क्या सब कुछ भगवान करते है? - वेद, महाभारत अनुसार

क्या जो कुछ होता है वो भगवान करता है?

जब लोग कष्ट में होते है अथवा नहीं भी होते तो प्रायः यह सोचते है कि जो होगा मंजूरे खुदा होगा, सब अल्लाह की मर्जी, जो भगवान चाहेंगे वही होगा, सब कुछ उसके हाथ में है, उसके बिना तो एक पत्ता नहीं हिल सकता, हम तो उसके हाथ की कठपुतली है, जैसा वो करता है हम वैसा ही करते है इत्यादि।

लोग इस तरह की बातें करते हैं। कुछ लोग तो वेद, वेदान्त, गीता, महाभारत आदि को भी नहीं छोड़ते। वो इनका प्रमाण देते हुए कहते है कि हमारे ग्रंथों में लिखा है, हम छूठ नहीं बोल रहे है। ये रहे प्रमाण -

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
- रामचरितमानस बालकाण्ड

अर्थात् :- जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे।

एष ह्येवैनं साधु कर्म कारयति तं यमेभ्यो लोकेभ्य
उन्निनीषत एवं उ एवैनमसाधु कर्म कारयति तं यमधो निनीषते।
- कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद् ३.८

अर्थात् :- भगवान जीव को शुभ कर्म करवाते हैं जिससे वह ऊपर उठे। भगवान् उसे अशुभ कर्म में करवाते हैं जिससे वह नरक जाए।

केनोपनिषद् के ३ खण्ड में कथा है जिसमें अग्नि देवता, वायु देवता के सामने भगवान ने एक तिनका रख दिया और कहा इसे जला कर दिखाओ, उड़ा कर दिखाओ। देवता असमर्थ हो गए। अतएव इसका सार भी यही निकला जाता है कि भगवान के इच्छा के बिना एक तिनका भी नहीं हिल सकता। तो इस प्रकार के अनेक प्रमाण तथा तर्क से भाग्यवाद को बढ़ावा दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप समाज में अंधविश्वास पनपता है। कुछ लोग इस सिद्धांत को मानकर पुरुषार्थ नहीं करते और भगवान को दोषी मानते हैं कि आपने मेरे साथ यह अन्याय क्यों किया? और साथ ही तरह-तरह की गालियाँ भी देते है।

सब कुछ भगवान ही करते है?

एक वाक्य में कहें, तो उत्तर है नहीं। ऐसा कैसे? इसलिए क्योंकि हमारे ही ग्रंथों में निम्नलिखित प्रमाण हैं -

करम प्रधान बिस्व करि राखा।
जो जस करइ सो तस फलु चाखा॥2॥
- श्रीरामचरितमानस अयोध्याकांड

अर्थात् :- विश्व में कर्म को ही प्रधान कर रखा है। जो जैसा करता है, वह वैसा ही फल भोगता है।

योनिमन्ये प्रपद्यन्ते शरीरत्वाय देहिनः।
स्थाणुमन्येऽनुसंयन्ति यथाकर्म यथाश्रुतम्॥
- कठोपनिषद् २.७

अर्थात् :- जिसका जैसा कर्म होता है और शास्त्रादि के श्रवण द्वारा जिसको जैसा भाव प्राप्त हुआ है, उन्हीं के अनुसार शरीर धारण करने के लिए कितने ही जीवात्मा तो नाना प्रकार की जङ्गम योनियों को प्राप्त होते जाते हैं और दूसरे कितने की स्थावर भाव का अनुसरण करते है।

धातैव खलु भूतानां सुखदुःखे प्रियाप्रिये।
दधाति सर्वमीशानः पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरन्॥
- महाभारत वन पर्व अध्याय ३०.२२

अर्थात् :- विधाता ईश्वर ही सबके पूर्व कर्मों के अनुसार प्राणियों के लिये सुख-दुःख, प्रिय-अप्रिय की व्यवस्था करते हैं।

यानी ईश्वर हमारे ही पूर्व कर्मों के अनुसार सुख-दुःख की व्यवस्था करते हैं। यानी हमारे ही कर्मों का फल है भाग्य या सुख-दुःख। कर्म-भाग्य के विषय में हमने पहले ही अपने लेख में बता दिया है कि हम कर्म करने में स्वतंत्र है, परन्तु कर्म का फल हमें भोगना पड़ेगा।

अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः।
ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग नरकमेव च॥
- महाभारत वन पर्व अध्याय ३०.२८

अर्थात् :- यह जीव अज्ञानी और अपने सुख-दुःख के विधान में भी असमर्थ है। यह ईश्वर से प्रेरित होकर ही स्वर्ग और नरक में जाता है।

यानी जीव अज्ञानी है वो अपने ही सुख-दुःख का विधान करने में असमर्थ है। इसलिए सुख-दुःख का विधान यानी जब कर्म के फल देने का वक्त आता है तब ईश्वर को प्रेरित करना पड़ता है। क्योंकि कर्म तो स्वभाव से ही जड़ का है वो फल अपने आप नहीं बन सकता। इसलिए ईश्वर प्रेरित करते है अर्थात् कर्म का फल देते है जिसके परिणाम स्वरूप वो स्वर्ग और नरक में जाता है।

यश्च दिष्टपरो लोके यश्चापि हठवादकः।
उभावपि शठावेतौ कर्मबुद्धिः प्रशस्यते॥
- महाभारत वन पर्व अध्याय ३२.१३

अर्थात् :- संसार में जो केवल प्रारब्ध (भाग्य) के भरोसे कर्म नहीं करता तथा जो हठवादी है-बिना किसी युक्ति के हठपूर्वक यह मानता है कि कर्म करना अनावश्यक है, जो कुछ मिलना होगा वो अपने आप मिल जायेगा, वे दोनों ही मूर्ख हैं। जिसकी बुद्धि कर्म (पुरुषार्थ) में रुचि रखती है, वही प्रशंसा का पात्र है।

अतएव भाग्य भरोसे रहना तो मूर्खता है ही और जो ऐसा सोचते है कि कर्म करो फल तो अपने आप मिलेगा वो भी मूर्खता है। क्योंकि कर्म तो जड़ है, अपने-आप फल नहीं बन जाता। इसलिए भगवान कर्म फल दाता है जो कर्म अनुसार फल देता है, ऐसा जानना चाहिए।

“होइहि सोइ जो राम रचि राखा।” यह इस बात को दर्शाता है कि हमारे किये गए कर्म के अनुसार भाग्य राम ने रचा है, उसी अनुसार हमारे जीवन में कुछ घटनाए घटित होती है, इसलिए तर्क करने का कोई लाभ नहीं है।

अतएव उपर्युक्त उपनिषद् (वेद), महाभारत, रामचरितमानस के प्रमाणों से यह सिद्ध हुआ कि सबकुछ भगवान नहीं करते है क्योंकि वो तो हमारे कर्म का फल देते है। कर्म करने का अधिकार हमें दिया गया है। जो पुरुषार्थ नहीं करते और भाग्य भरोसे बैठे रहते है वो मुख लोग अज्ञानी है। इसलिए आलस्य और भाग्यवाद को त्याग कर पुरुषार्थ करना चाहिए।

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