माता देवकी द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति। - भागवत पुराण

देवकी द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति।

जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ उसवक्त वो अपने चतुर्भुज विष्णु के स्वरूप में जन्म लिए। उसी वक्त वासुदेव जी द्वारा विष्णु स्तुति के बाद देवकी जी ने भगवान विष्णु की स्तुति। माता देवकी जी ने जब भगवान के चतुर्भुज स्वरूप को देखा तो उनसे जो कुछ कहा, वह स्तुति देवकी विष्णु स्तुति के नाम से जाना जाता है। वह स्तुति इस प्रकार है -

रूपं यत् तत् प्राहुरव्यक्तमाद्यं ब्रह्म ज्योतिर्निर्गुणं निर्विकारम्।
सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं स त्वं साक्षात् विष्णुरध्यात्मदीपः॥२४॥
नष्टे लोके द्विपरार्धावसाने महाभूतेषु आदिभूतं गतेषु।
व्यक्ते अव्यक्तं कालवेगेन याते भवान् एकः शिष्यते शेषसंज्ञः॥२५॥
योऽयं कालस्तस्य तेऽव्यक्तबन्धो चेष्टां आहुः चेष्टते येन विश्वम्।
निमेषादिः वत्सरान्तो महीयान्तं त्वेशानं क्षेमधाम प्रपद्ये॥२६॥
मर्त्यो मृत्युव्यालभीतः पलायन्लो कान् सर्वान् निर्भयं नाध्यगच्छत्।
त्वत्पादाब्जं प्राप्य यदृच्छयाद्य स्वस्थः शेते मृत्युरस्मादपैति॥२७॥
- भागवत पुराण १०.३.२४-२७
श्री कृष्ण का जन्म

भावार्थ:- माता देवकी ने कहा- प्रभो! वेदों ने आपके जिस रूप को अव्यक्त और सबका कारण बतलाया है, जो ब्रह्म, ज्योतिस्वरूप, समस्त गुणों से रहित और विकारहीन हैं, जिसे विशेषणरहित - अनिर्वचनीय, निष्क्रिय एवं केवल विशुद्ध सत्ता के रूप में कहा गया है - वही बुद्धि आदि के प्रकाशक विष्णु आप स्वयं हैं। जिस समय ब्रह्मा की पूरी आयु - दो परार्थ समाप्त हो जाते हैं, काल शक्ति के प्रभाव से सारे लोक नष्ट हो जाते हैं, पंच महाभूत अहंकार में, अहंकार महत्तत्त्व में और महत्तत्त्व प्रकृति में लीन हो जाता है, उस समय एकमात्र आप ही शेष रह जाते हैं, इसी से आपका एक नाम ‘शेष’ भी है। प्रकृति के एकमात्र सहायक प्रभो! निमेष से लेकर वर्षपर्यंत अनेक विभागों में विभक्त जो काल है, जिसकी चेष्टा से यह सम्पूर्ण विश्व सचेष्ट हो रहा है और जिसकी कोई सीमा नहीं है, वह आपकी लीला मात्र है। आप सर्वशक्तिमान और परम कल्याण के आश्रय हैं। मैं आपकी शरण लेती हूँ। प्रभो! यह जीव मृत्युग्रस्त हो रहा है। यह मृत्युरूप कराल व्याल से भयभीत होकर सम्पूर्ण लोक-लोकान्तरों में भटकता रहा है; परन्तु इसे कभी कहीं भी ऐसा स्थान न मिल सका, जहाँ यह निर्भय होकर रहे। आज बड़े भाग्य से इसे आपके चरणारविन्दों की शरण मिल गयी। अतः अब यह स्वस्थ होकर सुख की नींद सो रहा है। औरों की बात ही क्या, स्वयं मृत्यु भी इससे भयभीत होकर भाग गयी है।

स त्वं घोरात् उग्रसेनात्मजात् नः त्राहि त्रस्तान् भृत्यवित्रासहासि।
रूपं चेदं पौरुषं ध्यानधिष्ण्यं मा प्रत्यक्षं मांसदृशां कृषीष्ठाः॥२८॥
जन्म ते मय्यसौ पापो मा विद्यात् मधुसूदन।
समुद्विजे भवद्धेतोः कंसाद् अहमधीरधीः॥२९॥
उपसंहर विश्वात्मन् अदो रूपं अलौकिकम्।
शंखचक्रगदापद्म श्रिया जुष्टं चतुर्भुजम्॥३०॥
- भागवत पुराण १०.३.२८-३०

भावार्थ:- (माता देवकी ने कहा -) प्रभो! आप हैं भक्त्तभयहारी। और हम लोग इस दुष्ट कंस से बहुत ही भयभीत हैं। अतः आप हमारी रक्षा कीजिये। आपका यह चतुर्भुज दिव्यरूप ध्यान की वस्तु है। इसे केवल मांस-मज्जामय शरीर पर ही दृष्टि रखने वाले देहाभिमानी पुरुषों के सामने प्रकट मत कीजिये। मधुसूदन! इस पापी कंस को यह बात मालूम न हो कि आपका जन्म मेरे गर्भ से हो रहा है। मेरा धैर्य टूट रहा है। आपके लिए मैं कंस से बहुत डर रही हूँ। विश्वात्मन! आपका यह रूप अलौकिक है। आप शंख, चक्र, गदा और कमल की शोभा से युक्त अपना यह चतुर्भुज रूप छिपा लीजिये।

विश्वं यदेतत् स्वतनौ निशान्ते यथावकाशं पुरुषः परो भवान्।
बिभर्ति सोऽयं मम गर्भगो अभूद्अ हो नृलोकस्य विडंबनं हि तत्॥३१॥
- भागवत पुराण १०.३.३१

भावार्थ:- (माता देवकी ने कहा -) प्रलय के समय आप इस सम्पूर्ण विश्व को अपने शरीर में वैसे ही स्वाभाविक रूप से धारण करते हैं, जैसे कोई मनुष्य अपने शरीर में रहने वाले छिद्ररूप आकाश को। वही परम पुरुष परमात्मा आप मेरे गर्भवासी हुए, यह आपकी अद्भुत मनुष्य-लीला नहीं तो और क्या?

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