वेद का विभाजन
वेद के चार भाग क्यों हुआ
ऋषि कृष्ण द्वैपायन भगवान के अवतार है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर में हुआ और ऋषि कृष्ण द्वैपायन जी भी द्वापर में हुए इन्हे आज वेदव्यास जी के नाम से जाना जाता है। द्वापर युग के अंत में जब कलियुग का प्रारम्भ हो रहा था, तब एक समस्या उत्पन्य होने लगी। क्योंकि वेद एक था और पहले एक वेद के सम्पूर्ण ज्ञान को एक व्यक्ति याद रख लेता था परन्तु कलियुग के मनुष्य को सम्पूर्ण वेद का ज्ञान याद करना संभव नहीं था। इसलिए उस वक के ऋषि मुनियों ने वेद के विभाजन करने की इच्छा की। परन्तु वेद का विभाजन करना इतना सरल नहीं हैं। फिर वेद का विभाजन कौन करें, तो फिर वेदव्यास जी को चुना गया। क्योंकि वेदव्यास जी के बुद्धि की तुलना उस वक्त कोई और नहीं कर सकता था। और वेदव्यास वेद के दो विरोधी मंत्रो का समाधान करते थे। इसलिए ऋषि कृष्ण द्वैपायन अर्थात वेदव्यास जी ने उस समय के ऋषिओं के आज्ञा से वेद का चार भाग किया।
वेद के चार भाग हैं
यह वेद चार भागों में विभाजित हुए १. ❛ऋग्वेद❜ २.यजुर्वेद ३. ❛सामवेद❜ ४. ❛अथर्ववेद❜
सृष्टि के प्रारंभ में वेद अविभक्त तथा एक लाख मंत्र वाला था। अठाइसवें द्वापर में वेदव्यास ने अपने पूर्व के वेदव्यासों के अनुरूप ही चार भागों में संयुक्त वेद को विभक्त किया। इनके अध्ययन के लिए चार विद्वान शिष्यों को दीक्षित किया गया। पेल को ऋग्वेद, वेश्म्पायन को यजुर्वेद, जैमिनी को सामवेद तथा सुमन्तु को अथर्ववेद का ज्ञाता बनाया। चार वेद में भी एक वेद के चार भाग किये गए है उन्हें मन्त्र संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद कहते है।
हर एक वेद के चार भाग हैं
वेद के चार भाग हैं - ❛मन्त्र संहिता❜, ❛ब्राह्मण❜, ❛आरण्यक❜ और ❛उपनिषद्❜।
(१) मन्त्र संहिता में वैदिक देवी देवताओं की स्तुति के मंत्र हैं।
(२) ब्राह्मण में वैदिक कर्मकाण्ड और यज्ञों का वर्णन है।
(३) आरण्यक में कर्मकाण्ड और यज्ञों की रूपक कथाएँ और तत् सम्बन्धी दार्शनिक व्याख्याएँ हैं।
(४) उपनिषद् में वास्तविक वैदिक दर्शन का सार है।
उपवेद
आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद तथा स्थापत्यवेद- ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद कात्यायन ने बतलाये हैं। स्थापत्यवेद - स्थापत्यकला के विषय, जिसे वास्तु शास्त्र या वास्तुकला भी कहा जाता है, इसके अन्तर्गत आता है।
धनुर्वेद - युद्ध कला का विवरण। इसके ग्रंथ विलुप्त प्राय हैं।
गन्धर्वेद - गायन कला।
❛आयुर्वेद❜ - वैदिक ज्ञान पर आधारित स्वास्थ्य विज्ञान।