आत्मा अगले जन्म में किस शरीर को धारण करती है?
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आत्मा किस शरीर को धारण करती है, इसका निर्णय हम नहीं कर सकते। हमने आपको इस पृष्ठ में क्या प्रारब्ध (भाग्य) अनुसार ही हमारे कर्म होते हैं? कर्म के प्रकार में हमने बतया की कर्म ३ प्रकार के होते है?
१. संचित कर्म।
२. प्रारब्ध कर्म।
३. क्रियमाण कर्म।
आप (क्या प्रारब्ध (भाग्य) अनुसार ही हमारे कर्म होते हैं? कर्म के प्रकार) इस पृष्ठ को पढ़ ले तो आपको सहर्ष ही समाझ में आजायेगा। अस्तु, हमारा संचित कर्म अनंत मात्रा है। अतएव, अगले जन्म में यही संचित कर्म में से, थोड़ा सा अंश निकाल कर प्रारब्ध भोगने को मिलता है। तो हमरे प्रारब्ध से किसी चीज का मिलन और वियोग निश्चित होता है। परन्तु, हमारा प्रारब्ध हमारे क्रियमाण कर्म को रोक नहीं सकता परन्तु उसके फल को पाने में बाधा डाल सकता है। अतएव क्रियमाण कर्म करने का अधिकार, हमें स्वत्रांत दिया गया है, लेकिन फल भोगने में हम प्रत्रांत हैं। फल हमारे भाग्य अनुसार ही मिलते है।
अस्तु, हमारा अगला शरीर, अर्थात आत्मा अगला शरीर कौन सा धारण करेगी ये बात २ चीजों पर निर्भर है।
१. संचित कर्म और २. क्रियमाण कर्म।
हम जिस व्यक्ति का चिंतन मरते वक्त करते है, हमें उस वस्तु का फल प्राप्त हो जाता है। जैसे हमारे यहाँ एक ऋषि थे, उनका नाम जड़भरत था। एक दिन वे नदी पर नहाने के लिए गए। वहाँ उस समय एक हिरनी पानी पीने आई। तभी वहाँ अचानक शेर की आवाज सुनकर वह उछलकर नदी के तट पर चढ़ गई। बहुत ऊंचे स्थान पर चढऩे के कारण उसका गर्भपात हो गया। नदी लहरों के साथ उसके गर्भ से निकला बच्चा जड़भरत के पास पहुँचा। तो वे उसे अपने साथ आश्रम ले आए। वे उसका अपने बच्चों की तरह पालन-पोषण करने लगे।
वे दिन रात बस उसी के चिंतन में लगे रहते। एक दिन आश्रम के पास एक हिरणों का झुंड आया। वह हिरण उन्हीं के साथ चला गया। जब वह बच्चा वापस नहीं लौटा तो जड़भरत सोचने लगे, "कि कहीं उसे किसी भेड़िये ने तो नहीं खा लिया। क्या वह आज जंगल से लौटेगा या नहीं" वे दिन रात बस उसी हिरण के बच्चे का चिंतन करते रहे। जब उनकी मृत्यु का समय आया तब भी वे उसी हिरण के बारे में सोचते रहें। इसी तरह हिरण के वियोग में जड़भरत ने अपने प्राण त्याग दिए। यही कारण था कि उन्हें अगला जन्म हिरण के रूप में लेना पड़ा।
तो देखिये मरते वक्त जहाँ हमारा मन रहेगा, अगला जन्म हमारा उसी शरीर का होता है। परन्तु, यह हमेशा सही नहीं होता। अगर मरने के बाद कोई स्वर्ग जाता है। तो उसके बाद उसको कुकर सुकर कुत्ते बिल्ली कीट पतंग आदि योनि(शरीर) में जन्म मिलता है। और अगर वह मरने के बाद नरक में जाता है। तो जब उसका भोग पूरा हो जाता है। तो वह अपने संचित कर्म का अंश प्रारब्ध का निर्णय होता है फिर वह व्यक्ति अपने मरने वक्त जिसका ध्यान करता है, उसे अगला शरीर वही मिलता है।
यहाँ पर एक बात और ध्यान देना है कि, केवल मन का चिन्तन ही नहीं अगला शरीर दिलाता है। आपके संचित कर्म पर भी निर्भर करता है। क्योंकि रामगीता: केवल एक बार राम ने प्रजा को उपदेश दिया था। उसमे उन्होंने कहा रामचरितमानस:उत्तरकाण्ड ४२ "बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥"बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं के शरीर से भी दुर्लभ है। कठोपनिषद् २.३.४ कहता है, "ततः सर्गेषु लोकेषु शरीरत्वाय कल्पते" अर्थात करोड़ों कल्प चौरासी लाख में, भोग योनियों में, घूमना पड़ेगा। भारतीय काल गणना के लिए Wikipedia पर जाये। ४ अरब, २९ करोड़, ४० लाख, ८० हजार वर्ष का एक कल्प होता है। तो, एक कल्प नहीं, ‘सर्गेषु’, बहुवचन कह रहा है वेद। हजारों कल्पों तक कुकर, शूकर, कीट, पतंग योनियों में दुःख भोगना होगा।
अतएव हमारा यह मानव शरीर, मरने के बाद तुरंत ही नहीं मिलजाता। हाँ! कुछ लोग जैसे भगवान के भक्त! उनके क्रियमाण कर्म अच्छे होते है, तो उन लोगों को कुछ ही जन्मों के उपरांत में मानव शरीर मिलजाता है। जिससे वे लोग भगवान की भक्ति में जो कमी रह गयी है, उसको पूरा करके, भगवान के प्रेमानंद में आनंद माय होजाते है।