कर्मकाण्ड

वैदिक कर्मकाण्ड

वैदिक संस्कृति का कर्मकाण्ड प्रधान अंग है। यह मनुष्य की अनेकों भौतिक और आध्यात्मिक इच्छाओं को पूर्ण करता है। कई प्राचीन ऋषि-महर्षिय जो कर्मकाण्डी थे, वे शास्त्रों के अनुसार ही अपना जीवन व्यतीत किया करते थे और कर्मकाण्ड के द्वारा अपना और जगत का कल्याण किया करते थे। आपको बता दे कि सम्पूर्ण वैदिक धर्म (या कहें वेद) तीन काण्डों में विभक्त है - १. कर्मकाण्ड २. ज्ञानकाण्ड ३. भक्ति / उपासनाकाण्ड

वेद का अधिक अंश कर्मकांड से परिपूर्ण है। वेद के एक लाख मन्त्र में से अस्सी हजार कर्मकाण्ड की ही ऋचाएँ है। इसलिए, पूरी तरह से कर्मकाण्ड का वर्णन करना सम्भव नहीं है। भागवत पुराण ११.२७.६ ‘श्रीभगवानुवाच - न ह्यन्तोऽनन्तपारस्य कर्मकाण्डस्य चोद्धव।’ अर्थात् “भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- उद्धव जी! कर्मकाण्ड का इतना विस्तार है कि उसकी कोई सीमा नहीं है।” तो, जिस विषय की कोई सीमा नहीं है, उस पर आप जो भी कहेंगे, वह कम होगा। लेकिन फिर भी इस लेख में हम कर्मकाण्ड के मुख्य विषयों को जानेंगें।

‘कर्मकाण्ड’ शब्द

कर्मकाण्ड यह शब्द कर्म और काण्ड से मिलकर बना है। कर्म तो आप समझते ही हैं, सबकुछ जो आप करते है वो कर्म है। और काण्ड का अर्थ किसी घटना से है, जीवन के अध्याय से है। उदाहरण से समझें - “सूर्य उदय होना” यह एक घटना है, अब इस घटना पर क्या कर्म करना चाहिए इसके लिए आपको कर्मकाण्ड जानना होगा। दूसरा उदाहरण से समझे - “विवाह यह जीवन का एक अध्याय है” जीवन के इस महत्वपूर्ण अध्याय पर क्या कर्म करना चाहिए इसके लिए आपको कर्मकाण्ड जानना होगा। कर्मकाण्ड वह विधि है जिसके द्वारा यजमान को इस लोक में अभीष्ट (चाहा हुआ) फल की प्राप्ति हो और मृत्यु उपरांत यथेष्ट (जितना चाहिए उतना) सुख मिले।

कर्मकाण्ड के मुख्य अंग

कर्मकाण्ड में यज्ञ सबसे मुख्य है। क्योंकि वेदों के कर्मकांड भाग में, यज्ञादि विभिन्न अनुष्ठानों का विशेष वर्णन है, इसलिए यज्ञ ‘कर्मकाण्ड ’ का मुख्य विषय है। यज्ञ कर्मकाण्ड का मुख्य विषय होने के कारण, कर्मकाण्ड में मंत्रों का प्रयोग (उच्चारण) किया जाता है। उदाहरण के लिए, संध्या के समय, विवाह के समय, भूमि पूजन आदि के समय यज्ञ किया जाता है।

कर्मकाण्ड को केवल यज्ञ नहीं समझना चाहिए, क्योंकि कर्मकाण्ड सामाजिक और धार्मिक जीवन पर भी प्रकाश डालता है। जैसे व्यक्ति के जन्म लेने से पूर्व से प्रारंभ हो कर मृत्यु पर्यन्त चलने वाले विभिन्न धार्मिक कृत्य भी कर्मकाण्ड है। इसलिए, कर्मकाण्ड का सम्बन्ध मानव के सभी प्रकार के कर्मों से है। इसमें यज्ञ, सेवा, पूजा, मनुष्य का आचरण, वर्णाश्रम धर्म आदि आते है।

लेकिन, यह भी ध्यान रहे कि कर्मकाण्ड का विधि-विधान अत्यंत कठिन हैं। इस विषय में भागवत दशम स्कन्ध के ६४ अध्याय राजा नृग की कथा प्रमाण है। वे गौ दान करने में कुछ भूल कर दिए, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरगिट बनना पड़ा। इस संदर्भ में एक बात और ध्यान करने योग्य है कि वेद मन्त्रों में स्वर होता है, यदि उनका उच्चारण सही नहीं हुआ तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। इसलिए गायत्री मन्त्र आदि को यूँ ही नहीं उच्चारण किया करे, स्वर सहित किया करे, नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जायेगा। इसलिए, कर्मकाण्ड में एक भी गलती करने पर उसका परिणाम भी भोगना पड़ता है।

यदि कर्मकाण्ड को संक्षेप और सरल शब्दों में कहें, तो कर्मकाण्ड में वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्था, वानप्रस्थ, संन्यास) ये वर्णाश्रम धर्म का पालन करना होता है। इसका विधिवत पालन करने से व्यक्ति पुण्य अर्जित करता है, जिससे वह पुण्य लोक (जैसे स्वर्ग, भगवान के लोक) में मरणोपरांत जाता है। ध्यान दे, भगवान का लोक भी कर्मकाण्ड दिला सकता है, अगर विधिवत पालन हो तो। ऐसा इसलिए क्योंकि कर्मकाण्ड (वर्णाश्रम) में भक्ति करने को भी कहा गया है। उदाहरण है, पांडव! उन्होंने वर्णाश्रम धर्म का पालन भी किया और अंत में भक्तों की गति मिली।

कर्मकाण्ड के ग्रंथ

यद्यपि, अन्य तीन वेदों में कर्मकाण्ड का वर्णन है, किन्तु यजुर्वेद के प्रथम से उंतालीसवें अध्याय तक कर्मकाण्ड का ही वर्णन मिलता है। इनके अलावा, कर्मकाण्ड के बारे में दो महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो वेद के अनुसार है। वे है - पूर्व मीमांसा दर्शन (महर्षि जैमिनि) और कर्म मीमांसा दर्शन (महर्षि भारद्वाज)। इनके अलावा, सबसे प्रचलित और सबसे बड़ा कर्मकाण्ड के बारे में कोई ग्रंथ है, तो वो है महाभारत। महाभारत में एक लाख से भी अधिक श्लोक है; हमें कब क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए और किस परिस्थिति में क्या करना चाहिए, इनका उल्लेख है।

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