श्री राम नाम की महिमा। - पुराण, दोहावली और रामायण अनुसार
हमने आपको अबतक भगवान के नाम की महिमा। हरि नाम संकीर्तन कैसे करना चाहिये? और भगवान का नाम लेने की विधि क्या है? इन सभी लेख में विस्तार से सबकुछ बताया है। जिसका सार यह है कि भगवान ने अपने नाम में अपनी समस्त शक्तियाँ रख दी है। उनके नाम का जप और नाम संकीर्तन में भगवान का स्मरण करना जरूरी है।
वैसे तो राम और कृष्ण एक ही है। इसलिए जो कृष्ण नाम की महिमा है वही राम नाम की महिमा है। अस्तु, तो श्री राम नाम की महिमा मैं क्या, तुलसीदास क्या, स्वयं भगवान भी नहीं कर सकते। चुकी भगवान की सभी चीजें अनंत है अर्थात् भगवान का नाम, गुण, लीला, शक्तियाँ इत्यादि सब अनंत-अनंत मात्रा की है इसलिए भगवान स्वयं भी अगर नाम की महिमा करने बैठे। तो अनंत काल तक नाम की महिमा गाते रहे, लेकिन नाम की महिमा ख़तम नहीं होगी। तुलसीदासजी ने राम नाम की महिमा को दोहावली में विस्तार से और रामायण में संछेप में श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड में किया है।
पुराण अनुसार राम नाम की महिमा और राम का अर्थ
राशब्दो विश्ववचनो मश्चापीश्वरवाचकः।
विश्वानामीश्वरो यो हि तेन रामः प्रकीर्तितः॥१८॥
रमते रमया सार्वं तेन रामं विदुर्बुधा।
रमाया रमणस्थानं रामं रामविदो विदुः॥१९॥
राश्चेति लक्ष्मीवचनो मश्चापीश्वरवाचकः।
लक्ष्मीपतिं गतिं रामं प्रवदन्ति मनीषिणः॥२०॥
नाम्नां सहस्रं दिव्यानां स्मरणे यत्फलं लभेत्।
तत्फलं लभते नूनं रामोच्चारणमात्रतः॥२१॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . १८-२१
संक्षिप्त भावार्थ:- (श्रीराधा जी द्वारा ‘राम’ नाम की व्याख्या। श्रीराधा जी कहती है -) ‘रा’ शब्द विश्ववाचक है और ‘म’ शब्द ईश्वरवाचक है, इसलिए जो लोकों का ईश्वर है उसी कारण वह ‘राम’ कहा जाता है। वह रमा के साथ रमण करता है इसी कारण विद्वान उसे ‘राम’ कहते हैं। रमा का रमण स्थान होने के कारण रामतत्ववेत्ता ‘राम’ बतलाते हैं। ‘रा’ लक्ष्मीवाचक है और ‘म’ ईश्वरवाचक है, इसलिए मनीषीगण लक्ष्मीपति को ‘राम’ कहते हैं। सहस्त्रों दिव्य नामों के स्मरण से जो फल प्राप्त होता है, वह फल निश्चय ही ‘राम’ शब्द के उच्चारणमात्र से मिल जाता है।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
- श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ३८ और पद्म पुराण २८१.२१
संक्षिप्त भावार्थ:- (शिव पार्वती से बोले -) सुमुखी! मैं तो ‘राम! राम! राम!’ इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीरामनाम में ही निरंतर रमण किया करता हूँ। रामनाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान हैं।
श्रीरामचरितमानस अनुसार राम नाम की महिमा
महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥२॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:- जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं।
जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥३॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:- आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम ('मरा', 'मरा') जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी के इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम सहस्र नाम के समान है, पार्वतीजी सदा अपने पति (श्री शिवजी) के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं।
आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥१॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:- ('राम' नाम के दो अक्षर) दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं, जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और सुख देने वाले हैं और जो इस लोक में लाभ और परलोक में निर्वाह करते हैं (अर्थात् भगवान के दिव्य धाम में दिव्य देह से सदा भगवत्सेवा में नियुक्त रखते हैं।)
नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥३॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:- ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुंदर भाई हैं, ये जगत का पालन और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। ये भक्ति रूपिणी सुंदर स्त्री के कानों के सुंदर आभूषण (कर्णफूल) हैं और जगत के हित के लिए निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं।
समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥१॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:-समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं, किन्तु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है (अर्थात् नाम और नामी में पूर्ण एकता होने पर भी जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार नाम के पीछे नामी चलते हैं। प्रभु श्री रामजी अपने 'राम' नाम का ही अनुगमन करते हैं (नाम लेते ही वहाँ आ जाते हैं)। नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, ये (भगवान के नाम और रूप) दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और सुंदर (शुद्ध भक्तियुक्त) बुद्धि से ही इनका (दिव्य अविनाशी) स्वरूप जानने में आता है।
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥२॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:-इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध (नामापराध) है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन देखे जाते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥२१॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ- तुलसीदास कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है, तो मुखरूपी द्वार की जीभरूपी देहली पर रामनामरूपी मणि-दीपक को रख।
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥ २७॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ- राम नाम नृसिंह भगवान है, कलियुग हिरण्यकशिपु है और जप करनेवाले जन प्रह्लाद के समान हैं, यह राम नाम देवताओं के शत्रु को मारकर जप करने वालों की रक्षा करेगा।
दोहावली अनुसार राम नाम की महिमा
तुलसीदासजी कृत दोहावली में विस्तार पूर्वक राम नाम की महिमा कही गई है। हम आपको दोहावली द्वारा राम नाम की महिमा के कुछ दोहों को आपके समक्ष रखेंगे।
सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि॥
- दोहावली
भावार्थ:- सगुण रूप के ध्यान में तो प्रीति युक्त रुचि नहीं है और निर्गुण स्वरूप मन से दूर है (यानी समझ में नहीं आता)। तुलसीदासजी कहते है कि ऐसे दशा में रामनाम-स्मरणरूपी संजीवनी बूटी का सदा सेवन करो।
नाम गरीबनिवाज को राज देत जन जानि।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ की बानि॥
- दोहावली
भावार्थ:- तुलसीदासजी कहते है कि गरीबनिवाज (दीनबन्धु) श्रीरामजी का नाम ऐसा है, जो जपने वाले को भगवान का निज जन जानकर राज्य (प्रजापति का पद या मोक्ष-साम्राज्य तक) दे डालता है। परन्तु यह मन ऐसा अविश्वासी और नीच है कि घूरे (कुड़ेके ढेर) में पड़े दाने चुगने की ओछी आदत नहीं छोड़ता (अर्थात् गंदे विषयों में ही सुख खोजता है)।
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास॥
- दोहावली
भावार्थ:- जो रामनाम का सहारा लिए बिना ही परमार्थ की - मोक्ष की आशा करता है, वह तो मानो बरसते हुए बादल की बूँद को पकड़कर आकाश में चढ़ना चाहता है। (अर्थात् जैसे वर्षा की बूँद को पकड़कर आकाश पर चढ़ना असम्भव है, वैसे ही रामनाम का जप किये बिना परमार्थ की प्राप्ति असम्भव है।)
रे मन सब सों निरस ह्वै सरस राम सों होहि।
भलो सिखावन देत है निसि दिन तुलसी तोहि॥
- दोहावली
भावार्थ:- रे मन! तू संसार के सब पदार्थों से प्रीति तोड़कर श्री राम से प्रेम कर। तुलसीदास जी तुझको रात-दिन यही सत-शिक्षा देता है।
तुलसीदासजी ने राम नाम की महिमा बहुत की है। उन्होंने अनेक जगहों पर राम नाम का प्रेम पूर्वक मन से जप करने को कहते है। और यही बात वो अपने मन को दिन-रात करने को कहते है। जिनकों यह लगता है कि बिना मन के प्रीति से राम नाम का जप करने से फल मिलता है? वो अवश्य पढ़ें भगवान का नाम लेने की विधि? नाम का जप मन या जीभा से? - रामायण, दोहावली के अनुसार। जो लोग राम नाम और कृष्ण नाम की महिमा में भेद भाव करते है वो नामापराध कर रहे है। दोनों नामों का फल एक है। अगर विश्वास नहीं हो रहा हो? तो पढ़ें - क्या राम नाम और कृष्ण नाम महिमा में अंतर है? - प्रमाण द्वारा