क्यों रामचरितमानस में नहीं लिखा राम की बहन शान्ता का प्रकरण?
क्यों तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में नहीं लिखा राम की बहन शान्ता का प्रकरण? यह प्रश्न हम लोग के मन में आता हैं। जिसके कारण हमारे मन में यह शंका होती है की रामचरितमानस सही है या वाल्मीकि की रामायण सही है? इस शंका का समाधान इस लेख में करने वाले है।
राजा रोमपाद जिन्होंने शान्ता को दशरथ से गोद लिया था। शान्ता का विवाह उन्होंने ऋष्यश्रृंग (श्रृंगी ऋषि) के साथ किया था।
ऋष्यश्रृंग (श्रृंगी ऋषि) के जन्म, जीवन, शान्ता से विवाह और राजा रोमपाद की कथा को वाल्मीकि जी ने अपने रामायण बालकाण्ड नवम: सर्ग - १.९.२ - २० में संछेप में और विस्तार से बालकाण्ड दस और ग्यारह सर्ग में लिखा है। इसी कथा में राम की बहन शान्ता का प्रकरण है, जिसमे सुमन्त्र जी दशरथ जी को बताते है कि कैसे राजा रोमपाद की वजह से उनके वर्षा नहीं होनेके कारण उन्होंने ऋष्यश्रृंग (श्रृंगी ऋषि) को बुलाया और शान्ता का विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ कर दिया। इसी प्रकरण में एक बार सुमन्त्र जी दशरथ जी से कहते है - "ऋष्यशृङ्गः तु जामाता पुत्रान् तव विधास्यति। १-९-१९" भावार्थ - इस तरह ऋष्यश्रृंग आपके (दशरथ के) जामाता (दामाद) हुए। वे ही आपके लिए पुत्रों को सुलभ कराने वाले यज्ञ कर्म का सम्पादन करेंगे।
यही श्लोक को मुख्य आधार मानकर शान्ता को राम की बहन बताया जाता है और यह सत्य भी है। इस बारे में हमने अपने लेख में विस्तार पूर्वक बता चुके है। अवश्य पढ़े क्या भगवान राम की बहन शांता है? - प्रमाण वाल्मीकि रामायण। अस्तु, तो वाल्मीकि जी ने रामायण में यह सब विस्तार से लिखा है। इसके अलावा वाल्मीकि रामायण में शान्ता का प्रकरण मुख्य तौर से नहीं मिलता।
क्यों रामचरितमानस में नहीं लिखा शान्ता का प्रकरण?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऋष्यश्रृंग के जन्म, जीवन, शान्ता से विवाह और राजा रोमपाद के प्रकरण को श्रीरामचरितमानस में नहीं लिखा। क्योंकि हो सकता है, तुलसीदास जी इस प्रकरण को लिखना उचित न समझते हो, क्योंकि वो राम का चरित्र लिख रहे थे। तुलसीदास जी ने कई प्रकरण को विस्तार से नहीं लिखा है, जैसे कैसे राजा दशरथ जी ने यज्ञ की तयारी की इत्यादि बातो को तुलसीदास जी नहीं लिखते है वही वाल्मीकि जी अपने रामायण में विस्तार से लिखते है। इसीलिए ऋष्यश्रृंग (श्रृंगी ऋषि) के बारे में तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में बस इतना लिखा की श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा। पुत्रकाम सुभ जग्य करावा॥
भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें। प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें॥3॥
भावार्थ:- वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। मुनि के भक्ति सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरु (हविष्यान्न खीर) लिए प्रकट हुए।
अब इसी प्रकरण को वाल्मीकि जी ने विस्तार से लिखा है। यहा तक की वाल्मीकि जी ने अग्निदेव के स्वरूप, शरीर का रंग, शरीर का आकार, वस्त्र के बारे में भी लिखा है। वही तुलसीदास जी नहीं लिखते है। जैसा तुलसीदासजी करते हैं ऐसा ही वाल्मीकि जी भी करते हैं, उन्होंने अपनी रामायण में राम के जन्म के बारे में विस्तारपूर्वक नहीं लिखा है। उन्होंने केवल इतना लिखा कि राम का जन्म हो गया। लेकिन वही तुलसीदास जी इस प्रकरण को विस्तार पूर्वक लिखते हैं कि
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥
भावार्थ - दीनों पर दया करनेवाले, कौसल्या के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरनेवाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देनेवाला मेघ के समान श्याम शरीर था; चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारनेवाले भगवान प्रकट हुए।
मतलब वह चार भुजा धारण करके आये। उसके बाद उनकी मां उनसे कहती हैं कि
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥4॥
भावार्थ - माता फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, (मेरे लिए) यह सुख परम अनुपम होगा। (माता का) यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया। (तुलसीदासजी कहते हैं-) जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद पाते हैं और (फिर) संसार रूपी कूप में नहीं गिरते।
तो कुछ बातें तुलसीदास जी ने नहीं लिखी है तो कुछ बातें वाल्मीकि जी भी नहीं लिखी है।
तो यह महापुरुष पर निर्भर करता है कि वो क्या लिखना चाहते है। संत महात्मा तो स्वेच्छाचारी होते है, जो मन में आता है वो करते है। उनको तो कोई यह नहीं कहने की हिम्मत कर सकता है कि आपको यह भी लिखना होगा। ऐसा तो कोई कहेगा नहीं।
अस्तु, तो तुलसीदास जी ने राम के चरित्र को श्रीरामचरितमानस में लिखा है। अतएव हो सकता है उनको शान्ता अथवा श्रृंगी ऋषि के जन्म, जीवन, शान्ता से विवाह और राजा रोमपाद के बारे में बारे में लिखना उचित न समझा हो। वास्तविकता क्या है नहीं लिखने का? वो तुलसीदास से मिलने के बाद ही ज्ञात हो सकता है।