राम अयोध्या आगमन से पूर्व भरत हनुमान मिलन। - वाल्मीकि रामायण अनुसार

भरत हनुमान मिलन

राम का अयोध्या आगमन से पूर्व, हनुमान जी निषादराज गुह तथा भरत जी को श्री राम के आगमन की सुचना देते है। यह लीला कुछ इस प्रकार है -

श्री राम का हनुमान जी को आदेश

अयोध्यां त्वरितो गत्वा शीघ्रं प्लवगसत्तम।
जानीहि कच्चित् कुशली जनो नृपतिमन्दिरे॥३॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - (भरद्वाज-आश्रम पर उतरने से पहले विमान से ही श्री राम ने हनुमान जी से कहा) 'कपिश्रेष्ठ! तुम शीघ्र ही अयोघ्या में जाकर पता लो कि राजभवन में सब लोग सकुशल तो हैं न?

शृङ्गवेरपुरं प्राप्य गुहं गहनगोचरम्।
निषादाधिपतिं ब्रूहि कुशलं वचनान्मम॥४॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - शृङ्गवेरपुर में पहुँचकर वनवासी निषादराज गुह से भी मिलना और मेरी ओर से कुशल कहना।

श्रुत्वा तु मां कुशलिनं अरोगं विगतज्वरम्।
भविष्यति गुहः प्रीतः स ममात्मसमः सखा॥५॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - मुझे सकुशल, नीरोगी और चिन्तारहित सुनकर निषादराज गुह को बड़ी प्रसन्नता होगी, क्योंकि वह मेरा मित्र है। मेरे लिए आत्मा के समान है।

अयोध्यायाश्च ते मार्गं प्रवृत्तिं भरतस्य च।
निवेदयिष्यति प्रीतो निषादाधिपतिर्गुहः॥६॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - निषादराज गुह प्रसन्न होकर तुम्हें अयोध्या का मार्ग और भरत का समाचार बतायेगा।

भरतस्तु त्वया वाच्यः कुशलं वचनान्मम।
सिद्धार्थं शंस मां तस्मै सभार्यं सहलक्ष्मणम्॥७॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - भरत के पास जाकर तुम मेरे ओर से उनका कुशल पूछना और उन्हें सीता एवं लक्ष्मण सहित मेरे सफल मनोरथ होकर लोटने का समाचार बताना।'

फिर श्री राम ने हनुमान जी से रावण वध तथा शत्रुओं पर विजय आदि की बातों को भरत से बताने को कहा और भरत तथा राज्य का हाल कुशल है या नहीं यह जानने को कहा।

इति प्रतिसमादिष्टो हनुमान् मारुतात्मजः।
मानुषं धारयन् रूपमयोध्यां त्वरितो ययौ॥१९॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - श्रीरघुनाथजी के इस प्रकार आदेश देने पर पवनपुत्र हनुमान जी का मनुष्य रूप धारण करके तीव्रगति से अयोध्या की ओर चल दिये।

हनुमान जी का निषादराज गुह जी को श्री राम के आगमन की सुचना देना

लङ्घयित्वा पितृपथं विहगेन्द्रालयं शुभम्।
गङ्गायमुनयोर्भीमं समतीत्य समागमम्॥२१॥
शृङ्गवेरपुरं प्राप्य गुहमासाद्य वीर्यवान्।
स वाचा शुभया हृष्टो हनूमानिदमब्रवीत्॥२२॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - अपने पिता वायु के मार्ग - अंतरिक्ष को, जो पक्षिराज गरुड़ का सुन्दर गृह है, लाँघकर गङ्गा और यमुना के वेगशाली संगम को पार करके शृङ्गवेरपुर में पहुँचकर पराक्रमी हनुमान जी निषादराज गुह से मिले और बड़े हर्ष के साथ सुन्दर वाणी में बोले -

सखा तु तव काकुत्स्थो रामः सत्यपराक्रमः।
ससीतः सह सौमित्रिः स त्वां कुशलमब्रवीत्॥२३॥
पञ्चमीमद्य रजनीमुषित्वा वचनान्मुनेः।
भरद्वाजाभ्यनुज्ञातं द्रक्ष्यस्यद्यैव राघवम्॥२४॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - 'तुम्हारे मित्र ककुत्स्थ कुलभूषण सत्यपराक्रमी श्री राम सीता और लक्ष्मण के साथ आ रहे हैं और उन्होंने तुम्हें आपने कुशल-समाचार कहलाया है। वे प्रयाग में हैं और भरद्वाज मुनि के कहने से उन्हीं के आश्रम में आज पञ्चमी की रात बिताकर कल उनकी आज्ञा ले वहाँ से चलेंगे। तुम्हें यहीं श्री रघुनाथ जी का दर्शन होगा।'

इतना कहकर हनुमान जी आकाश मार्ग से आगे चले।

हनुमान जी भरत जी को श्री राम के आगमन की सुचना देना

हनुमान जी ने पहले अयोध्या नगर वासियों को देखा फिर अयोध्या से एक कोस की दूरी पर उन्होंने आश्रमवासी भरत जी को चीर-वस्त्र में शरीर से दुर्बल और सिर पर जटा बधे देखा। वो महर्षियों के समान तेजस्वी जान पड़ते थे। रघुनाथ जी की दोनों चरणपादुकाओं को आगे रखकर वे पृथ्वी का शाशन करते थे।

