सीधा अर्थ है - ऐसा बंधन जो हमारी रक्षा कर सके अथवा अपनी रक्षा के लिए किसी से बंधन। अस्तु, वेद कहता है कि जो जीव माया के आधीन है और जबतक यह माया रहेगी तबतक काम, क्रोध, लोभ, मोह, इर्षा, द्वेष रहेगा। इन्ही दोषों के कारण हम दुखी है तथा हमको भय है किसी वस्तु या व्यक्ति से छीन जानेका। अतएव माया से रक्षा कोई करे तो हमारा उधर हो।

रक्षाबंधन कोई भी मनाता हो उसमे एक ही भाव दीखता है वो है हमारी रक्षा का। हमारी रक्षा! माया से केवल भगवान् या संत (वास्तविक जैसे तुलसी मीरा आदि) ही करने में समर्थ है। अतएव उन्हीं से हमारी रक्षा करने को कहना है। वे ही केवल एकमात्र हमारी रक्षा करने में समर्थ है। अन्य कोई नहीं।

अतएव भगवान् से बड़ा कौन रक्षक है? भगवान् तो त्वमेव सर्वं मम देव देव है (हमारे सबकुछ है)। श्रीकृष्ण तो खुलेआम योगक्षेमं वहाम्यहम् कह तथा कर रहे है। श्री कृष्ण कहते है कि अप्राप्त को देना (योग) और प्राप्त की रक्षा करना (क्षेमं), मैं वहन करता हूँ। राखी तो ऐसे ही भगवान् और उनके जन को बंधी जानी चाहिए।

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