क्या राम नाम और कृष्ण नाम महिमा में अंतर है? - प्रमाण द्वारा
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सर्वप्रथम हम आपको यह बताना चाहते है कि भगवान, उनका नाम, उनकी लीला, उनके धाम, उनके संत एक है। भगवान सदा इनके अंदर विराजमान है। इसलिए अगर इनमे भेद बुद्धि लगी तो नामापराध हो जायेगा, जो की सबसे बड़ा अपराध है।
हमने एक लेख में बता है कि भगवान के सभी अवतार एक ही है। इसलिए राम और कृष्ण यह एक है। उनमे कोई अंतर नहीं है। इसलिए जो राम नाम की महिमा है वही कृष्ण नाम की महिमा है। जो राम नाम का जप कीर्तन का फल है वही कृष्ण नाम का जप कीर्तन का फल है। क्योंकि राम और कृष्ण तो एक ही है। महापुरुषों ने अलग अलग ढंग से भगवान के नाम की महिमा बताई है। इसलिए अल्पज्ञों को उनमें अंतर लगता है। अगर कोई विचार करके कृष्ण या राम नाम की महिमा की तुलना करे तो एक ही अर्थ मिलता है। हम राम नाम की महिमा और कृष्ण नाम की महिमा का तुलना नहीं कर रहे है, क्योंकि ऐसा सोचना भी नामापराध होगा। परन्तु, जो लोग इनमें भेद मानते है। उनके लिए राम और कृष्ण नाम लेने का फल प्रमाण के द्वारा बताने जा रहे है।
श्रीराम श्रीकृष्ण नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान हैं।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
- श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ३८ और पद्म पुराण २८१.२१
संक्षिप्त भावार्थ:- (शिव पार्वती से बोले -) सुमुखी! मैं तो ‘राम! राम! राम!’ इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीरामनाम में ही निरंतर रमण किया करता हूँ। रामनाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान हैं।
महस्रनाम्नां पुण्यानां त्रिरावृत्त्या तु यत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य नामैकं तत्प्रयच्छति॥९॥
- ब्रह्माण्ड पुराण मध्यभाग अध्यायः ३६
भावार्थ:- विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम (पुण्य), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
अतएव चाहे राम नाम लो या कृष्ण नाम दोनों ही सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान हैं।
श्रीराम श्रीकृष्ण नाम के बारे में, श्री राधा जी एक ही बात कहती है।
नाम्नां सहस्रं दिव्यानां स्मरणे यत्फलं लभेत्।
तत्फलं लभते नूनं रामोच्चारणमात्रतः॥२१॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११.२१
संक्षिप्त भावार्थ:- (श्री राधा जी राम नाम की व्याख्या करते हुए कहती है कि -) सहस्त्रों दिव्य नामों के स्मरण से जो फल प्राप्त होता है, वह फल निश्चय ही ‘राम’ शब्द के उच्चारणमात्र से मिल जाता है।
सहस्रनाम्ना: दिव्यानां त्रिरावृत्त्या चयत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य तत्फलं लभते नरः॥३५॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३५
संक्षिप्त भावार्थ:- (श्री राधा जी कृष्ण नाम की व्याख्या करते हुए कहती है कि -)सहस्र दिव्य नामों की तीन आवृत्ति करने से जो फल प्राप्त होता है; वह फल ‘कृष्ण’ नाम की एक आवृत्ति से ही मनुष्य को सुलभ हो जाता है।
राधाजी से अधिक कृष्ण राम को कौन जान सकता है? वो राधाजी कह रही है कि राम-कृष्ण नाम लेने का फल एक ही है।
श्रीराम श्रीकृष्ण नाम लेने से मोक्ष की प्राप्ति।
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास॥
- दोहावली
भावार्थ:- जो रामनाम का सहारा लिए बिना ही परमार्थ की - मोक्ष की आशा करता है, वह तो मानो बरसते हुए बादल की बूँद को पकड़कर आकाश में चढ़ना चाहता है। (अर्थात् जैसे वर्षा की बूँद को पकड़कर आकाश पर चढ़ना असम्भव है, वैसे ही रामनाम का जप किये बिना परमार्थ की प्राप्ति असम्भव है।)
अश्वमेधसहस्रेभ्यः फलं कृष्णजपस्य च।
वरं तेभ्यः पुनर्जन्म नातो भक्तपुनर्भवः॥३९॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३९
भावार्थ:- ‘कृष्ण’ नाम-जप का फल सहस्रों अश्वमेध-यज्ञों के फल से भी श्रेष्ठ है; क्योंकि उनसे पुनर्जन्म की प्राप्ति होती है; परंतु नाम-जप से भक्त आवागमन से मुक्त हो जाता है। (आवागमन से मुक्त होना मोक्ष कहलाता है।)
