गुरु मंत्र अथवा दीक्षा कब मिलती है?
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❛गुरु मंत्र अथवा दीक्षा क्या होती है?❜ हमने इस लेख में जो ढोंगी बाबा गुरु मंत्र अथवा दीक्षा देते है उनका पहचान बताया और यह बताया की गुरु मंत्र अथवा दीक्षा को कोई अलौकिक शक्ति कहता है, तो कोई दिव्य आनंद और कोई दिव्य प्रेम आनंद कहता है। यदपि यह सब एक ही है। दीक्षा देना का मतलब अलौकिक शक्ति देना भी है, दिव्य प्रेम देना भी है और दिव्य आनंद देना भी है। अब एक प्रश्न है।
दीक्षा कब मिलती है?
जब हमारा अंतःकरण (मन) शुद्ध हो जाता है तब दीक्षा मिलती है। शुद्ध का मतलब संछेप में समझिये जब अंतःकरण (मन) एक भोले भाले बच्चे की तरह हो जाता है, वह बच्चा न तो किसी के बारे में बुरा सोचता है न तो किसी के बारे में अच्छा सोचता है, अर्थात संसार से उस बच्चे का मन ना तो राग (प्रेम) करता है और ना तो द्वेष (दुश्मनी) करता है। जब किसी वक्ति का अंतःकरण भगवान में मन लगाकर, इस अवस्था पर पहुँच जाता है। तब वास्तविक गुरु आपके अंतःकरण को दिव्य बनायेगा। तब वास्तविक गुरु अथवा संत अथवा महापुरुष आपको गुरु मंत्र या दीक्षा देता है। अब दीक्षा का समय आया है, जब अंतःकरण शुद्ध हो गया। इससे पहले दीक्षा नहीं दी जा सकती। क्योंकि हमारा अंतःकरण उस अलौकिक शक्ति को सम्हाल (सहन)नहीं सकता। अगर कोई गुरु अथवा महापुरुष बिना अधिकारी बने किसी को जबरदस्ती दीक्षा देदें, तो उस व्यक्ति का शरीर फट के चूर-चूर हो जाये। वह अनधिकारी व्यक्ति सहन नहीं सकता। हमारा (माया अधीन जिव) का अंतःकरण इतना कमजोर है की उस दीक्षा (अलौकिक शक्ति/ दिव्य आनंद, दिव्य प्रेम आनंद) को सहन नहीं कर सकता।
हम लोग संसार के सुख और दुःख को ही नहीं सम्हाल (सहन) कर सकते है। जैसे एक गरीब को १ करोड़ की लॉटरी खुल जाये, तो वह बेहोश हो जाता है, किसी की प्रेमिका प्रेमी अथवा माता पिता संसार छोड़ देते है, तो उसका दुःख भी वह व्यक्ति नहीं सम्हाल पता है। तो यह जो अलौकिक शक्ति (दिव्य आनंद) है इसे कोई क्या सम्हाल पायेगा।
ये दीक्षा अनेक प्रकार से दी जाती है। अगर वह दीक्षा बोलके दी जाये तो उसे हमलोग गुरु मंत्र कहते है। वास्तविक गुरुओं ने अनेक तरीकों से दीक्षा दिया है, कभी कान में बोल के, आँख से देख के, गले लगाके यहाँ तक फूक मर कर दिया है। दीक्षा देना है, किसी बहाने देदें, चाहे एक घुसा मार के देदें। दीक्षा देने में यह आवश्यक नहीं है की कान से दिया जाये। गौरांग महाप्रभु ने गले लगाके दीक्षा दिया है।
दीक्षा का अर्थ होता है: "गुरु के पास रहकर सीखी गई शिक्षा का समापन (अंत)।" दीक्षा के अर्थ से ही समझ लीजिये। जब आप गुरु के पास रह कर सारा ज्ञान ले लगे और गुरु के अनुसार चल कर अपने अंतःकरण को शुद्ध कर लगे। तब अंत में गुरु आपको दीक्षा दे देगा। दीक्षा मिलने के बाद शिष्य को गुरु से कुछ और पाना सेष नहीं रहता। दीक्षा देना अर्थात गुरु के द्वारा शिक्षा का समापन (अंत)। यह दीक्षा मतलब भगवन प्रेम होता है। जिसे गुरु अंतःकरण शुद्ध होने के बाद दे देते है। और दीक्षा आपको मांगना नहीं पड़ता। गुरु आपको बिना मांगे दे देगा, चाहे वो आपसे किती भी दूर क्यों न हो।