सती जी ने अनेक भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु देखे। - सती शिव की कथा
हमने अपने पिछले लेख में बताया सती का सीता का रूप धारण करके राम की परीक्षा लेना। - सती शिव की कथाअब उसके आगे क्या हुआ यह बताने जा रहे है।
सतीजी को संकोच
सती जी सोच में पड़ गयी की राम ने मुझे पहचान कैसे लिया, जबकि मैं तो सीता का रूप बनाई हूँ। सतीजी डरती हुई चुपचाप शिवजी के पास जाने लगी, उनको बड़ी चिन्ता होने लगी कि मैंने शंकरजी का कहना न माना और अपने अज्ञान का श्री रामचन्द्रजी पर आरोप किया। अब जाकर मैं शिवजी को क्या उत्तर दूँगी? यह सोचते-सोचते सतीजी के हृदय में अत्यन्त भयानक जलन पैदा हो गई। पीछे की ओर फिरकर देखा, तो वहाँ भी भाई लक्ष्मणजी और सीताजी के साथ श्री रामचन्द्रजी सुंदर वेष में दिखाई दिए।
अनंत भगवान के रूप दिखाए पड़े
सतीजी जिधर देखती हैं, उधर ही श्री रामचन्द्रजी विराजमान हैं और ने अनेक भगवान अनेक शिव, ब्रह्मा और विष्णु देखे। उन्होंने अनगिनत अनुपम सती, ब्रह्माणी और लक्ष्मी देखीं। जिस-जिस रूप में ब्रह्मा आदि देवता थे, उसी के अनुकूल रूप में (उनकी) ये सब (शक्तियाँ) भी थीं। सती जी देखा कि अनेकों वेष धारण करके देवता प्रभु श्री रामचन्द्रजी की पूजा कर रहे हैं। सीता सहित श्री रघुनाथजी बहुत से देखे, परन्तु उनके वेष अनेक नहीं थे। वही रघुनाथजी, वही लक्ष्मण और वही सीताजी- सती ऐसा देखकर बहुत ही डर गईं। वो काँपने लगी और देह की सारी सुध-बुध जाती रही। वे आँख मूँदकर मार्ग में बैठ गईं। फिर आँख खोलकर देखा, तो वहाँ सती जी को कुछ भी न दिखाई पड़ा। तब वे बार-बार श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाकर वहाँ चलीं, जहाँ श्री शिवजी थे।
शिवजी का सती से प्रश्न और सती का झूठ
जब सती जी पास पहुँचीं, तब शिवजी ने हँसकर करके कहा कि तुमने रामजी की किस प्रकार परीक्षा ली, सारी बात सच-सच कहो। सतीजी ने श्री रघुनाथजी के प्रभाव को समझकर डर के मारे शिवजी से छिपाव किया और कहा - हे स्वामिन्! मैंने कुछ भी परीक्षा नहीं ली, वहाँ जाकर आपकी ही तरह प्रणाम किया। आपने जो कहा वह झूठ नहीं हो सकता, मेरे मन में यह विश्वास है।
तब शिवजी ने ध्यान करके देखा और सतीजी ने जो कुछ भी किया था, सब जान लिया। और फिर शिवजी ने श्री रामचन्द्रजी की माया को सिर नवाया, जिसने प्रेरणा करके सती के मुँह से भी झूठ कहला दिया। सुजान शिवजी ने मन में विचार किया कि हरि की इच्छा रूपी भावी प्रबल है।
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