भगवान है या नहीं? क्या प्रमाण है भगवान के होने का?

क्या प्रमाण है भगवान के होने का?

दुनिया में अनेक वादों का विवाद है। उनमें से एक है “क्या भगवान होते है? अगर हाँ तो क्या प्रमाण?" प्रायः कुछ लोग मानते है कि ईश्वर होते है और कुछ लोग कहते की नहीं होते हैं। नास्तिकों का कहना है कि "भगवान को हम लोगों ने बनाया है। जैसे गरीब के लिए अन्नदाता भगवान है, ऐसे ही जो लोग दुखी है उनको ऐसा लगता है की कोई इस दुःख को हरने वाला है। उसे वे भगवान मानते है।”

आस्तिकों का कहना है कि “यह दुनिया अपने आप नहीं बन सकती क्योंकि किसी भी वस्तु या इस जटिल शरीर को बनाने में बहुत ज्ञान की आवश्यकता है। आज के वैज्ञानिक सामान से सामान बनाते है। जिसमे सामान जड़ है और वो स्वयं (वैज्ञानिक) चेतन है। इसी प्रकार अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी तथा आकाश ये सब जड़ है इनमे चेतना नहीं है। अतएव यह जड़ पर्दार्थ अपने आप ही इतनी संतुलित तथा सुन्दर संसार नहीं बन सकता।” अतएव आस्तिक और नास्तिक अपना-अपना तर्क देते है और यह विवाद बढ़ता जाता है।

क्या भगवान है?

भगवान को जानने के लिए आस्तिक लोग कहते है कि “वेद को आधार मानों वो ज्ञान का भंडार है। वेद के ज्ञान को तुम अपने तर्क से काट दो तथा जैसे-जैसे वेद ने कहा भगवान कैसे मिलेंगे, वैसा ही करो। अगर नहीं मिले तो आप कह सकते है की भगवान नहीं है।” अतएव वेद अनुसार गीता क्या कहती है सर्वप्रथम यह समझते है।

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥
- गीता ३.४२

अर्थात् - इन्द्रियों से परे मन, मन से परे बुद्धि, बुद्धि से परे आत्मा और आत्मा से परे भगवान है।

अतएव आस्तिक कहते है कि वो परमात्मा (भगवान) जब मन-बुद्धि तथा आत्मा से भी परे है। तो उसका प्रमाण नहीं दिया जा सकता। भोतिक विज्ञान ही अभी मन-बुद्धि को पूर्ण रूप से नहीं समझ सका है। तो फिर मन-बुद्धि से परे वाली चीजों को कैसे वैज्ञानिक मापदण्ड पर समझ सकते है।

नास्तिकों का कहना है कि “यह आस्तिकों का बहाना है की भगवान मन-बुद्धि से परे है।” इस पर आस्तिक कहता है कि “भगवान तो है, अगर वो मन-बुद्धि से जानने में आजाता; तो अनंत लोगों ने उसको जान लिया होता मन-बुद्धि से? और अगर यह कहे कि भगवान मन-बुद्धि से जानने में आसकता है तो फिर भगवान परम तत्व नहीं हो सकते, मन-बुद्धि परम तत्व होगी। फिर भगवान मन-बुद्धि के निचे होंगे। अतएव फिर भगवान को भगवान कहना गलत होगा, मन-बुद्धि को भगवान कहना सही होगा। जो की सत्य नहीं है।”

नास्तिकों का कहना है कि “यह सब बकवास है भगवान मन की कल्पना मात्र है। मानो तो गंगा माँ है और ना मानों तो बहती नदी है।” इस पर आस्तिक कहता है कि “भगवान तो है, आप मानो तथा वेद अनुसार प्रयत्न करो। तो एक दिन वो कृपा कर के अपने यथात स्वरूप को प्रकट कर देंगे। और अगर नहीं मानोंगे? तो इसमे भगवान का क्या जाता है, नुक्सान तो आपका ही है। यह सृष्टि अनादि काल से है और अनादि काल तक बनती तथा नस्ट होती रहती है। यह वैदिक तथा भौतिक वैज्ञानिक भी कहते है। अतएव इसमें आपका ही अनंत जन्म बर्बाद होगा।”

क्या प्रमाण है भगवान के होने का? - सात कारण

नास्तिकों का कहना है कि “चलो मान लिया कि भगवान होते है। लेकिन इसका क्या प्रमाण है?” इस पर आस्तिक कहता है कि “वेद अनुसार गीता ३.४२ के प्रमाण से यह पता चला कि मन-बुद्धि तथा आत्मा से परे है भगवान। अतएव उसका प्रमाण देना तो असंभव ही मानना चाहिए। परन्तु शास्त्रों ने कुछ मात्रा में भगवान का प्रमाण दिया है। वो कुछ इस प्रकार है -

