नवरात्रि मनाने का उद्देश्य क्या है?
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। 'नवरात्र' कहना चाहिए। सुबालोपनिषत् २.१ "आत्मानं द्विधाकरोदर्धेन स्त्री अर्धेन पुरुषो" भगवान को आधा कर दो एक स्त्री और एक पुरुष। पद्म पुराण में कहा कि राधा के अंश के अंश है दुर्गा, कमला, ब्राह्मणी आदि। और राधा रानी के चरण से करोणों विष्णु पैदा होते हैं।
गोपनादुच्यते गोपी राधिका कृष्णवल्लभा॥५२॥
देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता।
सर्वलक्ष्मीस्वरूपा सा कृष्णाह्लादस्वरूपिणी॥५३॥
ततः सा प्रोच्यते विप्र ह्लादिनीति मनीषिभिः।
तत्कलाकोटिकोट्यंश दुर्गाद्यास्त्रिगुणात्मिकाः॥५४॥
सा तु साक्षान्महालक्ष्मीः कृष्णो नारायणः प्रभुः।
नैतयोर्विद्यते भेदः स्वल्पोऽपि मुनिसत्तम॥५५॥
इयं दुर्गा हरी रुद्रः कृष्णः शक्र इयं शची।
सावित्रीयं हरिर्ब्रह्मा धूमोर्णासौ यमो हरिः॥५६॥
बहुना किं मुनिश्रेष्ठ विना ताभ्यां न किंचन।
चिदचिल्लक्षणं सर्वं राधाकृष्णमयं जगत्॥५७॥
इत्थं सर्वं तयोरेव विभूतिं विद्धि नारद।
- पद्मपुराणम खण्ड ५ (पातालखण्ड) अध्याय ८१.५३-५८
संक्षिप्त भावार्थ:- (शिव जी नारद जी से कहते है- ) वे श्रीकृष्ण की आराधना में तन्मय होने के कारण 'राधिका' कहलाती है। श्रीकृष्णमयी होने से ही वे 'परदेवता' है। पूर्णतः लक्ष्मीस्वरूपा है। श्रीकृष्ण के आह्लादका मूर्तिमान स्वरूप होने के कारण मनीषीजन उन्हें 'ह्लादिनी शक्ति' कहते हैं। श्रीराधा साक्षात् महालक्ष्मी हैं और भगवान श्रीकृष्ण साक्षात् नारायण हैं। मुनिश्रेष्ठ! इनमें थोड़ा सा भी भेद नहीं है। अधिक क्या कहा जाय, उन दोनों के बिना किसी भी वस्तु की सत्ता नहीं है। जड़-चेतनमय सारा संसार श्रीराधा-कृष्ण का स्वरूप है। इस प्रकार सबको उन्हीं दोनों की विभूति समझो।
इसका अर्थ ये मत लगाना की ये राधा विष्णु शंकर अलग-अलग है। ये सब लोग एक ही है, अंतर केवल प्रेम (भक्ति) लीला का है। भगवान कुछ कम और कुछ अधिक शक्तियां प्रकट करते है अपने अलग-अलग स्वरूप में। इसीलिए वो हमें अलग-अलग जान पड़ते है। परन्तु सिध्यांत रूप से सब एक है, अर्थात् भगवान के समस्त अवतार एक है। अतएव जो हम नवरात्र में पूजा करते है या तो उन्हें राधा का ही स्वरूप जान कर उनसे 'भगवत प्रेम' मांगे, या अगर आप श्रीराधा के अंश के रूप में देखते है तो भी उनसे 'हरि-हरिजन के चरणों में प्रेम बना रहे' यह मांगिये। ऐस हमारा मत है।
यह ध्यान रहे कि भगवान से कभी भी भूल कर भौतिक वस्तु नहीं मांगनी चाहिए। क्योंकि भौतिक जगत के समान अनंत जन्म तक हम लोगों ने माँगा है, परन्तु उसका परिणाम दुःख ही मिला है। भगवान से कुछ माँगना ही हो तो दिव्य वस्तु मांगे, जैसे उनका प्रेम, उनका सानिध्य, उनकी सेवा इत्यादि।
अतएव नवरात्रि मनाने का उद्देश्य यही होना चाहिए कि दुर्गा माँ से हम यह आराधना करे की वो श्री कृष्ण का दिव्य प्रेम हमें दिला दे। ऐस हमारा मत है।