तं धर्ममिव धर्मज्ञं देहबन्तमिवापरम्॥३५॥
उवाच प्राञ्जलिर्वाक्यं हनुमान् मारुतात्मजः।
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - मनुष्य देह धारण करके आये हुए दूसरे धर्म की भाँति उन धर्मज्ञ भरत के पास पहुँचकर पवनकुमार हनुमान जी हाथ जोड़कर बोले-

वसन्तं दण्डकारण्ये यं त्वं चीरजटाधरम्॥३६॥
अनुशोचसि काकुत्स्थं स त्वा कौशलमब्रवीत्।
प्रियमाख्यामि ते देव शोकं त्यज सुदारुणम्॥३७॥
अस्मिन् मुहूर्ते भ्रात्रा त्वं रामेण सह सङ्गतः।
निहत्य रावणं रामः प्रतिलभ्य च मैथिलीम्॥३८॥
उपयाति समृद्धार्थः सह मित्रैर्महाबलैः।
लक्ष्मणश्च महातेजा वैदेही च यशस्विनी॥३९॥
सीता समग्रा रामेण महेन्द्रेण शची यथा।
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - 'देव! आप दण्कारण्य में चीर-वस्त्र और जटा धारण करके रखने वाले जिन श्रीरघुनाथजी के लिये निरन्तर चिन्तित रहते हैं, उन्होंने आपको अपना कुशल-समाचार कहलाया है और आपका भी पूछा है। अब आप इस अत्यन्त दारुण शोक को त्याग दीजिये। मैं आपको बड़ा प्रिय समाचार सुना रहा हूँ। आप शीग्र ही अपने भाई श्रीराम से मिलेंगे। भगवान श्री राम रावण को मारकर मिथिलेशकुमारी को वापस ले सफलमनोरथ हो अपने महाबली मित्रों के साथ आ रहे हैं। उनके साथ मानतेजस्वी लक्ष्मण और यशखिनी विदेहराजकुमारी सीता भी हैं। जैसे देवराज इन्द्र के साथ शची शोभा पति हैं, उसी प्रकार श्रीराम के साथ पूर्णकामा सीता जी सुशोभित हो रही है।'

हनुमान जी के ऐसा कहने पर भरत जी आनन्दविभोर होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और हर्ष से मूर्च्छित हो गये। दो घड़ी के बाद उन्हें होश आया और वो हनुमान जी को दोनों भुजाओं में भर लिया और शोक संसर्ग से शून्य परमानन्दजनित विपुल अश्रुबिंदुओं से उन्हें नहलाने लगे। फिर इस प्रकार बोले -

देवो वा मानुषो वा त्वमनुक्रोशादिहागतः॥४३॥
प्रियाख्यानस्य ते सौम्य ददामि ब्रुवतः प्रियम्।
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२५

भावार्थः - भैया! तुम होइ देवता हो या मनुष्य, जो मुझपर कृपा करके यहाँ पधारे हो? सौभ्य! तुमने जो यह प्रिय संवाद सुनाया है, इसके बदले मैं तुम्हें कौन-सी प्रिय वस्तु प्रदान करूँ? (मुझे तो कोई ऐसा बहुमूल्य उपहार नहीं दिखलाई देता, जो इस प्रिय संवाद के तुल्य हो)

तब भरत जी ने १ लाख गौएँ, १०० उत्तम गाँव तथा उत्तम विचार करने वाली सोलह कन्याएँ पत्नीरूप में समर्पित करने को कहा। परन्तु, हनुमान जी को इन उपहारों से कोई मतलब तो था नहीं इसलिए वो कुछ कहे नहीं।

हनुमान जी का भरत को श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के वनवास सम्बन्धी सारे वृत्तान्तों को सुनाना

राघवस्य हरीणां च कथमासीत् समागमः।
कस्मिन्देशे किमाश्रित्य तत्त्वमाख्याहि पृच्छतः॥३॥
स पृष्टो राजपुत्रेण बृस्यां समुपवेशितः।
आचचक्षे ततः सर्वं रामस्य चरितं वने॥४॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२६

भावार्थः - (भरत जी हनुमान जी से बोले-) 'सौभ्य! श्रीरघुनाथ जी का और वानरों का यह मेल-जोल कैसे हुआ? किस देश में और किस कारण को लेकर हुआ? यह मैं जानना चाहता हूँ। तुम मुझे ठीक-ठीक बताओ।' राजकुमार भरत के इस प्रकार पूछने पर कुशासनपर बैठाये हुए हनुमान जी ने श्री राम का वनवासविषयक सारा चरित्र उनसे कह सुनाया।

हनुमान जी ने श्री राम वनवास का चरित्र विस्तार से भरत जी से कहा। उसके बात हनुमान जी ने कुछ इस प्रकार कहा -

तं गङ्गां पुनरासाद्य वसन्तं मुनिसंनिधौ।
अविघ्नं पुष्ययोगेन श्वो रामं द्रष्टुमर्हसि॥५४॥
रामायण युद्धकाण्ड सर्ग १२६

भावार्थः - (किष्किंधा से पुष्पकविमान द्वारा) वहाँ से फिर गङ्गा तटपर आकर प्रयाग में भरद्वाज मुनि के समीप वे ठहरे हुए हैं। कल पुष्य नक्षत्र के योग में आप बिना किसी विघ्न-बाधा के श्री राम का दर्शन करेंगे।'

हनुमान जी के इन सभी वचनों से भरत जी अति प्रसन्य हुए। इसके बाद अगले दिन श्री राम का अयोध्या में आगमन हुआ।

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