१. यह विचित्र ब्रह्माण्ड तथा इसमें विभिन्न प्रकार के शरीर है। इनका सन्तुलित ढंग से काम करना, यह प्रमाणित करता है की कोई इसको बनाने तथा चलाने वाला अवश्य होगा। जैसे यह शरीर को हम सन्तुलित ढंग से चलाते है, वैसे ही इस संसार को भगवान सन्तुलित ढंग से चलाते है।

२. कोई भी जड़ पदार्थ जैसे अग्नि, जल, वायु, पत्थर, मिटी तथा ऊर्जा आदि। ये अपने आप कुछ नहीं कर सकते। जैसे पत्थर अपने आप मूर्ति नहीं बन सकती, मिट्टी अपने आप सुराही नहीं हो सकती है। उसको बनाने वाला कोई न कोई होगा। यहां तक की ऊर्जा भी अपने आप कुछ नहीं कर सकती। उसमें भी परिवर्तन अथवा हलचल के लिए किसी अन्य ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतएव यह संसार अपने-आप नहीं बन सकता। क्योंकि यह संसार जड़ है।

३. प्रकृति में सर्वत्र साधन और साध्य (लक्ष्य) का सामंजस्य दिखाई देता है। पृथ्वी के घूमने से दिन, रात और ऋतु परिवर्तन होते हैं। गर्मी, सर्दी और वर्षा के अनुपात से वनस्पति उत्पन्न होती है। वृक्षों के मोटे तने से आँधी से वृक्ष की रक्षा होती है। पत्तियाँ साँस लेने का काम करती हैं। पशुओं के शरीर उनकी आवश्यकता के अनुसार हैं। इस प्रकार संसार में सर्वत्र प्रयोजन दिखाई देता है। विश्व में जो क्रमिक विकास होता दिखाई देता है वह किसी प्रयोजन (साध्य) की सूचना देता है। संसार की यंत्रवादी व्याख्या इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती कि संसार यंत्र के समान क्यों चल रहा है। इसलिये संसार की रचना का प्रयोजन मानना पड़ता है। क्योंकि हर कार्य के पीछे कोई-न-कोई कारण होता है।

४. यह तो सत्य है की हर नियम को बनाने वाला कोई-न-कोई तो अवश्य है। तो फिर संसार के नियम को किसने बनाया? संसार के नियम को जिसने बनाया वो भगवान है।

५. मनुष्य के कार्य तथा प्रकृति के कार्य भी किसी न किसी प्रयोजन से होते हैं। जैसे बारिश होने का प्रयोजन भूमि में जल प्रदान करना है। इसी प्रकार यह संसार किस प्रयोजन से है? मनुष्य किस प्रयोजन से है? इनका प्रयोजन दर्शाता है की कोई-न-कोई तो है।

६. वेदों-शास्त्रों में अनंत ब्रह्माण्ड और ९ ग्रह का उल्लेख मिलता है। योग तथा आयुर्वेद का सटीक ज्ञान जिसे कोई भी मनुष्य ठीक-ठीक करे तो उसको वही फल मिलता है जो लिखा गया है। यह सब बिना किसी उपकरण (यंत्र) के कैसे संभव है? वेद का उन्नत होना भी यह दर्शाता है की यह किसी की देन है।

जरा सोचिये, आज भी कोई व्यायाम या दवा वैज्ञानिक बनाते है। तो कितने वर्ष तथा कितने यंत्र, कंप्यूटर आदि लगते है, यह प्रमाणित करने के लिए की यह मनुष्यों के लिए लाभदायक है। उनकों मनुष्यों से पहले जानवरों पर परीक्षण करना पड़ता है। तब जाकर मनुष्य उस दवा का सेवन करता है। परन्तु तब भी वो दवा मनुष्य को नुकसान करने लगती है। जैसे की मनुष्य का प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) खराब होने लगता है। लेकिन वही, वेद के उपवेद आयुर्वेद का ज्ञान तथा योग को पूरा विश्व स्वीकार कर रहा है।

७. संसार में जीव कुत्ते, बिल्ली, गधे से मनुष्य तक सब आनंद चाहते है। कोई दुःख नहीं चाहता। अगर यह कहो की मनुष्य बुद्धिमान है इसलिए आनंद चाहता है। तो फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे तो बुद्धिमान नहीं है वो क्यों आनंद चाहते है? इससे यह सिद्ध होता है की सभी चेतन शरीर में कुछ तो है जो उभयनिष्ठ (कॉमन) है। वेद कहते है वो आत्मा है।

आस्तिक कहता है कि “जिस आनंद को आप चाहते है, वह आनंद चाहना मनुष्य तथा पशु-पक्षियों का यह सिद्ध करता है की भगवान है। क्योंकि आनंद भगवान है।”

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