कर्मयोग क्या है और कैसे किया जाता है? - पद्म पुराण अनुसार।

कर्मयोग क्या है - पद्म पुराण अनुसार।

पद्म पुराण ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ५१ में कर्मयोग के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। जिसमे सूतजी ने कर्मयोग क्या है, कैसे किया जाता है, जिसके द्वारा आराधना करने पर भगवान् विष्णु प्रसन्न होते है? इसका उत्तर व्यासजी के माध्यम से बताया है।

ऋषय ऊचु-
कर्मयोगः कथं सूत येन चाराधितो हरिः।
प्रसीदति महाभाग वद नो वदतां वर॥१॥
येनासौ भगवानीशः समाराध्यो मुमुक्षुभिः।
तद्वदाखिललोकानां रक्षणं धर्मसंग्रहम्॥२॥
तं कर्मयोगं वद नः सूत मूर्तिमयस्तु यः।
इति शुश्रूषवो विप्रा भवदग्रे व्यवस्थिता॥३॥
- पद्म पुराण ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ५१

संक्षिप्त भावार्थ:- ऋषियों ने पूछा- सूतजी! कर्मयोग कैसे किया जाता है, जिसके द्वारा आराधना करने पर भगवान् विष्णु प्रसन्न होते है? महाभाग! आप वक्ताओं में श्रेठ हैं; अतः हमें यह बात बताइये। जिसके द्वारा मुमुछु (मोक्ष की कामना करनेवाला) पुरुष सबके ईश्वर भगवान् श्री हरि की आराधना कर सकें, वह समस्त लोको की रक्षा करने वाला धर्म क्या वस्तु है? उसका वर्णन कीजिये। उसके श्रवण की इच्छा से ब्राह्मण लोग आपके सामने बैठे हैं।

सूत उवाच-
एवमेव पुरा पृष्टो व्यासः सत्यवतीसुतः।
ऋषिभिरग्निसंकाशैर्व्यासस्तानाह तच्छृणु॥४॥
- पद्म पुराण ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ५१

संक्षिप्त भावार्थ:- सूतजी बोले - महर्षियो! पूर्वकाल में अग्नि के समान तेजस्वी ऋषियों ने सत्यवती के पुत्र व्यासजी से ऐसा ही प्रश्न किया था। उसके उत्तर में उन्होंने जी कुछ कहा था, उसे आपलोग सुनिये।

व्यास उवाच-
शृणुध्वंमृषयः सर्वे वक्ष्यमाणं सनातनम्।
कर्मयोगं ब्राह्मणानामात्यंतिकफलप्रदम्॥५॥
आम्नायसिद्धमखिलं ब्राह्मणार्थं...
- पद्म पुराण ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ५१

संक्षिप्त भावार्थ:- व्यासजी ने कहा - ऋषियों! मैं सनातन कर्मयोग का वर्णन करुँगा, तुम सब लोग ध्यान देकर सुनो। कर्मयोग ब्राह्मणों को अक्षय फल प्रदान करने वाला है। पहले की बात है, प्रजापति मनुने श्रोता बनकर बैठे हुए ऋषियों के समक्ष ब्राह्मणों के लाभ के लिए वेदप्रसिद्ध सम्पूर्ण विषयो का उपदेश किया था। वह उपदेश सम्पूर्ण पापों को हरनेवाला, पवित्र और मुनि-समुदायद्वारा सेवित है। मैं उसीका वर्णन करता हूँ, तुमलोग एकाग्रचित होकर श्रवण करो।... व्यासजी ने विस्तार पूवक पद्म पुराण ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ५१ से अध्याय ६० तक वर्णाश्रम का निरूपण किया और उसमें हरि भक्ति भी बताई। व्यासजी ने कर्मयोग के बारे में यह कहा कि कर्म (वर्णाश्रम धर्म) का ठीक-ठीक पालन करों और साथ में श्रीहरि की भक्ति भी करो। इसी प्रकरण में सूतजी ने कहा -

