क्या भगवान श्री राम का शरीर प्रकृति मनुष्य का शरीर था या दिव्य था?
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भगवान श्रीराम का शरीर प्राकृत शरीर नहीं था। वह प्राकृत मानव की तरह नहीं बने थे। इस का प्रमाण वाल्मीकि रामायण था रामचरितमानस में मिलता है। अतः हम उन प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध होता है कि भगवान राम का शरीर हमारी तरह पंचमहाभूत (जल तेज वायु अग्नि और आकाश) का बना हुआ नहीं है। राम जी का शरीर दिव्य है। इस बारे में सर्वप्रथम वाल्मीकि जी ने लिखा वाल्मीकि रामायण - उत्तरकाण्ड सर्ग ९०६
अदृश्यं सर्वमनुजैः सशरीरं महाबलम्।
प्रगृह्य लक्ष्मणं शक्रो दिवं सम्प्रविवेश ह॥७.१०६.१७॥
भावार्थ:- महाबली लक्ष्मण अपने शरीर के साथ ही सब मनुष्यो की द्रष्टि से ओझल हो गये। उस समय देवराज इंद्र उन्हें साथ लेकर स्वर्ग में चले गये।
७.१०६.१७- यह श्लोक में वाल्मीकि जी कहते है कि लक्ष्मण अपने शरीर के साथ ही सब मनुष्यो की द्रष्टि से ओझल हो गये। अतएव लक्ष्मण जी मरे नहीं है वो शरीर सहित स्वर्ग में चले गये। स्वर्ग में कोई भी व्यक्ति मनुष्य शरीर के साथ नहीं जा सकता। उसको दिव्य शरीर चाहिए तभी वो स्वर्ग जा सकता है। अतएव यहाँ पर यह भी सिध्य हो जाता है की लक्ष्मण जी मानव (मनुष्य) की भाती दीखते थे परन्तु वो दिव्य शरीर वाले है।
पितामहवचः श्रुत्वा विनिश्चित्य महामतिः।
विवेश वैष्णवं तेजः सशरीरः सहानुजः॥७.११०.१२॥
भावार्थ:- पितामह ब्रह्मा जी की यह बात सुनकर परम बुद्धिमान श्री रघुनाथ जी ने कुछ निश्चय करने भाइयों के साथ शरीर सहित अपने वैष्णो तेज (विष्णु शरीर) में प्रवेश किया।
७.११०.१२ श्लोक से फिर यह सिद्ध हो जाता है कि भगवान राम का जो शरीर था वह दिव्य शरीर था, हमारी तरह प्राकृत (माया का) शरीर नहीं था। क्योंकि भगवान विष्णु दिव्य शरीर वाले हैं और इस श्लोक में यह कहा गया कि राम शरीर सहित विष्णु शरीर में प्रवेश किये।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥192॥
भावार्थ:- ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे (अज्ञानमयी, मलिना) माया और उसके गुण (सत्, रज, तम) और (बाहरी तथा भीतरी) इन्द्रियों से परे हैं। उनका (दिव्य) शरीर अपनी इच्छा से ही बना है (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं)
इसका मतलब की भगवान का शरीर माया और उसके गुण (सत्, रज, तम) से नहीं बना है। मनुष्य का शरीर माया से (पंचतत्व या पंचमहाभूत - पृथ्वी, पानी, आकाश, अग्नि और वायु) से बनता है। और मनुष्य बनने का कारण है कर्म बंधन। परन्तु भगवान कर्म बंधन में नहीं बधे है। अतएव तुलसीदास जी लिखते है की राम का शरीर यह माया से (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा) नहीं बना है। भगवान का शरीर दिव्य है और भगवान अपनी इच्छा से ही अपना शरीर बनाते है। रामचरितमानस अयोध्याकाण्ड में कहा है
चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी॥
भावार्थ:- आपकी देह चिदानन्दमय (चेतन और आनंद मय अर्थात अलौकिक) है और सब विकारों (दोष) से रहित है, इस रहस्य को अधिकारी (गुरु) ही जानते हैं।
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