वेद मनुष्यों के पास कैसे आए? - भागवत पुराण अनुसार

वेद भगवान से मनुष्यों तक कैसे पहुँचा? - भागवत पुराण अनुसार

वेद का ज्ञान भगवान से मनुष्यों तक कैसे पहुँचा? इस प्रश्न का उत्तर स्वयम भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत पुराण में दिया है।

श्रीभगवानुवाच
कालेन नष्टा प्रलये वाणीयं वेदसंज्ञिता।
मयादौ ब्रह्मणे प्रोक्ता धर्मो यस्यां मदात्मकः॥३॥
तेन प्रोक्ता स्वपुत्राय मनवे पूर्वजाय सा।
ततो भृग्वादयोऽगृह्णन्सप्त ब्रह्ममहर्षयः॥४॥
तेभ्यः पितृभ्यस्तत्पुत्रा देवदानवगुह्यकाः।
मनुष्याः सिद्धगन्धर्वाः सविद्याधरचारणाः॥५॥
किन्देवाः किन्नरा नागा रक्षःकिम्पुरुषादयः।
- भागवत ११.१४.३-६

भावार्थ:- भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- प्रिय उद्धव! यह वेदवाणी समय के फेर से प्रलय के अवसर पर लुप्त हो गयी थी; फिर जब सृष्टि का समय आया, तब मैंने अपने संकल्प से ही इसे ब्रह्मा को उपदेश किया, इसमें मेरे भागवत धर्म का ही वर्णन है। ब्रह्मा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र स्वायम्भुव मनु को उपदेश किया और उनसे भृगु, अंगिरा, मरीचि, पुलह, अत्रि, पुलस्त्य और क्रतु-इन सात प्रजापति-महर्षियों ने ग्रहण किया। तदनन्तर इन ब्रह्मर्षियों की सन्तान देवता, दानव, गुह्यक, मनुष्य, सिद्ध, गन्धर्व, विद्याधर, चारण, किन्देव*, किन्नर**, नाग, राक्षस और किम्पुरुष*** आदि ने इसे अपने पूर्वज इन्हीं ब्रह्मर्षियों से प्राप्त किया।

भृगु, अंगिरा, मरीचि, पुलह, पुलस्त्य और क्रतु और अत्रि ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं।

* किन्देव - श्रम और स्वेदादि दुर्गन्ध से रहित होने के कारण जिनके विषय में ‘ये देवता हैं या मनुष्य’ ऐसा सन्देह हो, वे द्वीपान्तर-निवासी मनुष्य।
** किन्नर - मुख तथा शरीर आकृति से कुछ-कुछ मनुष्य के समान प्राणी।
*** किम्पुरुष - कुछ-कुछ पुरुष के समान प्रतीत होने वाले वानरादि।

अस्तु, तो ब्रह्माजी से उनके पुत्रों ने वेद का ज्ञान पाया फिर वो ज्ञान मनुष्यों तक उनके पुत्रों ने दिया। ऐसे ही गुरु-शिष्य परम्परा से वेद आगे बढता गया।

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