सूत उवाच-
एवमुक्ता पुरा विप्रा व्यासेनामिततेजसा।
एतावदुक्त्वा भगवान्व्यासः सत्यवतीसुतः॥१॥
समाश्वास्य मुनीन्सर्वान्जगाम च यथागतम्।
भवद्भ्यस्तु मया प्रोक्तं वर्णाश्रमविधानकम्॥२॥
- पद्म पुराण खण्ड ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ६१

संक्षिप्त भावार्थ:- सूतजी ने कहा - ब्राह्मणों! पूर्वकाल में अमित तेजस्वी व्यासजी ने इस प्रकार आश्रम-धर्म का निरूपण किया था। इतना उपदेश करने के पश्चात उन सत्यवतीनन्दन भगवान् व्यासजी ने समस्त मुनियों को भलीभांति आश्वासन दिया और जैसे आये थे, वैसे ही वे चले गये। वही यह वर्णाश्रम-धर्म की विधि है, जिसका मैंने (सुतजीने) आपलोगों से वर्णन किया है।

एवं कृत्वा प्रियो विष्णोर्भवत्येव न चान्यथा।
- पद्म पुराण खण्ड ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ६१

संक्षिप्त भावार्थ:- इस प्रकार वर्ण धर्म तथा आश्रम-धर्म का पालन करके ही मनुष्य भगवान् विष्णु का प्रिय होता है, अन्यथा नहीं।

कर्मयोग क्या है? उत्तर है - कर्म के साथ योग। योग का अर्थ होता है मिलन (भगवान् से)। कर्मयोग कैसे किया जाता है? उत्तर है - कर्मयोग में संसार समबन्धी कर्म-धर्म का ठीक-ठीक पालन (वर्णाश्रम धर्म अनुसार) और भगवान् से मन के द्वारा सदा योग बना रहे। जो व्यासजी ने कहा कि वर्णाश्रम धर्म के साथ ईश्वर भक्ति करो यही कर्मयोग है।

कर्मयोग सिद्धांत में, जहां मन रहता है उसका फल मिलता है क्योंकि कर्म मन द्वारा होता है। इसलिए मन का लगाव संसारी कर्म-धर्म में नहीं रहने के कारण तथा मन भगवान् में लगे रहने के कारण, भगवान् सम्बंधित फल का मिलता है। वास्तव में बिना भक्ति के मुक्ति नहीं मिलती। इसीलिए कर्म के साथ योग (भक्ति) कर्मयोग कहलाई। जिससे कर्मयोग से मुक्ति मिलने लगी। ज्ञान के साथ योग (भक्ति) तो ज्ञानयोग कहलाई। जिससे ज्ञानयोग से मुक्ति मिलने लगी।

इसलिये सूतजी ने इसी प्रकरण में आगे ऋषियों से कहते है कि कर्मयोग से श्रेष्ठ केवलाभक्ति (केवल श्रीहरि की भक्ति) है। क्यों? इसलिए क्योंकि पहले सही सही कर्म-धर्म (वर्णाश्रम धर्म) सीखो, फिर करो और अंत में उनका फल नहीं मिलेगा क्योंकि आपका मन भगवान् में सदा था। तो फिर कर्म-धर्म (वर्णाश्रम धर्म) का पालन करने का क्या लाभ, तथा समझने का परिश्रम अलग।

इसलिए इसी प्रकरण में सूतजी कहते है कि जिसने श्रीहरि की भक्ति कर ली, उनको कर्म-धर्म का पालन करने की क्या आवश्यकता है। अधिक जानने के लिए पढ़े कर्मयोग से श्रेष्ठ केवलाभक्ति क्यों है? सूत जी के अनुसार - पद्म पुराण।

इसलिए वेद भी कहता है कि कर्म धर्म का पालन करना बेकार है। और तो और वेदों ने यहाँ तक कहा है कि कर्म-धर्म का पालन करने वाले घोर मूर्ख है। - वेद

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