पृश्निगर्भ

पृश्निगर्भ

पृश्निगर्भ भगवान विष्णु के अवतार है। इस अवतार में माता का नाम पृश्नि और पिता का सुतपा था। स्वायम्भुव मन्वन्तर में सुतपा प्रजापति थे। जब उनका कोई पुत्र नहीं हो रहा था तब वे भगवान को प्रसन्य करने के लिए तपस्या करने लगे। तत्पश्चात भगवान उनके पुत्र बने।

पृश्निगर्भ का अर्थ

महाभारत शान्ति पर्व अध्याय ३४१ अनुसार - अन्न, वेद, जल और अमृत को पृश्निकहते हैं। ये सदा मेरे गर्भ में रहते हैं, इसलिये मेरा नाम ‘पृश्निगर्भ’ हैं। जब त्रितमुनि अपने भाइयों द्वारा कुएँ में गिरा दिये गये, उस समय ऋषियों ने मुझसे इस प्रकार प्रार्थना की - ‘पृश्निगर्भ! आप एकत और द्वित के गिराये हुए त्रित को डूबने से बचाइये।’ उस समय मेरे पृश्निगर्भ नाम का बारंबार कीर्तनकरने से ब्रह्माजी के आकद पुत्र ऋषिप्रवर त्रित उस कुएँसे बाहर हो गये।

पृश्निगर्भ के माता पिता अपने तीसरे जन्म में देवकी और वासुदेव के रूप में प्रकट हुए।

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