श्रीराम श्रीकृष्ण नाम लेने में नाम का स्मरण अनिवार्य।
राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास ।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल दुहुँ दिसि तुलसीदास ॥
- दोहावली
भावार्थ:- तुलसीदासजी कहते हैं कि जिसका रामनाम में प्रेम है, राम ही जिसकी एकमात्र गति है और रामनाम में ही जिसका विश्वास है, उसके लिए रामनाम का स्मरण करने से ही दोनों और (लोक-परलोक) शुभ, मंगल और कुशल है।
कृष्ण कृष्णोति हे गोपि यस्तं स्मरति नित्यशः।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धरेच्च सः॥३७॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३४-३७
भावार्थ:- (श्रीराधा जी कहती है -) हे गोपी! जो मनुष्य ‘कृष्ण-कृष्ण’ यों कहते हुए नित्य उनका स्मरण करता है; उसका उसी प्रकार नरक से उद्धार हो जाता है, जैसे कमल जल का भेदन करके ऊपर निकल आता है।
श्रीराम श्रीकृष्ण समस्त कामनाओं को पूरा करने में सर्मथ है और नाम तथा नामी (रूप) में अंतर नहीं है।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:- कलियुग में राम का नाम कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) है, जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास तुलसी के समान (पवित्र) हो गया।
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥
- श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
भावार्थ:- इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन देखे जाते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता।
नाम चिंतामणि कृष्णस्य,चैतन्य रस विग्रह।
पूर्ण शुद्धो नित्य मुक्तो,अभिन्न त्वान्नाम नामिनोह॥
- पद्म पुराण और श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १७.१३३
भावार्थ:- हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है। हरिनाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व (दिव्यता) के आगार हैं। हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं। नामी (हरि) तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है।
महामंत्र
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥
इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मषनाशनम्।
नातः परतरोपायः सर्ववेदेषु दृश्यते॥
- कलिसन्तरणोपनिषद्
भावार्थ:- (हरे का एक अर्थ श्री हरि भी होता है।) (ब्रह्मा जी नारद जी से कह रहे है) - हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। यह सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन कलियुग में क्लेश का नाश करने में सक्षम है। इस मन्त्र को छोड़ कर कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय चारों वेदों में कहीं भी नहीं है।
चलो अगर यह मान भी ले की भगवान का अमुक नाम बड़ा है। तो जो बड़ा नाम है उससे समस्त फल मिल जायेंगे। इसलिए छोटे नाम को लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। तो फिर महामंत्र में हरे (हरि), राम और कृष्ण नाम एक साथ लिया जाता है। अगर ये कहो की राम-हरि नाम से कृष्ण नाम बड़ा है तो राम-हरि नाम लेने की क्या आवश्यकता? क्योंकि जब कृष्ण से समस्त फल मिल जायेंगे, तो राम-हरि नाम क्यों ले? इसी प्रकार अगर यह कहो की राम नाम बड़ा है तो फिर कृष्ण-हरि नाम लेने की क्या आवश्यकता? और अगर यह कहो की हरि नाम बड़ा है तो फिर राम-कृष्ण नाम लेने की क्या आवश्यकता?
अतएव भगवान के समस्त नाम समान है। उनमें अंतर नहीं है। हरि, राम और कृष्ण चाहे तीनो का जपकीर्तन करो या एक का ही करों। सब का फल ईश्वर कृपा है।
भागवत १.१८.१४ ‘नान्तं गुणानामगुणस्य जग्मुः।’ अर्थात् अनंत गुण हैं, अनंत नाम हैं। तो अनंत नाम में से 'क ख आदि' भी भगवान के नाम है। वेद कहता है छान्दोग्योपनिषद् ४.१०.५ 'कं ब्रह्म खं ब्रह्म।' अर्थात् ये क, ख, भगवान के नाम है। ‘अकारो वासुदेवः’ सब शब्द भगवान के नाम हैं। इसलिए भगवान के नाम को छोटा बड़ा मानना भोलापन है।